रविवार, 16 अक्तूबर 2022

मुँह मा दाबे पान। BAGHELI KAVITA

रोटी से बढ़ के हिबै ,जेखे नित अमलास। 
वा कइसा अनुभव  करी ,पीरा आंसू त्रास।। 
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हमरे हियाँ मनइन  कै ,गजब निराली शान। 
पेटे  मा  दाना  नहीं ,  मुँह  मा  दाबे   पान। ।   
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भाई  चारा  प्रेम  का , चला  लगाई  रंग। 
तबहिन अपने देस मा बाजी झांझ मृदंग। । 
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जनता से बढ़ के नहीं ,लोकतंत्र मा  धाक। 
रय्यात से गर्रान जे , बागा रगड़त नाक।। 
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क्यत्ता बड़ा बिचित्र है ,देस भक्त दरबार। 
जे हाँ मा हाँ  न कही ,वा घोसित गद्दार। । 
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बामपंथ अस जाड़ है पूंजीपति कस  पूस।
उनखे सोसन दमन मा, सूरज केर जलूस। ।  

 

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