मंगलवार, 7 मई 2024

ओही नव ठे कजरउटा है।

 जेखे  आँखी  कान नही, ओही नव ठे  कजरउटा  है।
जे ऊमर केर फूल हमा, वाखर खासा अदरउटा है।। 

लादे साकिल  मा डब्बा वा   पानी  हेरत  बागा थै, 
रजधानी के निता हमारे, गॉंव मा संच सुखउटा है।।

अनगँइयव से पूछब ता वा,  वाखर   हाल बता देई,
जेखे घर मा आठ खबइया कमबइया एकलउता है ।।

कहिस बुढ़ीबा हमरे बिन्ध मा, फैक्ट्री हैं  रोजगार नही ,
काल्ह  साल  भर मा बम्बई से, मोर करेजा लउटा है।।
 
बन नदिया सरकारी भुंइ मा, सबल केर है अक्तिआर
निबल  मुकदमा लादे बागै, घर मा बचा कठउता है।। 

सरस्वती के मन्दिर  मा, बरती लछमी  की  बाती हंस
नहीं समाइत एकलव्य के फीस मा ओखर अउंठा है।। 
हेमराज हंस  

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