सगली दुनिया हिबै अचंभित
सगली दुनिया हिबै अचंभित ,दइके नाक रुमाल।
सत्य अहिंसा के धरती मा , करुणा होय हलाल। ।
छाती पीट -पीट के रोबै, साबरमती कै धारा।
अब ता बरुनव के घर माही। धधक रहें अंगारा। ।
कोउ बता द्या राजघाट मा ,गांधी जी से हाल।
जहाँ कै माटी सत्य अहिंसा केर विश्वविद्यालय।
वहै धरा मा बहै खून ,औ मार काट का परलय। ।
गौतम गाँधी के भुइ माही बसे हमै चंडाल।
भारत माता के बिटियन के मरजादा का बीमा।
अब ता उनखे बेसर्मी कै नहि आय कउनौ सीमा। ।
बड़मन्सी कै बोली ब्वालै बड़ बंचक बचाल।
काल्ह द्रोण मागिन तै अउठा ,आज लइ लइन जान।
बिद्या कै पबरित परिपाटी तक होइगै बलिदान। ।
रह्यान कबौ हम बिश्व गुरु पै आज गुरू घंटाल।
शहरन माही आजादी के होथें मङ्गलचार।
आजव भारत के गॉवन का दमै पबाई दार। ।
सामंती के दुनाली से कापि रही चउपाल।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें