सरग से नीक मोरे देस कै य धरती ही,
जिव से है अधिक पियार बंदेमातरं।
रूपसी के देंह से ही स्वारा आना सुंदर य,
आपन माटी देश कै सिंगार बंदेमातरं॥
बहै नदी कलकल पानी करै छलछल,
टेराथें पहार औ कछार बंदेमातरं।
जहां बीर बलिदानी भारत का बचामै पानी,
सूली माही टगिगे पुकार बंदेमातरं॥
जिव से है अधिक पियार बंदेमातरं।
रूपसी के देंह से ही स्वारा आना सुंदर य,
आपन माटी देश कै सिंगार बंदेमातरं॥
बहै नदी कलकल पानी करै छलछल,
टेराथें पहार औ कछार बंदेमातरं।
जहां बीर बलिदानी भारत का बचामै पानी,
सूली माही टगिगे पुकार बंदेमातरं॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें