रविवार, 16 अक्तूबर 2022

मालिक नामक हराम।

 कोउ हिंदू मुस्लिम करै ,कोऊ आर्य अनार। 
दोउ जन का चलि रहा ,है घिनहा ब्यापार। । 
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किहिन मजुरै देस का ,सबसे ज्यादा काम। 
तउअव जस मानै नहीं ,मालिक नामक हराम।। 
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धोखा दीन्हिस इंडिया ,भरी बिपत के ठाँव। 
तब  आंसू  पीरा लये , भारत  पहुंचा   गांव। ।  
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हमरे हियाँ गरीब कै, सब दिन आँखी भींज। 
धन्ना  से ठ कै आत्मा ,  कबहूँ  नहीं  पसीझ। । 
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