का बताई की कहां कहां पिरात है।
बैचैन हबै जिउ मन बूढ़त उतरात है।।
उनखर फरक रही ही सकारे से बायीं आँख
पलकैं लगउतीं लूसी ता काजर सुगात है।।
वाठर बनाउत तक ता उनसे नहीं बनै
लबरी बता रहे हें अमल्लक जनात है ।।
उनखे चिकोटी चींथे कै चिन्हारी बनी ही
अंतस मा उनखे प्रेम का जल प्रप्रात है।।
पाबन पुनीत प्रीत कै पूजा यतर ही हंस
तुलसी के चउरा का दिआ जस टिमटिमात है।।
हेमराज हंस
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