सोमवार, 29 अगस्त 2016

RIMHI KAVITA य मनई से वफादार है हमरे देस का कुत्‍ता॥

RIMHI KAVITAरिमही कविता 


एक रोज गदहा काका से कहिस गदहिया काकी।
पकिगा प्‍याट य भारा ढ़ोबत परै भाग मां चाकी॥
हमही परै अजार य  होइ जाय कउनौ अनहोनी।
इसुर य तन लइके  हमही  देय मनई कै जोनी।
यतना सुनतै  गदहा काकू  लगें  खूब अनखांय।
कहिन शनीचर तोहइ चढा है औ चटके ही बाय॥
येहिन से तुम मांगि रह्‌या है वा मनई का क्‍वारा।
जउन बरूद के गड्‌ड मां बइठे होइन भूंजै होरा॥
जे अपने स्‍वारथ मां ढड़कै मिरजापुर कस लोटिया।
पानी पी के चट्‌टय फ्‌ोरै जे पउसरा कै मेटिया॥
जे जात धरम भांषा बोली मां करबाउथें जंउहर।
जे नेम प्रेम भाईचारा से मिलैं न कबहूं जिवभर॥
जे ईटा गारा निता बहामै अपने भाई का रक्‍त।
भले पीलिया केर बेजरहा अस्‍पताल मां मरै बेसक्‍त॥
रक्‍तदान न द्‌याहै ओही भले सड़क का सींचै।
जउन बंदा भगतन से दइअव केर कर्‌याजा हीचै॥
अइसा रूक्ष दुइ गोड़ा गड़इता कै मगत्‍या तुम जोनी।
जे मजूर के खून पसीना कै भख लेय करोनी॥
मनई से नीक ता हमरै जात ही सुना गदहिया रानी।
चुहकै नही अरक्षण कोल्‍हू प्रतिभा केर जमानी॥
लख्‍यन लालू के ढंग का देखे रंझ ही तोहरे जिव का।
पै हम पशु पच्‍छिन के खातिर जीतीं अबै मेंनका॥
तुम गुलाब का सपन न द्‌याखा बना निराला केर कुकुरमुत्‍ता।
य मनई  से वफादार है  हमरे देस का कुत्‍ता॥
...................................... कवि  हेमराज हंस             9575287490 ........................................................

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