जब से य मन मोहित होइगा,
जब से य मन मोहित होइगा, तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै, चलनी मां औ सूप मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्हिन ,हमरे दोनिआ दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं, एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर, निकराथें नलकूप मां॥
रात रात भर लिख के कीरी , नींद न आई नैनन का।
औ मन बाउर ध्यान लगाबै , जस भिच्छुक स्तूप मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै, तन औ मन के ओरहन कै,
तब से महकय लगें हंस , हो जइसा मंदिर धूप मां॥
हेमराज हंस
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें