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रविवार, 9 अक्तूबर 2022

अपना का सेतै लगै अब माख

अपना का सेतै लगै अब माख सिरी मान 
,जन गन मन कै केहनी रही कबिता। 
आतातायी बहेलिया के तीर के बिपछ माही ,
पंछिन के आँख केर पानी रही कबिता।।  
लोकतंत्र पिअय लाग अंगरेज घाइ खून
 दीन दुखियन का पीर सानी रही कबिता।  
ठठुरत हरिआ खदान कै मेहरिआ कै 
औ बिना बड़ेरी बाली छान्ही रही कबिता। । 

योजना से हित  ग्राही जोजन खड़ा है दूर 
ब्यबस्था कै कइसा के सराह बनी कबिता। 
जउन भाईन केर हीसा भइबय हड़पि धरे 
जरि रही छाती वखार आह बनी कबिता।। 
डूबि रहे जात बाद बाली जे नहर माही ,
उनही बचामै  का मल्लाह बनी कबिता।  
प्रहलाद प्रेम पथ माही जे लगामै बारी ,
अइसा हिरनकश्यप का बराह बनी कबिता। । 

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

बंदेमातरं


सरग से नीक मोरे देस कै य धरती ही,
जिव से है अधिक पियार बंदेमातरं।
रूपसी के देंह से ही स्‍वारा आना सुंदर य,
आपन माटी देश कै सिंगार बंदेमातरं॥
बहै नदी कलकल पानी करै छलछल,
टेराथें पहार औ कछार बंदेमातरं।
जहां बीर बलिदानी भारत का बचामै पानी,
सूली माही टगिगे पुकार बंदेमातरं॥ 

बुधवार, 2 दिसंबर 2015

लूट लूट बखरी बनाये रहा नेता जी। ।

योजना के तलबा म घूँस का उबटन लगाये ,
भ्रष्टाचार पानी म नहाये रहा नेता जी। 
चमचागीरी के टठिया म बेईमानी का व्यंजन धरे 
मानउता का मूरी अस खाये रहा नेता जी।। 
गरीबन के खून काही पानी अस बहाये रहा 
टेंटुआ लोकतंत्र का दबाये रहा नेता जी। 
को जानी भभिस्स माही मौका पउत्या है कि धोखा 
लूट लूट बखरी बनाये रहा नेता जी। । 
हेमराज हंस ======

मंगलवार, 1 दिसंबर 2015

वा तोहरे बोलिआय का भउजाई आय नेता जी । ।

उइ कहा थें देस से गरीबी हम भगाय देब 
गरीबी य देस कै लोगाई आय नेता जी। 
गरीबी भगाय के का खुदै तू पेटागन मरिहा 
वा तोहई पालै निता बाप माई आय नेता जी। । 
गरीबी के पेड़ का मँहगाई से तुम सींचे रहा 
तोहरे निता कल्प वृक्ष नाइ आय नेता जी। 
भाषन के कवीर से अस्वासन के अवीर से 
वा तोहरे बोलिआय का भउजाई आय नेता जी । । 
हेमराज हंस 
  

बुधवार, 4 मार्च 2015

फगुनहटी बयार ( बघेली मा)

फगुनहटी बयार  ( बघेली मा) 

चलै मस्त बयार पिआर लागै ,महकै महुआ अस देह के फागुन। 
सरसो निकरी पहिरे पियरी औ सुदिन सेँधौरा के नेह के फागुन। । 
जब काजर से मेहदी  बोलिआन ता घूँघट नैन मछेह के फागुन। 
औ लाजवंतीव   डीठ लागै   जब रंग   नहाय सनेह के फागुन। । 
                                           2                                                                                                                 
आसव करहा नौती कड़बा  ता  गामै  लगा  अमराई मा फागुन। 
हाथी अस चाल चलै जब गोरी ता महकै हाथ कलाई मा फागुन।।
 गाल मा फागुन चाल मा फागुन औ गमकत पुरवाई मा फागुन। 
देस  निता  जे निछावर बीर  ता  भारत के तरुणाई मा फागुन। । 
                                                                                             
                                          3                                                   
रंग मा फागुन भंग मा फागुन उमंग उराव के कस्ती मा फागुन। 
मस्ती मा फागुन बस्ती मा फागुन मिल्लस बाली गिरस्ती मा फागुन।। 
दीन दुखी के मढ़ैया से लइके कोठी हवेली औ हस्ती मा फागुन। 
य मंहगाई मा होरी परै कुछु आबै सह्वाल औ सस्ती मा फागुन। । 
                                                                                              
                                                                                               
      कवि-  हेमराज फलाने