काल्ह कउआ बताबत रहा सुआ से।
ओही मोतिआ बिन्द होइगा जग्ग के धुंआ से।।
जयन्त भले बड़े बाप केर बेटबा आय
ओहू कै आँख फुटि गै कुदृष्टि खुआ से।।
सिंघासन के पेरुआ सब दिन भयभीत रहे हें
कबौं सामना नहीं किहिन खुल के गेरुआ से।।
कहि द्या खबीस से कि वा उछिन्न ना करय
हंस कै रण चण्डी टोर देयी नेरुआ से ।।
हेमराज हंस - भेदा मैहर
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