बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

गाँधी जी अमर हें

अब  अउर  येसे  केतू निकहा सीन चाही। 
उनखर धड़कन नापै का नई मशीन चाही।। 
चश्मा  के  मथरे  अब   काम   न    चली   
उनखर चरित्त द्याखैं  का अब दूरबीन चाही। । 
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 गाँधी  जी  अमर  हें गंगा  के धारा अस। 
देस के माटी  मा जन जन के नारा अस। ।  
गाँधी जी पढ़ाये जइहै सब दिन इस्कूल मा 
भारत के बचपन का गिनती औ पहारा अस। । 
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हम   दयन    नये   साल  कै   बधाई।  
फलाने कहिन तोहइ लाज नहीं आई।
कुटिया के खुटिया का कलेण्डर बदला है 
पै अबहूँ   धरी   ही    टुटही   चारपाई। ।   
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कोऊ अमीरी से ता कोउ गरीबी से दुःखी है। 
कोउ दुसमन से ता कोउ करीबी से दुःखी है। । 
या   दुनिया   मा   सुख   संच  हे रे नहीं  मिलै  
कोउ मियाँ  से ता  कोउ  बीबी  से  दुःखी  है। ।     
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वा भले जीभ दार है पै मकुना मउना है। 
एहिन से ओखे हीसा मा अउना पउना  है। । 
पड़बा है काहे दूबर य बात दिल्ली जाना थी 
दुधारू लोकतंत्र के पडउना  का थम्हाउना है। । 
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