शुक्रवार, 31 मई 2024

सरसुती मइय्या होय सहांई। ।

 शाबास बिटिया हार्दिक बधाई। 

सम्मान मिलै खुब बंटय मिठाई।। 

दूनव  कुल  का  नाउ    चलय  

सरसुती मइय्या होय  सहांई। । 

शीर्षक अपना अखबार के।।

 हम  देखइया   दरबार  के। 

शीर्षक अपना अखबार के।। 

गूंजय  देस  भरे मा बानी 

कबिता  के  रस  धार के ।।  

श्री मैथिल जी व्यास

 

रिमही बोली के निता, श्री मैथिल जी व्यास। 
जिनखे कण्ठे मा हबइ शारद जी का बास।।  

हमारी ग्राम गिरा रिमही बघेली के जन कवि आचार्य श्री मैथलीशरण शुक्ल जी को 75 वे जन्म दिन की हार्दिक बधाई। श्री मैथली जी बघेली के मूर्धन्य साहित्यकार हैं। वे बघेली की सौम्यता सुष्मिता सुचिता सरलता सहजता के पहरुआ कवि हैं। उनकी बघेली रचनाओं को मप्र सरकार ने उच्च शिक्षा विभाग के BA. MA. कोर्स में अध्ययन हेतु चयनित कर उनकी मनस्विनी को सम्मानित किया है। हम जैसे तुकबंदी कारो को उनका सनेह अभिभावक की तरह मिल रहा है। माँ शारदा उन्हें स्वथ्य रखें और शतायु होने आशीर्वाद प्रदान करें। कोटि कोटि बधाई। अभिनंदन।


गुरुवार, 30 मई 2024

चिटका फोरत चली गय

 चिलचिलात या घाम मा, मिली कहूं न छाह।
चिटका फोरत चली गय, एक पिआसी डाह।।

छठ सातैं की भमरी देखा

  छठ सातैं  की भमरी देखा।

तोहसे  या  न थम्हरी देखा।। 

 

एक  बाल्टी  पानी  खातिर 

उचत  भरे कै जमरी देखा।। 


सउंज  उतार रही तुलसी कै 

या   गंधइली   ममरी   देखा। ।


पसगइयत  मा  परगा पादन

चिलकत चरमुठ चमरी देखा।। 


कांखय लगिहा चुनुन दार मा 

कामड़ेरा  औ  कमरी  देखा।।


हंस अबरदा जब तक वाखर 

रोये   गीध   के  ना  मरी देखा।। 

हेमराज हंस 

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ममरी= तुलसी जैसे दिखने बाली झाड़ी    

पसगइयत=आसपास

 परगा पादन= तिकड़मी  दंदी फन्दी  

 चिलकत=चमकती हुई 

चरमुट= स्वस्थ्य एवं शक्तिवान, शरीर हृष्ट  पुष्ट, 

चुनुन दार = शीघ्र 

अबरदा= आयु 

सोमवार, 27 मई 2024

होइगै सड़क जब तात राम दै ।

 होइगै  सड़क जब तात राम दै । 

जराथें    तरबा    लात   राम दै।। 

 

को   को   ओखे   ऊपर  हींठा 

वा   नहि  पूंछय   जात  राम दै।। 

 

रिन काढ़त  मा  खूब सराहिन 

देत मा टूट गा  भात राम दै। ।  

 

खूब किहिन सोहबत अटकी मा 

अब नहि  पूंछय  बात राम दै । ।  

   

चढ़य मूँड़ घर मा मालकिन का 

जब  कोउ आमय नात राम दै। ।

    

 सचेत रहा  हितुअन से हंस

जे बइठाथें दिन रात राम दै । ।

हेमराज हंस 

शनिवार, 25 मई 2024

जे दसा सुधारय गे रहे, गरीब सुदामा कै।

जे दसा  सुधारय  गे रहे,  गरीब  सुदामा कै। 

उइ तार दइ के आय गें कुरथा पइयामा कै।।

 

अनभल तुकिन ता आपरूभ नस्ट होइगे उइ    

घर  घर मा  पूजा  होथी  बसामान  मामा कै।। 


उइ   कहा  थे  दोस्ती  का   हाथ  बढ़ा  ल्या 

करतूति  नहीं  बिसरय हमीं  पुलबामा  कै।।

 

धइ धइ के ओहटी टोर भांज कइ रहें हें जे 

बांच  बांच  कबिता  इकबाल अल्लामा कै। । 


सीला सपोटी खुब किहिन इतिहासकार हंस

खोजाबर कै पोलपट्टी  खुलगै कारनामा कै।। 

हेमराज हंस    

बुधवार, 22 मई 2024

उइ तखरी मा गूलर का तउल रहे हें।।

 साहुत बनामय खातिर जे कउल रहे हें। 
उइ तखरी  मा गूलर  का  तउल रहे हें।। 

 कान  बहय लागी जो  सुन ल्या हा फुर 
हेन  जात  बाले  जातै  का  पउल रहे हें।। 

आपुस  मां  कइसा माहुर घोराथी इरखा 
भुक्त भोगी आपन  "हरदउल"  रहे  हें।। 

प्रथ्बी औ जयचन्द  कै मुखागर  ही  किसा 
सुन सुन के भारतिन के खून खउल रहे हें।।
 
कल्हव रहें  देस मा उइ आजव हेमैं  'हंस' 
जे बिषइले  उरा बाले डील  डउल रहे हें।।
हेमराज हंस 

साहुत बनामय खातिर जे कउल रहे हें।

 साहुत बनामय खातिर जे कउल रहे हें। 

उइ तखरी  मा गूलर  का  तउल रहे हें।। 


 कान  बहय लागी जो  सुन ल्या हा फुर 

हेन  जात  बाले  जातै  का  पउल रहे हें।। 


आपुस  मां  कइसा माहुर घोराथी इरखा 

भुक्त भोगी आपन  "हरदउल"  रहे  हें।। 


प्रथ्बी औ जयचन्द  कै मुखागर  ही  किसा 

सुन सुन के भारतिन के खून खउल रहे हें।।

 

कल्हव रहें  देस मा उइ आजव हेमैं  'हंस' 

जे बिषइले  उरा बाले डील  डउल रहे हें।।

हेमराज हंस 

मंगलवार, 21 मई 2024

उइं बड़े 'धरमराज ' हें जुआ खेला थें।

 उइं  बड़े   'धरमराज ' हें जुआ  खेला थें। 

परयाबा के खोधइला म सुआ खेला थें।। 


दुआर  से  कहि  द्या  कि  सचेत  रहैं 

आज काल्ह केमरा से घुआ खेला थें।। 


अपना उनखे साहुत से  सेंतै डेरइत थे 

रंगे  सिआर आहीं  हुआ हुआ खेला थें।।


अगस्त का देखि के समुद्र भयभीत है

पपड़िआन  नरबा नाइ दुआ खेला थें।।


परीबा का पूजय कै तयारी  ही हंस 

आग मा प्रहलाद औ फुआ खेला थें।। 

हेमराज हंस 

राजमार्ग मा चल रहें ,

 राजमार्ग   मा  चल  रहें ,  बड़े  बेढंगे   यान। 

चालक काही है नहीं, अपर डिपर का ज्ञान।। 

हेमराज हंस  

सोमवार, 20 मई 2024

तब से बिपक्ष कै बड़मंसी चली गै।।

 खाता बचा है करंसी चली गै।

मछरी के लोभ मा बंसी चली गै।।

जब से मरे हें जेपी औ लोहिया देस मा

तब से बिपक्ष कै बड़मंसी चली गै।।

*लोकगीत *

  दार महँगी  है  खा ल्या सजन  सुसका। दार महँगी  ।   

भाव   सुनत  मा लागय गरे   ठुसका।। दार महँगी  ।। 

  

किधनव  बनाउब  पानी  पातर। 

एक दुइ दिन का दइ के आंतर।। 

लड़िकन के मुंह दइ के मुसका। दार   महँगी । 

दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।

   

गुजर करब खा लपटा मीजा।

दार  बनी  जब अइहैं  जीजा।। 

करंय का मजूरी कहूं खसका। ।  दार महँगी।    

दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।


कइसा  चलय  अटाला  घर का। 

अइसा   पाली  पोसी  लरिका  ।।

जइसा सीता मइया लउकुस का।   दार  महँगी।

दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।

✍️हेमराज हंस भेड़ा मैहर 

चाहे कोऊ कवि लिखय, चह शायर श्रीमान

 चाहे  कोऊ  कवि  लिखय,  चह  शायर  श्रीमान। 

सब्द सक्ति जब तक नहीं, तब तक नही  प्रमान।।  

रविवार, 19 मई 2024

अहिबाती का बिधबा पेंसन,

 अपरोजिक  के  भरे पेट, औ  उनहिन  निता  सुपास   हबै।  
औ  जेही   अगरासन  निकरै,  वा  निरजला  उपास   हबै।। 
अहिबाती   का  बिधबा पेंसन,   बाँटय कै योजना  अइ अबै  
काजर आंज के कहिस फलनिया देस का बड़ा बिकास हबै।। 
हेमराज हंस

बाप के फोटो मा थूँकी।

 हमरेन पुरखन का गरिआई, अउर  भरी हमिन हूंकी। 

हम नहि येतू प्रगतिशील , कि बाप के फोटो मा थूँकी।। 


नित परभाती  औ  सँझबाती, करत  देस  का  पूजीथे

द्रश्टिदोख  मा उदवबत्ती  अपना  का  लागय  लूकी।।


हम गंगा कबेरी के पुजइया, रोज नहात मा सुमिरी थे 

हमीं बिदेसी कहिके अपना, नाहक मा  जबान  चूकी ।।


जे हमरे इष्ट तिथ तेउहारन मा घिनहे राखय  भाव सदा 

हम ओहू  का आदर देई थे, की चली अपना शंख फूंकी।।


जेखर  उजरइती एकअंगी, कल्थी कल्थी लागथी हंस 

उइ भंडारा का जानैं  जे पाइन बिचार कउरी टूकी।।

हेमराज हंस   

शुक्रवार, 17 मई 2024

वहै है शक के घेरे मा

वहै है शक  के  घेरे  मा, जे  नेम   प्रेम   का  आदी   है। 
जे  घर  फूंक  तमासा देखय, वा  कबीर  का गादी   है।। 
 
उनही फिकर ही युबा बर्ग कै, एहिन से सब सुबिधा ही  
कोउ अमलासन रहय  न पाबै  नशा से गाड़ी  लादी है।।  

निकरी  भूंख जब अलगा  मारे उड़ी उड़न्की खोरन मा
कोउ  उसाँसी  नहीं  देबइया  अपजस केर मुनादी  है।। 
 
अनचिन्हार  तक से जे राखय  बड़ा अपनपौ अंतस से   
कहिस  अमाबस  चंदा  काही  बहुतै  जाती  बादी है।।   

चाहे कहय  अनूतर  कोऊ  चाह कुलांच अगाध  कहै 
हंस  देस के संबिधान मा बोलय केर  आजादी   है। ।
हेमराज हंस  

अपना का आशीष

 जेखे  मूड़े मा रहय,  अपना का आशीष 

वा बन जाय कनेर से , गमकत सुमन शिरीष।  । 

गुरुवार, 16 मई 2024

लगथै उनखर उतरिगा जादू।

 लगथै  उनखर उतरिगा  जादू।
हेरा  आन  गुनिया  अब   दादू।।

कब तक सूख   पेड़ का द्याहा  
पुन  पुन पानी  पुन  पुन खादू।।

बजरंगी का  कब तक छलिहै
कालनेम   बनि   ज्ञानी  साधू ।।

एक न मानिस हिरना कश्यप
खुब  समझा के हार कयाधू।।

हेन  जन  जन के  कंठहार हें 
ओछी  जात  के आल्हा  धांधू।। 
✍️हेमराज हंस ✍️

KAVI SAMMELAN REWA




सिरि शम्भू काकू के पुन्न दिबस मा, हमहूं पहुंच गयन  रीमा। 
जिउ भर कबिता  सुन्यन सुनायन बड़ संतोष मिला जी मा। ।

श्री निष्ठुर जी ,कक्का जी , औ  सरस, भ्रमर, जी शांति दूत।
श्री शिवानंद,  श्री सूर्यमणी , शिवपाल, कमल जी  बानी पूत। ।

कैलाश  तिवारी ,औ  धीरेन्द्र  ,सीमा रानी,   क्रांति बइया । 
अबध बिहारी, राजकरण , अउ राम सुशील ,मणी भइया।। 

अरुणा पाठक ,स्नेहा जी, आरती जी  ,  हसमत रीबानी।
हेमराज   भेंड़ा   बाले,   यश   पी   तीवारी    कै    बानी। ।
 
अध्यक्ष प्रभाकर चौबे जी ,श्री परिहार बिशिष्ट अतिथी । 
जे भूले बिसरें छमा करैं ,  संपन्न  काकू  कै  पुन्न  तिथी।। 

काकू जी का सुमिरन कइ के, हम  पंचे सब धन्न भयन। 
कवि सम्मेलन  संपन्न हंस  ,सब  अपने अपने घरे गयन। 
हेमराज हंस----15/05/2024

 

मंगलवार, 14 मई 2024

पहिले जिव भर खा समोसा।

 पहिले जिव भर खा समोसा। 
फेर  काहु  का  गर  मसोसा।। 

चाहव  का होइ  जई  जुगाड़ 
चार  थे लुच्चा  पाला पोसा।। 

आज  यहै  हे  काल्ह  वहै  हे 
ई दलाल का कउन भरोसा। ।
 
खुल जइहै सब बंद केमरिया 
खूब  जोर  से  मारा  ढोसा। । 

 पंगत  नहीं  बफर आय या 
खुदै  खा  औ  खुदै परोसा। । 

SHAMBHU KAKU

 डॉ शांतिदूत जी की वाल से साभार 

बघेली बोली के शलाका परुष,,काकू,का पूरा नाम शम्भूप्रसाद द्विवेदी था जिन्हें विंध्य ले लोग प्रायः ,,काकू,के नाम से जानते थे,काकू का जन्म 10 नवम्बर 1938 में रीवा में खैरी नामक गाँव मे एक कृषक परिवार में हुआ था,इनके पिता का नाम पंडित रामप्रताप द्विवेदी एवं माता का नाम श्रीमती गुजरतिया देवी था,जो देवगांव के जमीदार शिवनारायण की पुत्री थी,इनके पिता शिवभक्त एवं संस्कृति के विद्वान तथा कवि थे,इनकी माता जी भी धर्मनिष्ठ एवं शिवभक्त थी ,इसीलिए इन्हें बचपन मे शम्भू कहकर बुलाते थे जो बाद में शम्भूप्रसाद के नाम से प्रसिद्ध हुए,माता पिता की शिवभक्ति एवधर्माचरणं का अमिट प्रभाव बालक शम्भू पर पड़ा जो अनवरत जारी रहा। शम्भू प्रसाद तीन भाई तथा दो बहन थे शम्भू भाइयों में सबसे छोटे थे,भाइयों में रामसजीवन द्विवेदी,सियावर शरण द्विवेदी,तथा बहनों में शिववती एवं देववती थीं,शम्भू प्रसाद की गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही थी परन्तु कुछ समय बाद कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ,इन्ही परेशानियों के चलते पिता राम प्रताप अपना मानसिक संतुलन खो बैठे सन 1961 में विक्षिप्त होकर रीवा की सड़कों पर घूम घूम कर श्लोक,कविताएं तथा कहानियां सुनाया करते थे,और इसी पागलपन की स्थिति में शेषमणि शर्मा,,मणिरायपुरी,,की भांति 1971 में मृत्यु हो गयी तथा 1972 में माता गुजरतिया जी का भी देहांत हो गया,
शम्भू प्रसाद बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा छुट पुट कविताएं लिखा करते जिसकी त्रुटियों को पिता जी सुधार दिया करते थे,इनकी प्रारम्भिक शिक्षा प्राथमिक पाठशाला सिकरम खाना रीवा में पूर्ण हुई बाद में मार्तंड हाई स्कूल से सन 1952 में हिंदी मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण किये 1953 में आपने अंग्रेजी मिडिल परीक्षा भी उत्तीर्ण हुए,आपके ऊपर शेषमणि शर्मा ,,मणि रायपुरी,,जी का अमिट प्रभाव पड़ा,सन 1954 में काकू जी शिक्षक पड़ की नॉकरी प्रारम्भ किये इंटर परीक्षा स्वाध्यायी रूप से पूर्ण करने के बाद 1963 में सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोंत्तर उत्तीर्ण करके प्रयाग विश्वविद्यालय से साहित्यरत्न की उपाधि प्राप्त किये,
काकू जी का विवाह सन 1950 में ग्राम पपोढ तहसील व्यवहारी जिला शहडोल के मंगल प्रसाद पयासी की पुत्री फूल कुमारी से जो धर्मप्रिय,सुलक्षीणी सामान्य शिक्षा प्राप्त अत्यंत मृदुभाषी
थी, जिनका असामयिक निधन पुत्र के जन्म के समय सन 1962 में होगया,भाई परिवार के दवाव में कवि को दूसरा विवाह फूल कुमारी की छोटी बहन के साथ 1964 मे करना पड़ा जिसकी पुत्री सुमन की मृत्यु के बाद कारुणिक कवि हृदय विलाप में आलाप करते हुए बोल पड़ा,
,,बेटी सुमन हाय तुम बिन,यह घर है मेरा सूना,
तुम बिन कैसे प्राण रखूं मैं,
यह दुख है मुझको दूना,
काकू की कविताएं अंतर्द्वंद,सामाजिक वदरूपता,ढोग,शोषितो के साथ अन्याय,तथा अनेक विसंगतियों का स्पष्ट दस्तावेज है,यह कहना समीचीन होगा कि वे विंध्य के कवीर थे,हास्य का पुट लिए उनकी रचनाए वाचकषैली का अनूठा उदाहरण है,उनके हरवर्ग के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित करती है,यह जनकवि निर्द्वन्द फक्कड़ बिना लाग लपेट के अपनी रचनायात्रा का मार्ग स्वयं चुनता था,बिना भय प्रीति के लिखने बाला यह विंध्य का लाडला आशुकवि सर्वग्राह्य एव सम्माननीय था,
एक बार कटनी में कविसम्मेलन हुआ,अवसर था कमला जॉन के महापौर बनने का,प्रभारी मंत्री हजारीलाल रघुवंशी,मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह,तथा बिधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जी मंचासीन थे,कमलाजान ने कहा काकू जी मैं भी कविता सुनाऊँगी ,हमे कुछ लिखकर देदीजिये,बस क्या था काकू की कलम चली और कुछ देर बाद कमला जान की कविता प्रारम्भ हुई,
,,मैं हूँ कटनी का महापौर,,,
बहुत दिनों की रही तमन्ना,
मेरे सिर पर बंधा मौर,
मैं ढोल बजाता गली गली,
मैं शोर मचाते डोर डोर,,,,
मैं पंजा नही हूँ, छक्का हूँ
दिग्गी राजा का कक्का हूँ।
मैं कमल नही हूँ कमला हूँ,
मुख्यमंत्री प्रदेश का अगला हूँ।
रघुवंशी का ननदोई हूँ।
मैं दादा का बहनोई हूँ,,,
आदि,,,आदि,,
अब आप सोच सकते है कि वहां की स्थिति रही होगी,मैं उस कश्मकश का गवाह हूँ,
हाजिर जबाब काकू की स्मृतियों को कितना भी कम कहूँ तो बहुत ही होगा,
काकू की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी शादी ग्राम तिवनी में लगी बात चल ही रही थी कि स्कूल के बच्चो ने बताया कि पंडित जी उआ विटीबा बहिरि है फिर क्या था काकू ने एक पत्र उस लड़की के घर लड़को के हाँथ भेज दिया।
,,सोने के नइयां है रूप सुहावन,
रूप बखानत जीभि थकइ ना।
मुहु लागै जोन्हईयां के नैया भला,
बिदुराइ के बोलति है जब बैना।
आंखी बड़ी बड़ी ओखी अहै,
बड़ी चोखी है,कहै लोग सुनैना।
शम्भू बिआह करै कस ओसे,
नाम सुनैना पै कान सुनै ना।
काकू जी भोपाल,जबलपुर,टीकमगढ़,कटनी,ग्वालियर,मिर्जापुर एव अन्य क्षेत्रों में घूमते तथा काव्यपाठ करते रहे परन्तु बघेली की सीमा उत्तर में चाक सोहागी डभौरा,पूर्व में देवसर,दक्षिण में लखोरा अमरकंटक और पश्चिम में मैहर सतना कोठी मुख्यतः रहा जहां वे घूमते रहे,
शम्भू काकू की गिनती,कवि जगनिक,रामसुंदर शुक्ल,मुन्नीलाल प्यारे,बैजनाथ बैजू,पण्डित हरिदास,सैफुद्दीन सिद्दीकी,,सैफू,,रामदास पयासी, कृष्ण नारायण सिंह,देव सेवकराम,डॉ भगवती प्रसाद शुक्ल,प्रोफेसर आदित्य प्रताप सिंह,कालिका प्रसाद त्रिपाठी,विजय सिंह,गोमती प्रसाद विकल,बाबूलाल दाहिया,सुदामा प्रसाद मिश्र,डॉ श्रीनिवास शुक्ल,डॉ शिवसंकर ,,सरस्,,आदि के साथ सम्मान पूर्वक लिया जाता है,आपकी मृत्यु 15 मई 2008 में हुई,
काकू जी का जीवन ब्रित्तान्त बहुत है जिसे पूर्ण रूप से कह पाना कठिन है जितना भी कहेंगे कुछ छूट ही जाएगा तथापि जो बन पड़ा उतना ही पर्याप्त है,
काकू जी को शत शत नमन
डॉ शांतिदूत,

सोमवार, 13 मई 2024

खतरे मा है।

काहू का गोत्र काहू   का  बान  खतरे मा है। 

ता काहू का भभिस्स बर्तमान  खतरे मा है।। 


उनखर  धइना  देखि   के  फलाने कहा थें

लागा थै  मोहब्बत कै दुकान  खतरे  मा  है।।


कुण्डली    मा   राहु   लगी  है  साढ़े  साती 

पुरोहित  कहा  थें  जजमान  खतरे मा है। 


सोसल   मीडिया   मा  उड़  रहीं   हबूहय 

सूरज  है बंदी रात के  बिहान  खतरे  मा है।


 मुसबा औ जूजू साथै सोफा मा बइठे देखिस 

ता निउ कहय  लगी कि  मकान  खतरे  मा  है।।


डी जे बजैं  लगे  औ डिस्को  चलय  लगा ता 

हंस  कहि  रहे  हैं की  कान  खतरे  मा  है।।

  

कबिबर रामाधार जी, भें अनंत मा लीन !

 कबिबर  रामाधार  जी, भें  अनंत  मा लीन !
मैहर सृजन समाज भा , मुड़धरिया से हीन !!
मइया सारद रो परीं , सुन के दुःख संदेस!
तन से बिछुरें उइ भले, रही कीरती शेष।! 
१३/०५/२०२४ 
कविवर  आचार्य रामाधार शर्मा अनंत जी मैहर  को विनम्र श्रद्धांजलि! शत शत नमन !


रविवार, 12 मई 2024

अम्मा अस कउनौ नहीं

 दादू  के सुख  संच मा, जे  मानय  आनंद।

अम्मा अस कउनौ नहीं, जीबन का संबंध।।

अम्मा अपने आप मा, सबसे पाबन ग्रन्थ। 
माता से बढ़ के नहीं, कउनौ ज्ञानी पंथ।। 

शुक्रवार, 10 मई 2024

सांझ का सांझ सकार का सकार कहा।।

 गुरतुर का गुरतुर सखार का सखार कहा।

सांझ का सांझ सकार का सकार कहा।। 

 भले केत्तव  सजाबा  बनउक  बिझूका 

तोखार  न  बनी  वोही  धोखार   कहा। । 

हेमराज हंस 

बंदन है जयराम जी, बिन्ध्य के बानी पूत।।


 जेखे  आंखर  बने  हें,  जनता  के स्वर दूत।

बंदन  है  जयराम जी, बिन्ध्य  के बानी पूत।। 

सादर  ही  शुभ कामना बरिस गाँठ के हेत।

करत रहै लेखनी सदा सबका सजग सचेत।। 

जयराम शुक्ल जी 

  

गुरुवार, 9 मई 2024

बिना सुदिन साख कै अक्ती देखी थे।।

 हम    उनखर    भक्ती   देखी   थे। 
मेघनाद  कै  ब्रम्ह  शक्ती देखी  थे।। 
पुत्ती  पुत्ता  पुजिहैं   टोरिया उराव से 
बिना सुदिन साख कै अक्ती देखी थे।। 
हेमराज हंस  

महराणा परताप

 सुनतै जेखे नाव का, जांय मुगलिया कांप।
भारत  के  वा  बीर हैं,  महराणा  परताप।।

बुधवार, 8 मई 2024

प्रेम काहू से ता पैपखरी कहूं अउर ही।।

या  ता अहरी आय  बखरी  कहूं  अउर  ही। 
मन तउलय के निता तखरी कहूं अउर ही। 
अब ता  कायलिव रचाये ओंठ   बागा थी 
प्रेम  काहू से  ता  पैपखरी  कहूं  अउर  ही।। 

मंगलवार, 7 मई 2024

कनमा होइगें हुम्मी मा।।

 शुक्राचार  घुसें  तुम्मी मा। 
कनमा  होइगें  हुम्मी  मा।। 
जबसे उइं खजुराहो देखिन  
ग्यान  दइ  रहें  चुम्मी  मा।।
हेमराज हंस   

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : ओही नव ठे कजरउटा है।

बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : ओही नव ठे कजरउटा है।:   जेखे  आँखी  कान नही, ओही नव ठे  कजरउटा  है। जे ऊमर केर फूल हमा, वाखर खासा अदरउटा है।।  लादे साकिल  मा डब्बा वा   पानी  हेरत  बागा थै,  रजध...

ओही नव ठे कजरउटा है।

 जेखे  आँखी  कान नही, ओही नव ठे  कजरउटा  है।
जे ऊमर केर फूल हमा, वाखर खासा अदरउटा है।। 

लादे साकिल  मा डब्बा वा   पानी  हेरत  बागा थै, 
रजधानी के निता हमारे, गॉंव मा संच सुखउटा है।।

अनगँइयव से पूछब ता वा,  वाखर   हाल बता देई,
जेखे घर मा आठ खबइया कमबइया एकलउता है ।।

कहिस बुढ़ीबा हमरे बिन्ध मा, फैक्ट्री हैं  रोजगार नही ,
काल्ह  साल  भर मा बम्बई से, मोर करेजा लउटा है।।
 
बन नदिया सरकारी भुंइ मा, सबल केर है अक्तिआर
निबल  मुकदमा लादे बागै, घर मा बचा कठउता है।। 

सरस्वती के मन्दिर  मा, बरती लछमी  की  बाती हंस
नहीं समाइत एकलव्य के फीस मा ओखर अउंठा है।। 
हेमराज हंस  

सोमवार, 6 मई 2024

धनानन्द सैलून मा, लगें बनामय बार

 भ्रस्टाचार मा डूब गा, जब मगधी दरबार।

धनानन्द  सैलून मा,  लगें  बनामय   बार।।


कहिन फलाने हम हयन, पढ़े लिखे भर पूर।

पै अब तक आई नहीं, बोलय केर सहूर।।


भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।

एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।

रविवार, 5 मई 2024

भारतीय स्वाभिमान के प्रतीक परशुराम।

 भारतीय  स्वाभिमान के प्रतीक परशुराम। 
सनातनी  समाज के  हैं  लीक  परशुराम।।

उदण्ड  शासकों .को  दंड  देने   के  लिये 
मिशाल  वीरता की  एक सीख  परशुराम।।

आताताइयों  के  लिए हैं  वे एक काल  सम
 साधु सज्जनों के लिये ठीक परशुराम।।

चारो  युग  में  पूज्यनीय    चिरंजीव हैं 
शूरता  की  मूर्ति  हैं  निर्भीक परशुराम। ।

धन्य  माता  रेणुका  जमदागनी   पिता। 
श्री विष्णु  अवतार पुंडरीक  परशुराम। । 
हेमराज हंस 

तब ईस्वर का लें परा, फरस राम अबतार

शासक जब कीन्हिन बहुत, सोसन अत्याचार। 
तब ईस्वर   का  लें परा, फरस  राम  अबतार।। 
 
दुस्टन काही काल अस, औ सज्जन का संत ।
श्री भृगु नंदन परसुधर , स्वाभिमान  भगमंत  ।।

भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।। 

जुग नायक ता भे नहीं, कबौं जात  मा कैद। 
उइं  बीमार समाज के, हें सुभ चिंतक बैद।।  
हेमराज हंस 

शनिवार, 4 मई 2024