शाबास बिटिया हार्दिक बधाई।
सम्मान मिलै खुब बंटय मिठाई।।
दूनव कुल का नाउ चलय
सरसुती मइय्या होय सहांई। ।
शाबास बिटिया हार्दिक बधाई।
सम्मान मिलै खुब बंटय मिठाई।।
दूनव कुल का नाउ चलय
सरसुती मइय्या होय सहांई। ।
हम देखइया दरबार के।
शीर्षक अपना अखबार के।।
गूंजय देस भरे मा बानी
कबिता के रस धार के ।।
जिनखे कण्ठे मा हबइ शारद जी का बास।। |
छठ सातैं की भमरी देखा।
तोहसे या न थम्हरी देखा।।
एक बाल्टी पानी खातिर
उचत भरे कै जमरी देखा।।
सउंज उतार रही तुलसी कै
या गंधइली ममरी देखा। ।
पसगइयत मा परगा पादन
चिलकत चरमुठ चमरी देखा।।
कांखय लगिहा चुनुन दार मा
कामड़ेरा औ कमरी देखा।।
हंस अबरदा जब तक वाखर
रोये गीध के ना मरी देखा।।
हेमराज हंस
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ममरी= तुलसी जैसे दिखने बाली झाड़ी
पसगइयत=आसपास
परगा पादन= तिकड़मी दंदी फन्दी
चिलकत=चमकती हुई
चरमुट= स्वस्थ्य एवं शक्तिवान, शरीर हृष्ट पुष्ट,
चुनुन दार = शीघ्र
अबरदा= आयु
होइगै सड़क जब तात राम दै ।
जराथें तरबा लात राम दै।।
को को ओखे ऊपर हींठा
वा नहि पूंछय जात राम दै।।
रिन काढ़त मा खूब सराहिन
देत मा टूट गा भात राम दै। ।
खूब किहिन सोहबत अटकी मा
अब नहि पूंछय बात राम दै । ।
चढ़य मूँड़ घर मा मालकिन का
जब कोउ आमय नात राम दै। ।
सचेत रहा हितुअन से हंस
जे बइठाथें दिन रात राम दै । ।
हेमराज हंस
जे दसा सुधारय गे रहे, गरीब सुदामा कै।
उइ तार दइ के आय गें कुरथा पइयामा कै।।
अनभल तुकिन ता आपरूभ नस्ट होइगे उइ
घर घर मा पूजा होथी बसामान मामा कै।।
उइ कहा थे दोस्ती का हाथ बढ़ा ल्या
करतूति नहीं बिसरय हमीं पुलबामा कै।।
धइ धइ के ओहटी टोर भांज कइ रहें हें जे
बांच बांच कबिता इकबाल अल्लामा कै। ।
सीला सपोटी खुब किहिन इतिहासकार हंस
खोजाबर कै पोलपट्टी खुलगै कारनामा कै।।
हेमराज हंस
साहुत बनामय खातिर जे कउल रहे हें।
उइ तखरी मा गूलर का तउल रहे हें।।
कान बहय लागी जो सुन ल्या हा फुर
हेन जात बाले जातै का पउल रहे हें।।
आपुस मां कइसा माहुर घोराथी इरखा
भुक्त भोगी आपन "हरदउल" रहे हें।।
प्रथ्बी औ जयचन्द कै मुखागर ही किसा
सुन सुन के भारतिन के खून खउल रहे हें।।
कल्हव रहें देस मा उइ आजव हेमैं 'हंस'
जे बिषइले उरा बाले डील डउल रहे हें।।
हेमराज हंस
उइं बड़े 'धरमराज ' हें जुआ खेला थें।
परयाबा के खोधइला म सुआ खेला थें।।
दुआर से कहि द्या कि सचेत रहैं
आज काल्ह केमरा से घुआ खेला थें।।
अपना उनखे साहुत से सेंतै डेरइत थे
रंगे सिआर आहीं हुआ हुआ खेला थें।।
अगस्त का देखि के समुद्र भयभीत है
पपड़िआन नरबा नाइ दुआ खेला थें।।
परीबा का पूजय कै तयारी ही हंस
आग मा प्रहलाद औ फुआ खेला थें।।
हेमराज हंस
राजमार्ग मा चल रहें , बड़े बेढंगे यान।
चालक काही है नहीं, अपर डिपर का ज्ञान।।
हेमराज हंस
खाता बचा है करंसी चली गै।
मछरी के लोभ मा बंसी चली गै।।
जब से मरे हें जेपी औ लोहिया देस मा
तब से बिपक्ष कै बड़मंसी चली गै।।
दार महँगी है खा ल्या सजन सुसका। दार महँगी ।
भाव सुनत मा लागय गरे ठुसका।। दार महँगी ।।
किधनव बनाउब पानी पातर।
एक दुइ दिन का दइ के आंतर।।
लड़िकन के मुंह दइ के मुसका। दार महँगी ।
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।
गुजर करब खा लपटा मीजा।
दार बनी जब अइहैं जीजा।।
करंय का मजूरी कहूं खसका। । दार महँगी।
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।
कइसा चलय अटाला घर का।
अइसा पाली पोसी लरिका ।।
जइसा सीता मइया लउकुस का। दार महँगी।
दार महँगी है खा ल्या बलम सुसका। दार महँगी ।।
✍️हेमराज हंस भेड़ा मैहर
चाहे कोऊ कवि लिखय, चह शायर श्रीमान।
सब्द सक्ति जब तक नहीं, तब तक नही प्रमान।।
हमरेन पुरखन का गरिआई, अउर भरी हमिन हूंकी।
हम नहि येतू प्रगतिशील , कि बाप के फोटो मा थूँकी।।
नित परभाती औ सँझबाती, करत देस का पूजीथे
द्रश्टिदोख मा उदवबत्ती अपना का लागय लूकी।।
हम गंगा कबेरी के पुजइया, रोज नहात मा सुमिरी थे
हमीं बिदेसी कहिके अपना, नाहक मा जबान चूकी ।।
जे हमरे इष्ट तिथ तेउहारन मा घिनहे राखय भाव सदा
हम ओहू का आदर देई थे, की चली अपना शंख फूंकी।।
जेखर उजरइती एकअंगी, कल्थी कल्थी लागथी हंस
उइ भंडारा का जानैं जे पाइन बिचार कउरी टूकी।।
हेमराज हंस
डॉ शांतिदूत जी की वाल से साभार
काहू का गोत्र काहू का बान खतरे मा है।
ता काहू का भभिस्स बर्तमान खतरे मा है।।
उनखर धइना देखि के फलाने कहा थें
लागा थै मोहब्बत कै दुकान खतरे मा है।।
कुण्डली मा राहु लगी है साढ़े साती
पुरोहित कहा थें जजमान खतरे मा है।
सोसल मीडिया मा उड़ रहीं हबूहय
सूरज है बंदी रात के बिहान खतरे मा है।
मुसबा औ जूजू साथै सोफा मा बइठे देखिस
ता निउ कहय लगी कि मकान खतरे मा है।।
डी जे बजैं लगे औ डिस्को चलय लगा ता
हंस कहि रहे हैं की कान खतरे मा है।।
गुरतुर का गुरतुर सखार का सखार कहा।
सांझ का सांझ सकार का सकार कहा।।
भले केत्तव सजाबा बनउक बिझूका
तोखार न बनी वोही धोखार कहा। ।
हेमराज हंस
बंदन है जयराम जी, बिन्ध्य के बानी पूत।।
सादर ही शुभ कामना बरिस गाँठ के हेत।
करत रहै लेखनी सदा सबका सजग सचेत।।
जयराम शुक्ल जी
भ्रस्टाचार मा डूब गा, जब मगधी दरबार।
धनानन्द सैलून मा, लगें बनामय बार।।
कहिन फलाने हम हयन, पढ़े लिखे भर पूर।
पै अब तक आई नहीं, बोलय केर सहूर।।
भारत पूजिस सब दिना,रिसी कृसी के साथ।
एक हाथे मा शास्त्र का, शस्त्र का दूजे हाथ।।