लगथै उनखर उतरिगा जादू।
हेरा आन गुनिया अब दादू।।
कब तक सूख पेड़ का द्याहा
पुन पुन पानी पुन पुन खादू।।
बजरंगी का कब तक छलिहै
कालनेम बनि ज्ञानी साधू ।।
एक न मानिस हिरना कश्यप
खुब समझा के हार कयाधू।।
हेन जन जन के कंठहार हें
ओछी जात के आल्हा धांधू।।
✍️हेमराज हंस ✍️
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