होय खूब सम्मान औ , चढ़ै रोज जल फूल।
रेंड़ा तुलसी का कहै, चिढ़ के ऊल जलूल।।
हेमराज हंस
होय खूब सम्मान औ , चढ़ै रोज जल फूल।
रेंड़ा तुलसी का कहै, चिढ़ के ऊल जलूल।।
हेमराज हंस
जे गरीब तक से लिहिन, अपने पुरबी घूंस।
देशभक्ति के सभा मा, ओखर जबर जलूस।।नल कुबेर के हिदय मा, काहे उचय न टीस।
वा एक तो बड़मंसी लिहिस, औ मागै बकसीस।।
भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।
छोहगइली लये चांदनी, जागी सगली रात।
नदी तीर गोठत रहा, चन्दा रोहणी साथ । ।
प्रेम भरी पोखरी रही, कोउ दिहिस घघोय।
जस बिजली के तार का, जम्फर टूटा होय।।
हेमराज हंस
लेत रहें जे थान के, लम्बाई कै नाप।
अर्ज देख लोटय लगा,उनखे छाती सांप।।
भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।
न मात्रा का ज्ञान है, न हम जानी वर्ण।
पारस के छुइ दये से, लोहा होइगा स्वर्ण।।
राजमार्ग मा चल रहें , बड़े बेढंगे यान।
चालक काही है नहीं, अपर डिपर का ज्ञान।।
हेमराज हंस
चाहे कोऊ कवि लिखय, चह शायर श्रीमान।
सब्द सक्ति जब तक नहीं, तब तक नही प्रमान।।