य कइसा छब्बिस जनबरी।
मरै पेंटागन गनी गरीब
जिअय देह नंगी उघरी। ।
पंचाइत से संसद तक डाकू गुंडन का पहरा है।
शासन की हैं हियव की फूटी अउर प्रशासन बहिरा है। ।
एक न सुनै एक नहीं द्याखै कासे भइलो बात करी।
उई पीरा का पाठ पढ़ामै जेखे लगी न फांस।
भूंखा सोबइ घर का मालिक चाकर चाटय चमन प्रास। ।
ई सेबक खा ल्याहै देस का इन खे नहि आय नरी गरी।
ऐसी कै बइहर का जानै कइसा ज्याठ बड्यारा।
का जानै डनलप कै गद्दी कइसन ह्वा थै द्यारा। ।
महलन माही पले गलइचा जानै कइसा टाट दरी।
छल प्रपंच के पहिया माही लोकतंत्र कै गाड़ी।
केतू जगै रात भर हरिया खेत खा थी बारी। ।
दरबारन से चउपालन तक चारि रहें सांड वसरा पहरी।
करजा लइके खाय रहेन घी अर्थ ब्यबस्था परी उतान।
भुखमरी बेकारी बोल रही है जय जबान औ जै किसान। ।
गभुआरन कै भूंख खाय आंगनवाड़ी पगुरात खड़ी।
कउने मुँह से स्वाहर गाई गणतंत्र पर्व के बास्कट के।
हम कब तकअभिनन्दन गाई डाकू गुंडा चोरकट के। ।
सत्य अहिंसा अउर त्याग कै हमरे देश मा लहास परी।
चला मिटाई भष्टाचार ता लिख जइ नई इबारत।
अपने देस के भभिस्य का सउपी साफ इबारत। ।
गाँधी पटेल के लउलितियन के संकल्पन का पूर करी।
हेमराज या हमरे देस कै करुना भरी कहानी आय।
मदारी के रहत बंदरिया का दोख द्याब बेइमानी आय। ।
तबहिन ही छब्बिस जनबरी। य कइसा छब्बिस जनबरी।
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