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सोमवार, 22 जुलाई 2024

लाल जी स्वामी चपना के

 लाल  जी स्वामी चपना के

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लाल  जी स्वामी चपना के। 

करैं पूर मनोरथ अपना के।।  


नमन करी पबरित माटी  का। 

सत्त  सनातन  परिपाटी   का।।

जय कालनेमि  के  हतना  के। 

करैं  पूर  मनोरथ  अपना  के।। 

  


कोउ चढ़ाबै  फूटा   रेउरी ।

कोउ नरिअर लै करै चेरउरी।।

हे ! प्रान बचइया लखना के।

करैं पूर मनोरथ अपना के।।


कोउ करै  मानस भण्डारा। 

गूंजय जयश्री  राम का नारा।। 

पूजन    हबन    अर्चना   के। 

करैं पूर मनोरथ अपना के।।


धन्य  है देस के रीत प्रथा का। 

कोउ  बदना  बदय  कथा  का। । 

पूर   करइया   सपना     के। 

लाल  जी स्वामी चपना के। 

करैं पूर मनोरथ अपना के।।  

सोमवार, 24 जून 2024

MAIHAR RAJY KA ITIHAS

 

 मैहर रियासत के राजा बृजनाथ सिंह जू देव (जन्म 1896 – मृत्यु 1968) का 16 दिसंबर 1911 में राज तिलक हुआ।  वे प्रजा पालक धर्मनिष्ट न्यायवादी राजा थे। उन्ही के शासन कल में मैहर में एक तपोनिष्ट सिद्ध संत प्रातः स्मरणीय स्वामी नीलकंठ जी महराज (जिनका आश्रम अब भी ओइला में है ) भी रहते थे। उस समय मैहर के भदनपुर पहाड़ की घाटी  में कल्लू डाकू का बहुत अत्याचार था ,लूटपाट हत्या जैसे जघन्य अपराध करके जन मानस को भयभीत कर रखा था। जनता त्राहि त्राहि कर रही थी।  जब खबर किले तक पहुंची तो ,राजा ने जिन्दा या मुर्दा पकड़ने के लिए डाकू के ऊपर 500/ का ईनाम घोषित कर दिया। परिणाम स्वरुप  बदेरा गाँव के साहसी चौबे लोगों ने उसे जिन्दा पकड़ कर राजा को सौप दिया। राजा की कचहरी में न्याय प्रकिया का पालन करते हुए अदालत ने कल्लू डाकू को फांसी की सजा सुनाई । फांसी की खबर पूरे मइहर राज्य में फ़ैल गईं। जनता उराव मनाने लगी। 16 जनबरी 1912 को  विष्णुसागर  में  फांसी देने का समय निर्धारित। हुआ। फांसी के एक दिन पहले कल्लू डाकू की पत्नी रोते  हुये  प्राणदान की याचना लेकर राज दरवार  गई किन्तु राजा ने उसकी याचना  स्वीकार नहीं की।  तब  उसे किसी ने सलाह दी की वह स्वामी नीलकंठ जी के पास अपनी बिनती सुनाये।  मैहर के राजा उनकी बात नहीं टालेंगे। उसने वैसा ही किया। ओइला आश्रम में महिला को सम्मान सहित जलपान भोजन कराया गया।  इसके बाद स्वामी नीलकंठ महराज जी ने महिला के रुदन से द्रवित होकर उसे वचन दे दिया की कल्लू को फांसी नहीं होगी,भले उम्र कैद हो जाय। और स्वामी जी रात के 12 बजे किला पहुँच कर आपात काल बाला घण्टा बजाने लगे।घंटनाद  सुनकर महाराज बृजनाथ सिंह जू  किले से निकल कर ड्योढ़ी पर आकर देखा तो स्वामी जी को देख कर अवाक् रह गये। उनके चरणों में दण्डवत प्रणाम कर हाथ जोड़ के पूंछने लगे ,बोले स्वामी जी आधीरात को कौन सी समस्या आ गई। सब कुशल तो है न ? आपने किसी सेवादार को नहीं भेजा स्वयं दर्शन देने आ गए। आदेश कीजिए क्या अड़चन है।  स्वामी जी ने कहा राजन बात ही कुछ ऐसी है की मुझे स्वयं आना पडा। बात ये है की आप कल जिसे फांसी देने बाले हैं ,मै उसका प्राणदान मांगने आया हूँ।  आशा करता हूँ ,आप मुझे निराश नहीं करेंगे। राजा ने कहा स्वामी जी शायद आप को ज्ञात न हो वो कल्लू डाकू कितना दुर्दांत अपराधी है। पचासों हत्याएं ,सैकड़ों लूटपाट का दोषी है ,मैहर की जनता उससे त्रस्त थी ,बड़ी मुश्किल वो पकड़ में आया है। अदालत ने उसे मृत्युदंड की सजा दी है। क्या यह जानकर भी आप उसे बचाने का प्रयास करेंगे ? स्वामी जी ने कहा राजन मै चाहता  हूँ की फांसी की जगह उसे उम्र कैद दे  जाय। राजा ने हाथ जोड़ कर कहा ,स्वामी जी आप छमा करें ,देश की न्यायिक प्रणाली में हस्तक्षेप उचित नहीं है। यदि वह कोई संत या ब्राह्मण होता तो विचारणीय था। किन्तु उस दुर्दांत के अपराध के अनुपात में ही सजा दी गई है। आप कोई और सेवा करने का अवसर प्रदान करें। स्वामी जी क्रोधित हो गये ,और कहा की यदि मेरी बात नहीं मानी  गयी  तो मै तुम्हारे राज्य का अन्न जल नहीं ग्रहण करूँ गा।  इतना कह कर अपने आश्रम आ गये। सुबह १०  बजे कल्लू डाकू को फांसी दे दी गई। स्वामी जी मैहर त्यागकर उंचेहरा राज्य की सीमा में गणेश घाटी में रहने लगे।नागौद के राजा साहेब ने   वहां  रामपुर पाठा मेंआश्रम बनबा दिया। स्वामी नीलकंठ जी वही रहकर तप करंने लगे।