बघेली कविता
उनही काजू कतली औ हमरे निता फूटा।
लें का हो ता लइ ल्या नहीं हेन से फूटा।।
रात दिन हम धींच कुटाई।
खुदय गिरी औ तुहीं उचाई।।
महुआ हम बीनी औ तुम लाटा कूटा।
घरय जइ ता धाबय टोरिया।
हरबिन मोर थथोलय झोरिया।।
बपुरी बहुरिगै लिहे मन टूटा।
मालकिन कहय बाह करतूती।
येसे नीक लगा ल्या भभूती। ।
जेही मान्यन मगरोहन वा ता निकरा खूंटा।
उनही काजू कतली औ हमरे निता फूटा। ।
हेमराज हंस