वहै है शक के घेरे मा, जे नेम प्रेम का आदी है।
जे घर फूंक तमासा देखय, वा कबीर का गादी है।।
उनही फिकर ही युबा बर्ग कै, एहिन से सब सुबिधा ही
कोउ अमलासन रहय न पाबै नशा से गाड़ी लादी है।।
निकरी भूंख जब अलगा मारे उड़ी उड़न्की खोरन मा
कोउ उसाँसी नहीं देबइया अपजस केर मुनादी है।।
अनचिन्हार तक से जे राखय बड़ा अपनपौ अंतस से
कहिस अमाबस चंदा काही बहुतै जाती बादी है।।
चाहे कहय अनूतर कोऊ चाह कुलांच अगाध कहै
हंस देस के संबिधान मा बोलय केर आजादी है। ।
हेमराज हंस
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें