शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

जब से य मन मोहित होइगा

 

जब से य मन मोहित होइगा,

तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै,
चलनी मां औ सूप मां॥
रात रात भर लिहन कराउंटा,
नीद न आई आंॅखिन का।
औ मन बाउर बइकल बागै,
ओ!गोरी तोरे उूब मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,
लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्‍हन,
हमरे दोनिया दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं,
एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर,
निकराथें नलकूप मां॥
सातक्षात्‌ तुम पे्रम कै मुरत,
होइ के निठमोहिल न बना।
द्‌याखा केतू करूना होथी,
ईंटा के ‘स्‍तूप' मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै,
तन औ मन के ओरहन कै,
तब से फलाने महकै ंलागें,
जइसा मंदिर धूप मां॥

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें