रविवार, 30 अक्तूबर 2022

इंदिरा गाँधी

जे बदल दइस भुंगोल, नमन वा इंदिरा गाँधी  का। 
इतिहास के पल  अनमोल ,नमन वा इंदिरा गाँधी का।।  
बान्नाबे हजार पकिस्तानिन से , कनबुड्ढ़ी  लगबाइन 
जे कबौ न खाइन  झोल , नमन वा इंदिरा गाँधी का। ।  

भारत रतन पटेल

आजादी  के दिआ मा,  भरिन  जे  बाती तेल। 
देस  करै  सत  सत नमन ,भारत रतन पटेल।। 
 
पांच सै बांसठ राज मा, अइसा कसिन लगाम। 
सब उनखे  ललकार से ,लिहिन तिरंगा थाम। ।
 
 सिरि  सरदार पटेल कै , सूझ बूझ औ ढंग।
 देख के साहस बीरता ,दुनिया रहि गय दंग।
 
गुरिआ गुरिआ गुहि दिहिन ,देस का साहुत सूत। 
जय  बल्लभ  'सरदार'  जी,  भारत   रतन  सपूत। ।
 
हम भारत बासी करी ,शत शत नमन अभार। 
जब  तक चंदा  सुरिज हें,  नाव चली सरदार।  । 
 

शनिवार, 22 अक्तूबर 2022

गुरुवार, 20 अक्तूबर 2022

आचार्य रामसखा नामदेव जी


 हमारी ग्राम गिरा रिमही बघेली के "दुष्यंत" आचार्य रामसखा नामदेव जी को "विश्वनाथ सिंह जूदेव स्मृति पुरस्कार" मिलने पर हार्दिक अभिनंदन सादर बधाई। मै व्यक्तिगत रूप से मैं दादा नामदेव जी के लेखन से प्रभावित हूँ। और उनका प्रशंसक हूँ। उनके विवाद और एजेंडा रहित काव्य शैली का मै कायल हूँ। वे बघेली के उन विरले साहित्यकारों में हैं, जो केवल समाज के लिए लिखते हैं,किसी को खुश करने के लिये नहीं। वे किसी सड़ांध बदबूदार विचारधरा के पोषक और पिछलग्गू नहीं हैं।उनके साहित्य में सामाजिक सरोकार , लोक संस्कृति और अपनी माटी की सोंधी सुगंध है। विंध्य और बघेली को ऐसे महान सपूत पर गर्व है। कोटि कोटि बधाई.

नंगई से नहीं

नंगई      से      नहीं          बड़प्पन     से         नापा।
फेर   तुहूं   अपने    सीना    का   छप्पन  से     नापा।।
य  देस    देखे  बइठ   है राजा  नहुष  के  अच्छे   दिन  पै ,
वाखर मतलब या नहीं तुम बाल्मीक का बिरप्पन से नापा। ।  
                 @ हेमराज हंस -भेड़ा मैहर 
 
 
 

बुधवार, 19 अक्तूबर 2022

बिक्ख उइ देथें

बिक्ख उइ देथें महिपर मा घोर के। 
औ रहपट जड़ रहे हें हाथ जोर के। । 
हंस 

अब ता सगले पुन्न धरें अपना के हीसा मा।

 अब ता  सगले  पुन्न  धरें अपना  के   हीसा  मा। 
तउ   लजाते  हया   देख   मुँह  आपन   सीसा मा।
 
को   फुर  कहै  बताबै   भाई   देस  के   जनता से 
जबकी  हेन उइ हेमै  बितुते   सत्ता के चालीसा मा। । 
 
उइ  पाखण्डी देस के सूरज काही जुगनू लिख दीन्हिन 
लबरी   पोदी  बाला  वा इतिहास  है  हमरे  हीसा मा। । 
 
सिये सिये अस ओंठ हे भइय्या अमरित परब आजादी के 
लागै  जइसा  आंखर- आंखर  बंद हो  बपुरे  मीसा मा। । 
 
सागर  कै अउकात   नहीं पै   नरबा  खुब अभुआय लगे 
हंस  कहा  थें उइ   अगस्त का  बंद है  हमरे  खीसा मा। ।   
                         हेमराज हंस भेड़ा मइहर  

गाँधी जी अमर हें

अब  अउर  येसे  केतू निकहा सीन चाही। 
उनखर धड़कन नापै का नई मशीन चाही।। 
चश्मा  के  मथरे  अब   काम   न    चली   
उनखर चरित्त द्याखैं  का अब दूरबीन चाही। । 
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 गाँधी  जी  अमर  हें गंगा  के धारा अस। 
देस के माटी  मा जन जन के नारा अस। ।  
गाँधी जी पढ़ाये जइहै सब दिन इस्कूल मा 
भारत के बचपन का गिनती औ पहारा अस। । 
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हम   दयन    नये   साल  कै   बधाई।  
फलाने कहिन तोहइ लाज नहीं आई।
कुटिया के खुटिया का कलेण्डर बदला है 
पै अबहूँ   धरी   ही    टुटही   चारपाई। ।   
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कोऊ अमीरी से ता कोउ गरीबी से दुःखी है। 
कोउ दुसमन से ता कोउ करीबी से दुःखी है। । 
या   दुनिया   मा   सुख   संच  हे रे नहीं  मिलै  
कोउ मियाँ  से ता  कोउ  बीबी  से  दुःखी  है। ।     
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वा भले जीभ दार है पै मकुना मउना है। 
एहिन से ओखे हीसा मा अउना पउना  है। । 
पड़बा है काहे दूबर य बात दिल्ली जाना थी 
दुधारू लोकतंत्र के पडउना  का थम्हाउना है। । 
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मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

नास्तिक का पुरानिक बताऊ थें

उइ बात बड़ी ठोस औ प्रमानिक बताऊ  थें। 
सामाजिक   जहर   का   टानिक   बताऊ थें।। 
जब  जब   राजनीत   का   हांका   परा   थै   
ता फलाने   नास्तिक का  पुरानिक बताऊ थें। । 
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काहू का पिसान से ता काहू का चोकर से चला थै। 
काहू का एक्का से ता काहू  का जोकर से चला थै।।   
वा  महतारी  के  हाथ  कै  रोटी  भला  का जानै 
ज्याखर    रसोई    घर  नोकर    से    चला    थै। ।  

सोमवार, 17 अक्तूबर 2022

हिन्दी पढ़ डाक्दरी रही

 हिन्दी डाक्दरी पढ़ रही,गदगद मध्यप्रदेस।
पै अंगरेजी  से  लड़ै , हाई कोट  मा  केस।।
चांदी  कै चम्मच करै , पतरी केर दुलार। 
या बरबस्ती देख के , दोनिआ परी उलार।।   

रविवार, 16 अक्तूबर 2022

आयुर्बेद का बाप।

जब सागर का मथा गा ,कढ़े रतन दस चार।
ओहिन मा धन्वन्तरी , मिलें हमी उपहार। 
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दुनिआ भर कै औषधी , रोग बिथा संताप। 
धनबन्तरि का सब कहै , आयुर्बेद का बाप। 
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तिली मूंग उर्दा सरा , भा यतरन  झरियार। 
बरा मुगउरा के निता , परी कहाँ से दार। 
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हे लछिमी जू आइये

हे लछिमी जू आइये , साथै सिरि गनेस। 
मोरे भारत देस मा , दालिद बचै  न शेष। 
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जिधना से भृगु जी हनीन  ,श्री हरि जू  के लात। 
लछमी  जू  रिसिआय के ,  चली  गयीं गुजरात। । 
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दियना  कहिस  अगस्त से,  दादा  राम लोहार। 
तुम पी गया समुद्र का ,हम पी ल्याब अधिआर। । 
दीपदान  कै लालसा , तीरथ का अनुराग।
चित्रकोट कोउ जा रहा कोऊ चला प्रयाग। । 
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धरमराज  कै फड़ सजी ,  चलै जुआं का खेल। 
गाँव  गाँव  मा  झउडि गय , शकुनी बाली बेल। । 
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राबन के भय से लुका , जब से बइठ कुबेर। 
तब से धनी गरीब कै अलग अलग ही खेर। । 
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उल्लू   का  खीसा  भरा ,  छूंछ हंस कै जेब। 
या भोपाल कै चाल  की, दिल्ली का फउरेब। । 
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बन गय दुइज लोलर।

 जिधना जमुना जी किहिन, यम के तिलक लिलार। 
भाई  बहिन  के  प्रेम  कै ,  बन  गय  दुइज   लोलर। । 
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हयी  हमारे  देस  मा ,  बहिनी  बिटिआ  पूज। 
भाई  बहिन  के  प्रेम  का  ,पाबन  भाई  दूज। । 
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ईसुर  से  बिनती  करी , यहै  लालसा   मोर। 
अपना का जीबन रहै , जगमग  सदा अजोर। । 
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जुगनू जब खेलिस जुआं , लगी  जोधइया दाव। 
पुनमासी  पकड़ै  लगी ,    अधिआरे   के   पाँव। 
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हमरे  तिथ  तिउहार  मा ,  जब  से चढ़ा बजार। 
हम बांसुरी का भूल के , किहन बरूद से प्यार। ।  
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चारिव कइती लगी है ,मोरे देस मा जोंक। 
जे नहि चूसै पा रहा , वहै रहा है  भोंक  । ।  



अइसा निर्मल गाँव।

हमरे देस मा होइ चुकें ,अइसा निर्मल गाँव। 
लोटिया  लै  बाहर  चली , बहू  बराये   पाँव।।  
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आजादी के दिआ माँ, भरिन जे  बाती तेल। 
भारत रतन सपूत हैं ,श्री सरदार पटेल। ।  
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दुनिआ में अनमोल क्षण ,होता माँ का साथ। 
माँ ही अबध की साँझ है ,माँ कशी का प्रात। 
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जीवन  में  भरता  रहे , रंगोली  सा  रंग। 
उगे भाग्य का भास्कर ,लेकर नई उमंग। । 

 

मुँह मा दाबे पान। BAGHELI KAVITA

रोटी से बढ़ के हिबै ,जेखे नित अमलास। 
वा कइसा अनुभव  करी ,पीरा आंसू त्रास।। 
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हमरे हियाँ मनइन  कै ,गजब निराली शान। 
पेटे  मा  दाना  नहीं ,  मुँह  मा  दाबे   पान। ।   
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भाई  चारा  प्रेम  का , चला  लगाई  रंग। 
तबहिन अपने देस मा बाजी झांझ मृदंग। । 
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जनता से बढ़ के नहीं ,लोकतंत्र मा  धाक। 
रय्यात से गर्रान जे , बागा रगड़त नाक।। 
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क्यत्ता बड़ा बिचित्र है ,देस भक्त दरबार। 
जे हाँ मा हाँ  न कही ,वा घोसित गद्दार। । 
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बामपंथ अस जाड़ है पूंजीपति कस  पूस।
उनखे सोसन दमन मा, सूरज केर जलूस। ।  

 

मालिक नामक हराम।

 कोउ हिंदू मुस्लिम करै ,कोऊ आर्य अनार। 
दोउ जन का चलि रहा ,है घिनहा ब्यापार। । 
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किहिन मजुरै देस का ,सबसे ज्यादा काम। 
तउअव जस मानै नहीं ,मालिक नामक हराम।। 
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धोखा दीन्हिस इंडिया ,भरी बिपत के ठाँव। 
तब  आंसू  पीरा लये , भारत  पहुंचा   गांव। ।  
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हमरे हियाँ गरीब कै, सब दिन आँखी भींज। 
धन्ना  से ठ कै आत्मा ,  कबहूँ  नहीं  पसीझ। । 
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सजी सनातन नार

हाथे मा मेंहदी रची ,कर स्वारा सिगार। 
गउरी पूजैं का चली ,सजी सनातन नार। 
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भले  छह्याला   मा रहा  ,सत्त  सनातन  बीज। 
आपन सत छाड़िस नहीं ,परिपाटी अस चीज। ।  
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चुनकी  मा चुकरी धरे ,भरे  सतनजा  भूंज। 
 दाऊ कै मइया चली , अगना हरछठ पूज।। 
**********192********************
छुला जरिया कांस औ ,पसही महुआ फूल।  
हरछठ प्रकृति अभार कै ,हिबै भाबना मूल। । 
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**********193**************
भारत माता के रतन लाड़िल अटल लोलार। 
जन जन के हिरदय बसें दीन्हिस देस दुलार।।
*********194************************* 
अटल बिहारी देस के उज्जर एक चरित्र। 
उनखे अस को देस मा भला बताबा मित्र।। 
*********195**********************
भारत के नेतन निता अटल एक इसकूल। 
देस देय श्रद्धांजली सादर आंखर फूल।। 
*********196********************
आसव  के सामन  मा  सजनी , भा  येतू बदलाव। 
तुम लगत्या हा खजुराहो अस ,औ हम देवतलाव।।  
*********197*******************
धनहन  मा  दर्रा  परा ,पाबस मरै पिआस। 
दम्भी बादर कइ रहें , सामान का उपहास।।  
*********198****************
ऊपर दउअय रुठि गा ,औ नीचे दरबार। 
धरती पुत्र किसान कै , को अब सुनै गोहर।। 
********199*****************
रुपया किलो अनाज मा ,जबसे जांगर टूट। 
दिन भर ख्यालै तास उइ ,साँझ पिअयं दुइ घूंट। । 
********200************************
दिल्ली ललकारै लगी ,सुन रे बीजिंग नीच। 
जो तै ब्रातासुर  हये , ता  हम  बज्र  दधीच। । 
*********201*********************
हर  हर  महादेव  से , गूंज  उचा गलबान। 
ललकारिस जब इंडिया , चीनी पेल परान। । 
*********202**********************
दगा बाज ओ चाइना ,तोही दई तिलाक। 
अब भारत के हद्द मा , चली न एकव धाक। ।
*********203********************* 
बांसठ का भउसा नहीं , सुन ले जाहिल चीन। 
अब  भारत  समरथ हबै ,  घुस  के  लेइ बीन। ।  


 

 

आबा हे गनराज।

गनपति  जू  हैं  देस मा, रास्ट  बाद  के मान। 
साक्षी  है  पूना  अबै , अउर तिलककै आन। ।
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भरिन तिलक जी भक्ति मा, देस भक्ति का रंग। 
जग  मा  न  हेरे  मिली ,  या  इतिहास   प्रसंग। ।।
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रिद्धि सिद्धि सुभ लाभ लै ,आबा हे गनराज। 
अपना का स्वागत करै ,भारत केर समाज। ।
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धन्न  राष्ट्र  के  रीत  का , धन्न है भारत देस। 
देस भक्ति के रूप मा ,हाजिर स्वयं गनेस। ।
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 जय गनेस सब जन कही जय जय उमा महेश।
सिउ जी के परिवार,  अस  सुखी  रहय य देस।। 
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कबहूँ कुरुआ मा नपयन

कबहूँ कुरुआ  मा नपयन ,कबहूँ नपयन कुरई। 
बासमती  उनखे  निता,   हमरे   निता   कोदई। । 
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हाँ  हजूर  हमहूं  हयन , फाँसी  के  हकदार। 
हमसे  कहबररै  नहीं ,  रिक्शा  काहीं  कार। । 
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मघा नखत बदरी करय धरती का खुशहाल।
महतारी  के  हाथ  कै  जइसा  परसी  थाल।।  
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नीचन  मा  सत्सङ्ग  का ,  एकव   नहीं प्रभाव। 
जस घिनहाई मा रमै , कुकूर सुमर सुभाव।।  
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राजनीत औ मीडिआ ,दुनहु का दिल फ्यूज। 
इनही  चाही बोट औ ,उनही ब्रेकिंग न्यूज़। ।  
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अंतस मा पीरा करै, अपनेन का बेउहार। 
लंका जीते राम जू , औ गें अबध मा हार। ।  
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चोरन का चोट्टा दिखय ,औ शाहन का शाह। 
पै झरहन  कै रात दिन ,सुलगै छाती डाह। ।  
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शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

धन्न हें बाबूलाल

 धन्न  बिन्ध्य  कै भूमि या, धन्न हें बाबूलाल।
गदगद माटी होइ रही , गांव गली चौपाल।। 

रीत काल का छंद।

 बिन इस्नु बिन पाउडर, फागुन गमकै गंध।
द्यांह धरे  बगै  जना ,  रीत  काल  का छंद।

अस कागद के फूल मा, महकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलय , पंचबटी का संत।। 


फगुनहटी बइहर चली ,गंध थथ्वालत फूल।
भमरा पुन पुन खुइ करै, तितली पीठे गूल। । 

मन मेहदी अस जब रचा, आँखिन काजर कोर।
सामर  सामर  हाथ  मा, जइसन  गदिया   गोर। ।    

असमव उनखे बाग, मा नहीं कोयलिया कूंक।
मन मसोस रहि जाय औ, उचय हदय मा हूक। । 


सड़क छाप हम आदमी, उइ दरबारी लोग।
हम ता बिदुर के साग अस अपना छप्पन भोग। ।

 
भेद भाव बाली रही , ज्याखर क्रिया कलाप।
हर चुनाव के बाद वा, बइठे करी बिलाप। ।

 
नेतन काही फ्री मिलै , ता लागै खूब उराव।
जनता के दारी उन्ही , लागै मिरची घाव। । 




पुरखन के सम्मान का,

जेखे आपन बिछुरिगें, सुधि म भीजै आँख।
उनही है श्रद्धांजली, के दिन पीतर पाख।। 


पुरखन के सम्मान का, पितर पाख है सार।
जे हमका जीबन दयिन,उनखे प्रति आभार। ।    

जिआ सौ बरिस पार तक,

 नारी  के सम्मान  का, नवरातर  है  पर्व।
ताकी हम पंचे करी, अपने आप मा गर्व। ।

हे ! पुरुषोत्तम राम जू  ,हती  दशानन  मार।
ताकी कुछ हलुकाय अब, भू मइया का भार। । 

गाँधी वाद है बिस्व मा एक बिचार अजोर।
जिनखे बल आई हिआ, आजादी कै भोर। । 

जिआ सौ बरिस पार तक,
जननायक परधान।
भारत के  खातिर  हयन,  अपना  शुभ  बरदान। । 

दस दुष्कर्मिन का टिकस

 दियना  कहिस  अगस्त  से,  दादा  राम जोहार।
तुम पी लिहा समुद्र का, हम पी ल्याब अधिआर। । 


दस दुष्कर्मिन का टिकस, हत्तियार का बीस।
लोक तंत्र के सदन के, उचै हिदय मा टीस। ।

 
केतू  घिनही  लग  रही,  राजनीत  कै चाल।
टुकुर टुकुर जनता लखै, दइके नाक रुमाल। । 


दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट।
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट। । 

नेता  जी  के  नाव  से , उभरै  चित्र   सुभाष।
अब के नेता लागि रहें, जइसा नहा मा फास।।

 
गांव गांव मदिरा बिकै , दबा शहर के पार।
कउने सब्दन मा करी अपना का आभार। ।

सुनिस घोसना कापि गा, थर थर बपुरा पेण्ट।
खीसा  का  बीमा  करी , जेब  कतरा  एजेण्ट।।  


सरबर मा चाकी परै, जब देखा तब जाम।
ओखे बिन सब अरझ गें , बड़े जरुरी काम। । 

भूखों  की ए  बस्तियाँ  , औ  फूलों के जश्न।
ओ माली तेरी नियत पर ,क्यों न उठेंगे प्रश्न। । 

अपने छाती  हाथ  धर ,  खुदै  करा    महसूस।
अइसन कउन किसान है, जे नहि दीन्हिस घूस। ।

करोना

 मिली  करोना  कै  दबा,  बरियत्तन  हे राम।
अब ता चीन के पाप का, होई काम तमाम।। 


परी  करोना  रोग  कै,  दुनिया  भर  मा हाक।
मुँह मा मुसका बांध के, दुइ गज रखी फराक।।  

सिसकै बपुरा मुल्क।

कासी पुनि के सजी ही,दुइ सौ सालन बाद। 
गुंजै डमरू  शंख  औ,  हर हर  भोले  नाद। । 

भारत माता ही बिकल,सुन के दुःख सन्देश।
सेना पति का खोय के, शोकाकुल है देस।। 


टूटी फूटी सड़क मा, टोल बरिअ र  शुल्क।
जय हो नेता आप कै, सिसकै बपुरा मुल्क। ।

 
अपना कहि के चल दिहन, टी बी मा दुइ टूक।
कोउ  भरा  उराव  मा,  उचै  काहु  के  हूक । ।

 
मॅहगी जबक चीज भै, महग तेल पिटरोल।
तउ रजधानी मउन ही, कढ़ै न एकव बोल। । 

 
जनता काही बजट या, लागा थै या मेर।
जइसा क़्वामर पान मा, ब्याड़ै लउग चरेर। ।  

सम्पाती  के  दंभ कै,  द्याखा   ऊंच   उड़ान।
जो जटायु अस उड़त ता, करत देस गुनगान। ।


गौरव शाली कुर्सियां, बदमिजाज आसीन।
समझ  रहे  वे  स्वयं  की, मेघा  दक्ष प्रवीन। ।        

 

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

नहीं बनाबै बार

 सदा  गरीबों  ने  लड़ा लोक  धर्म  का  युद्ध।
पर कुलीन की कोख से आये सब दिन बुद्ध।। 

 
मॅहगाई मा एक सम ही सब कै सरकार।
कउन गड़ारी  गड़ारै नहीं बनाबै बार। । 

जे आफत मा कइ रहें आपन उल्लू सीध।
उइ दानव से नीक हें हमरे देस के गीध।।  

शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार।
ईश्वर को लेना पड़ा परसुराम अवतार। । 


मिला सदा इस देश को बिप्र का आशीर्वाद।
चाहे परसुराम हों य मंगल अटल अजाद।।  

देख रहा है देस या उनहूँ कै करतूत।
माओ बदिन के निता जे हैं साहुल सूत। । 


बहुत सहि चुका देस या नक्सल अत्याचार।
अब ता ओखे रीढ़ मा हरबी कारी प्रहार। । 


सिंघासन बिदुराथै दइ म्याछन मा ताव।
जनता सिसकै देस मा महगाई के घाव। । 


बहिनी से नरकजी तक जे न करैं लिहाज।
नारी के सम्मान कै ओऊ देंय अबाज। । 

घ्वान्घा मा तइती बधी मुदरी नव ग्रह केर।
बगैं पीर मजार तउ लिहिस सनीचर गेर।। 


बेमतलब के बहस मा दहकैं ठोंकैं ताल।
महगाई मा मीडिआ पूँछै नहीं सबाल। ।  


महगाई जब जब किहिस जनता का हलकान।
हष्ट पुष्ट सरकार तक लइ लीन्हिन बइठान।  । 

दारू  बंद  बिहार  मा, लागू कड़क अदेस।
भर धांधर जो पिअय खय ,आबा मध्यप्रदेश।।
आबा मध्य प्रदेश ,हिया ता खुली ही हउली।   
पानी कै ही त्रास खुली मदिरा कै बउली। ।
पी के चह जेतू मता ,कउनव नहीं कलेस।
कबहूँ पाबन्दी नहीं अपने मध्य प्रदेश। ।

सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

आबा बिकास का गड़बा देखाई थे। BAGHELI KAVITA

आबा  बिकास  का हम  गड़बा  देखाई  थे। 
वमै  डबरा योजना  का  पड़बा   दिखाई थे।। 
 
जउन   किसानन   कै  आमदानी  भै दूगुन 
ओखे  मड़इया  के हम खड़बा  देखाई थे। । 
 
जउन  खाद  बीज  खितिर   गहन   धरा है 
वा किसानिन कै झुमकी औ छड़बा देखाई थे। । 
 
मध्ध्यान  भोजन  का  सेबाद  बड़ा   गुरतुर  है 
अपना  का  इस्कूल  के हम भड़बा  देखाई थे। । 
 
भमरी जब परिगै  ता वा बजगीर साथ भागिगै  
 वा उढ़री  राजनीत का हम मड़बा देखाई  थे।  ।
 
हंस  के   बगिया   मा  लिपटिस  कै  राज   ही 
मुरझान परा आमा का हम कड़बा देखाई थे।  ।   
      @हेमराज हंस भेड़ा

रविवार, 9 अक्तूबर 2022

चाहे करैं जहां मुँह काला। ।

उनहूँ  का  पहिराबा   माला। 
काहे लागिगा जीभ मा ताला। । 
उइ ता  इंद्रा  के बंसज आही 
चाहे  करैं जहां  मुँह  काला। ।
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उइ कइथा फ्वारैं का अमकटना ह्यारा  थें। 
आपन चरित्त चमकामै का घटना ह्यारा थें।। 
टिकस देथें हेर हेर के खुद अपराधिन का 
आपन दाग मूंदय के निता उपटना ह्यारा थें।
************************************
गुंडा का न मारा काल्ह नेता बन जई। 
पाथर जब  खिअइ ता रेता  बन  जई। । 
कानून  बनाई वा सदन मा बइठ के    
हमरे समाज का बिधि बेत्ता बन जई। । 
**********************************   
 

अपना का सेतै लगै अब माख

अपना का सेतै लगै अब माख सिरी मान 
,जन गन मन कै केहनी रही कबिता। 
आतातायी बहेलिया के तीर के बिपछ माही ,
पंछिन के आँख केर पानी रही कबिता।।  
लोकतंत्र पिअय लाग अंगरेज घाइ खून
 दीन दुखियन का पीर सानी रही कबिता।  
ठठुरत हरिआ खदान कै मेहरिआ कै 
औ बिना बड़ेरी बाली छान्ही रही कबिता। । 

योजना से हित  ग्राही जोजन खड़ा है दूर 
ब्यबस्था कै कइसा के सराह बनी कबिता। 
जउन भाईन केर हीसा भइबय हड़पि धरे 
जरि रही छाती वखार आह बनी कबिता।। 
डूबि रहे जात बाद बाली जे नहर माही ,
उनही बचामै  का मल्लाह बनी कबिता।  
प्रहलाद प्रेम पथ माही जे लगामै बारी ,
अइसा हिरनकश्यप का बराह बनी कबिता। । 

रात रात भर किहन तरोगा

 रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगमानी  मां।
बड़े सकारे  मरे  मिले उंइ  एक  चुल्‍लू  भर पानी मां॥

नंच   नंच  आँखिन  से  झांकै   बड्‌डे   जबर  सपन,
बोली   बड़ी   पिआर   लगाथी   तोतली    बानी मां॥
 
संतन  के  जप  तप कीन्हे  इन्द्रासन हालय लागा थै
‘सरमन' सब दिन मारे गे हें सत्‍ता के मनमानी मां॥

शक  के  नजर  से  देखे  जाथें  जब साधू संन्‍नासी तक,
कइसा हमहीं  रिस न चढी हो  लुच्चन  के मेहमानी मां॥

भला जात मा बंट के कउनव  महाशक्‍ति का देस बनी,
जेखर  जनता  बाम्हन  ठाकुर  दलित  औ  बानी   मां॥
 
कोउ  नही  सुनइया   दादू  चह  जेतू    नरिआत    रहा,
सगला देस सुनिस ‘अन्‍ना' का जब बोलिन रजधानी मां॥

खूब  पैलगी  होथी   जेखर औ   समाज  मां  मान  है हंस
उनही  सांझ  के हम देखे  हन गिरत  भंजत रसदानी मां॥
              * @ हेमराज हंस -9575287490 *

शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

लुच्चा अस लागा थें

 उइ बड़े सभ्भदार हें पै गुच्चा अस लगाथें। 
राम दै ! केमाच  के  गुच्छा  अस लगाथें।। 
तुलसी उखाड़ के जब बेसरम लगाइअन ता 
फलाने कहा थें हमीं लुच्चा अस लागा थें।   


सगली दुनिया हिबै अचंभित

 

सगली दुनिया हिबै अचंभित

सगली दुनिया हिबै अचंभित ,दइके नाक रुमाल। 
सत्य अहिंसा के धरती मा , करुणा होय हलाल। । 

छाती पीट -पीट के रोबै, साबरमती कै धारा। 
अब ता बरुनव के घर माही। धधक रहें अंगारा। । 
कोउ बता द्या राजघाट मा ,गांधी जी से हाल। 

जहाँ कै माटी सत्य अहिंसा केर विश्वविद्यालय। 
वहै धरा मा  बहै खून ,औ मार  काट का परलय। । 
गौतम गाँधी के भुइ माही बसे हमै  चंडाल। 

भारत माता के बिटियन के मरजादा का बीमा। 
अब ता उनखे बेसर्मी कै नहि आय कउनौ सीमा। । 
बड़मन्सी कै बोली ब्वालै बड़ बंचक बचाल। 

काल्ह द्रोण मागिन तै अउठा ,आज लइ लइन जान। 
बिद्या कै पबरित परिपाटी तक होइगै बलिदान। । 
रह्यान कबौ हम बिश्व गुरु पै आज गुरू घंटाल। 

शहरन माही आजादी के होथें मङ्गलचार। 
आजव भारत के गॉवन का दमै पबाई दार। । 
सामंती के दुनाली से कापि रही चउपाल।
 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस पूनू

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्‌यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
 

जब से य मन मोहित होइगा

 

जब से य मन मोहित होइगा,

तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै,
चलनी मां औ सूप मां॥
रात रात भर लिहन कराउंटा,
नीद न आई आंॅखिन का।
औ मन बाउर बइकल बागै,
ओ!गोरी तोरे उूब मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,
लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्‍हन,
हमरे दोनिया दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं,
एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर,
निकराथें नलकूप मां॥
सातक्षात्‌ तुम पे्रम कै मुरत,
होइ के निठमोहिल न बना।
द्‌याखा केतू करूना होथी,
ईंटा के ‘स्‍तूप' मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै,
तन औ मन के ओरहन कै,
तब से फलाने महकै ंलागें,
जइसा मंदिर धूप मां॥

शरद कै रात

चितवाथी चरिउ कइ चरकी चमक चंद,
चपल चोचाल अस चोंख चोंख चांॅदनी।


काहू केर जिव करै पपीहा अस पिउ पिउ,
नेह स्‍वाति बूंद का लगाबै दोख चांॅदनी॥


सुकवा जो अस्‍त भा ता उआ है अगस्‍त जी मां,
प्रेम पंथ पानी काही सोख सोख चांॅदनी॥

चकई  के  ओरहन  राहू  केर  गिरहन,
रहि  रहि जाय  मन का मसोस चांॅदनी॥

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पोखरी का पानी जब से थिराय दरपन भा,
तब से जोंधइया रूप राग का सराहा थी।


ठुमुक  ठुमुक  चलै लहर  जो  रसे रसे,
देख देख के तलइया भाग का सराहा थी॥


चांॅदनी से रीझ रीझ पत्‍ता पानी मां पसीझ,
पुरइन  पावन  अनुराग  का  सराहा थी।


जे निहारै एक टक सांझ से सकार तक,

जोंधइया चकोर के वा त्‍याग का सराहाथी॥

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झेंगुर कै तान सुन नाचै लाग जुगनूं ता,
अस लाग जना दीप राग तान सेन का।


भितिया मां चढि के शिकार करै घिनघोरी,
जइसन ‘लदेन'  कांही मारा थै अमेरका॥


ओस  कै बूंद  जस  गिरत देखाय नही,
सनकी से  बात करैं जइसा पे्रमी प्रेमका॥


तन केर मन से जो ताल मेल टूटिगा है,
तब से चरित्र होइगा विश्‍वामित्र मेनका॥

शरद कै रात 

 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

य कइसा छब्बिस जनबरी।

य कइसा छब्बिस जनबरी। 
मरै पेंटागन गनी गरीब 
जिअय देह नंगी उघरी। । 
 
पंचाइत  से  संसद  तक  डाकू  गुंडन  का  पहरा है।
शासन की हैं हियव की फूटी  अउर प्रशासन बहिरा है। । 
एक न सुनै एक नहीं द्याखै कासे भइलो  बात करी। 
 
उई पीरा का पाठ पढ़ामै जेखे लगी न फांस। 
भूंखा सोबइ घर का मालिक चाकर चाटय चमन प्रास। । 
ई सेबक खा ल्याहै देस का इन खे नहि आय नरी गरी। 
 
ऐसी कै बइहर का जानै कइसा ज्याठ बड्यारा। 
का जानै डनलप कै गद्दी कइसन ह्वा थै द्यारा। । 
महलन माही पले गलइचा जानै कइसा टाट दरी। 
 
छल प्रपंच के पहिया माही लोकतंत्र कै गाड़ी। 
केतू जगै रात भर हरिया खेत खा थी बारी। । 
दरबारन से चउपालन तक चारि रहें सांड वसरा पहरी। 
 
करजा लइके खाय रहेन घी अर्थ ब्यबस्था परी उतान। 
भुखमरी बेकारी बोल रही है जय जबान औ जै किसान। । 
गभुआरन कै भूंख खाय आंगनवाड़ी पगुरात खड़ी। 
 
कउने मुँह से स्वाहर गाई गणतंत्र पर्व के बास्कट के। 
हम  कब तकअभिनन्दन गाई डाकू गुंडा चोरकट के। । 
सत्य अहिंसा अउर त्याग कै हमरे देश मा लहास परी। 
 
चला मिटाई भष्टाचार ता लिख जइ नई इबारत। 
अपने देस के भभिस्य का सउपी  साफ इबारत। । 
गाँधी पटेल के लउलितियन  के संकल्पन का पूर करी। 
 
हेमराज या हमरे देस कै करुना भरी कहानी आय। 
मदारी के रहत बंदरिया का दोख द्याब बेइमानी आय। । 
तबहिन ही छब्बिस जनबरी। य कइसा छब्बिस जनबरी। 
  
 

गाँधी जी औ मायावती

कांसी कै मायावती अपना कै मरी मती गाँधी अस जती काही काहे  गरिआइ थे। 
बापू आय राष्ट बाप बापू आय जातक  जाप गौतम केर मरजादा काहे घरिआई थे। । 
सत्ता के भूंख माही सत का मिटाय रहन जनगणमन मा काहे कलह  बमुरा लगाई थे। 
करी  कुछु नीक  निकाई  बन जाबै लछमी बाई सूर्पणखा अस काहे नाक कटबायीं थे। । 

भारतीय संस्कृति मा नारी है परम पूज्य पढ़ लेइ इतिहास अपना जीजा दुर्गावती कै। 
पन्ना धाय अस तप त्याग अनुराग करी कहानी बन जाब  अपनव रानी रूप मती कै। ।
मेघा औ टेरेसा अस जन कल्याण करी वतरय पुन मान होइ कुमारी माया वती कै। 
कुरसी के तीन पांच मा कुलांच कै न आंच देई भारत माही पूजा हो थी त्याग दया मती कै। । 
 
अपना से करी चेरउरी नफरत कै न बांटी रेउरी सत्ता केर मउरी  या सेरा जई सिताप मा। 
काहे  बिनाश  केर  रास  तुम  रचाय  रह्या  राग  द्वेष  इरखा  भासा  बानी  पाप मा। । 
देस का बिकास होइअनेकता के एकता मासब कै सुख शांती ही मनसा बाचा जाप मा। 
गाँधी आय गीता रामायण गाँधी आय नर मा नारायण पै तुम हेरे मिलिहा न कऊनव किताप मा। । 
 


 


बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

राबन का फूफा बताउथें


 उइ राबन  का आपन फूफा बताउथें। 
चलनी अस चरित्त का सूपा बताउथें।। 
पाखंड  के बेशर्मी कै  उदारता तो देखा  
कुलच्छनी सूर्पनखा का सतरूपा बताउथें। । 

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

11राम 11 सनातन

 जय गनेस सब जन कही जय जय उमा महेश। 
सिउ जी के परिवार,  अस  सुखी  रहय य देस।।
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 राम कबिन के  शब्द हैं ,राम संत का ब्रम्ह। 
हुलकी काही आग हें ,औ प्रहलाद का खंभ। । 
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राम देस के प्रान औ, राम बिश्व के गर्व। 
राम ऋचा ऋगवेद कै राम यजुर्व अथर्व। । 
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राघव मरजादा दिहिन, औ माधव जी कर्म।
दुइ लीखन मा चलि रहा,सत्य सनातन धर्म।।  
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महादेव  हैं बिश्व मा, समता बादी ईश।
चह पूजैं श्री राम जू ,चह पूजै दशशीश। ।  
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 किहिस सनातन सब दिना, जन मंगल का गान।
प्राणी मा सद भावना, बिस्व केर कल्यान।।
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भिन्न भिन्न भाखा हईं ,अलग अलग है भेस।      
एक सनातन मा गुहा , पूरा भारत देस।। 
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देस भक्ति औ धरम कै, मूल भाबना एक। 
उत्तर कै गंगा करै ,दाख्खिन का अभिषेक।   
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तीर्थ हमारे देश में, हैं संस्कृति के अक्ष।
वसुधैव कुटुम्बं भावना , जिनका पावन लक्ष।।
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शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार। 
 ईश्वर को लेना पड़ा परसुराम अवतार। । 
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गाँव गाँव   बोबा   जबा  पंडा  दे  थें  हूम।
लोक धरम कै देस  मा चारिव कइती धूम।। 
 
आठैं अठमाइन चढै खेर खूंट का भोग। 
जलसा का कलसा धरे राम जनम का जोग।। 
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परयाबरनी प्रेम कै देखी भारतीय खोज। 
अमरा के छहियां करी अपना पंचे भोज।। 
 
पीपर  मा  बसदेव  जू  बधी  बरा के सूत। 
तुलसी  जू  कै  आरती  आमा मानैं पूत।। 
 
नीम बिराजैं सीतला औ जल बरुन का बास। 
परयाबरन  मा  पुस्ट  है  भारत का बिस्वास।।
 
हमरे  भारत  का  रहै  चह  कउनौ  तेउहार।
सब दिन हम पूजत रह्यन बिरबा नदी पहार। ।
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युग नायक होते नही किसी जाति में कैद। 
वे बीमार समाज के हैं शुभ चिंतक वैद। ।  
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जिधना से भृगु जी हनिंन , श्री हरि जू का लात।
लछमी जी रिसिआय के, पेल भगीं गुजरात।। 
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भारत कै पहिचान हें ,राम बुद्ध औ कृष्न।
इन माही स्वीकार नहि ,कउनव चेपक प्रश्न।
 
 
 
    
@हेमराज हंस -भेड़ा  
 

बिजय दसमी कै सादर बधाई।

अपना का बिजय दसमी कै सादर बधाई। 
जउन भीतर बइठ है वा राबन का जलाई।। 
नजर रखी पुजारी अस शिकारी अस नहीं 
येतुन मा देस समाज कै होइ जई भलाई। । 
 
जंगल बिरबा कटरिगे ,मिली कहा अब मित्र।
फेसबुक मा द्याखत रही , निल कण्ठ के चित्र। ।
 
नील  कंठ  औ शमी  मा  ,देखा  गा   देवत्व।
दसराहा का शुभ हबै ,दरसन करब  महत्त्व। ।  
                 हेमराज हंस -भेड़ा   
 

बंदेमातरं


सरग से नीक मोरे देस कै य धरती ही,
जिव से है अधिक पियार बंदेमातरं।
रूपसी के देंह से ही स्‍वारा आना सुंदर य,
आपन माटी देश कै सिंगार बंदेमातरं॥
बहै नदी कलकल पानी करै छलछल,
टेराथें पहार औ कछार बंदेमातरं।
जहां बीर बलिदानी भारत का बचामै पानी,
सूली माही टगिगे पुकार बंदेमातरं॥