शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

रीत काल का छंद।

 बिन इस्नु बिन पाउडर, फागुन गमकै गंध।
द्यांह धरे  बगै  जना ,  रीत  काल  का छंद।

अस कागद के फूल मा, महकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलय , पंचबटी का संत।। 


फगुनहटी बइहर चली ,गंध थथ्वालत फूल।
भमरा पुन पुन खुइ करै, तितली पीठे गूल। । 

मन मेहदी अस जब रचा, आँखिन काजर कोर।
सामर  सामर  हाथ  मा, जइसन  गदिया   गोर। ।    

असमव उनखे बाग, मा नहीं कोयलिया कूंक।
मन मसोस रहि जाय औ, उचय हदय मा हूक। । 


सड़क छाप हम आदमी, उइ दरबारी लोग।
हम ता बिदुर के साग अस अपना छप्पन भोग। ।

 
भेद भाव बाली रही , ज्याखर क्रिया कलाप।
हर चुनाव के बाद वा, बइठे करी बिलाप। ।

 
नेतन काही फ्री मिलै , ता लागै खूब उराव।
जनता के दारी उन्ही , लागै मिरची घाव। । 




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