रविवार, 9 अक्तूबर 2022

अपना का सेतै लगै अब माख

अपना का सेतै लगै अब माख सिरी मान 
,जन गन मन कै केहनी रही कबिता। 
आतातायी बहेलिया के तीर के बिपछ माही ,
पंछिन के आँख केर पानी रही कबिता।।  
लोकतंत्र पिअय लाग अंगरेज घाइ खून
 दीन दुखियन का पीर सानी रही कबिता।  
ठठुरत हरिआ खदान कै मेहरिआ कै 
औ बिना बड़ेरी बाली छान्ही रही कबिता। । 

योजना से हित  ग्राही जोजन खड़ा है दूर 
ब्यबस्था कै कइसा के सराह बनी कबिता। 
जउन भाईन केर हीसा भइबय हड़पि धरे 
जरि रही छाती वखार आह बनी कबिता।। 
डूबि रहे जात बाद बाली जे नहर माही ,
उनही बचामै  का मल्लाह बनी कबिता।  
प्रहलाद प्रेम पथ माही जे लगामै बारी ,
अइसा हिरनकश्यप का बराह बनी कबिता। । 

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