शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

शरद कै रात

चितवाथी चरिउ कइ चरकी चमक चंद,
चपल चोचाल अस चोंख चोंख चांॅदनी।


काहू केर जिव करै पपीहा अस पिउ पिउ,
नेह स्‍वाति बूंद का लगाबै दोख चांॅदनी॥


सुकवा जो अस्‍त भा ता उआ है अगस्‍त जी मां,
प्रेम पंथ पानी काही सोख सोख चांॅदनी॥

चकई  के  ओरहन  राहू  केर  गिरहन,
रहि  रहि जाय  मन का मसोस चांॅदनी॥

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पोखरी का पानी जब से थिराय दरपन भा,
तब से जोंधइया रूप राग का सराहा थी।


ठुमुक  ठुमुक  चलै लहर  जो  रसे रसे,
देख देख के तलइया भाग का सराहा थी॥


चांॅदनी से रीझ रीझ पत्‍ता पानी मां पसीझ,
पुरइन  पावन  अनुराग  का  सराहा थी।


जे निहारै एक टक सांझ से सकार तक,

जोंधइया चकोर के वा त्‍याग का सराहाथी॥

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झेंगुर कै तान सुन नाचै लाग जुगनूं ता,
अस लाग जना दीप राग तान सेन का।


भितिया मां चढि के शिकार करै घिनघोरी,
जइसन ‘लदेन'  कांही मारा थै अमेरका॥


ओस  कै बूंद  जस  गिरत देखाय नही,
सनकी से  बात करैं जइसा पे्रमी प्रेमका॥


तन केर मन से जो ताल मेल टूटिगा है,
तब से चरित्र होइगा विश्‍वामित्र मेनका॥

शरद कै रात 

 

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