रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगमानी मां।
बड़े सकारे मरे मिले उंइ एक चुल्लू भर पानी मां॥
बड़े सकारे मरे मिले उंइ एक चुल्लू भर पानी मां॥
नंच नंच आँखिन से झांकै बड्डे जबर सपन,
बोली बड़ी पिआर लगाथी तोतली बानी मां॥
संतन के जप तप कीन्हे इन्द्रासन हालय लागा थै
‘सरमन' सब दिन मारे गे हें सत्ता के मनमानी मां॥
‘सरमन' सब दिन मारे गे हें सत्ता के मनमानी मां॥
शक के नजर से देखे जाथें जब साधू संन्नासी तक,
कइसा हमहीं रिस न चढी हो लुच्चन के मेहमानी मां॥
भला जात मा बंट के कउनव महाशक्ति का देस बनी,
जेखर जनता बाम्हन ठाकुर दलित औ बानी मां॥
कोउ नही सुनइया दादू चह जेतू नरिआत रहा,
सगला देस सुनिस ‘अन्ना' का जब बोलिन रजधानी मां॥
सगला देस सुनिस ‘अन्ना' का जब बोलिन रजधानी मां॥
खूब पैलगी होथी जेखर औ समाज मां मान है हंस
उनही सांझ के हम देखे हन गिरत भंजत रसदानी मां॥
* @ हेमराज हंस -9575287490 *
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