सब दिनहुं पेड़ माही पत्ता नहीं रहै।
बसंत केर सब दिना सत्ता नहीं रहै।।
कोउ दिन मा चार बेर ओन्हा बदला थै
काहू के देह माही लत्ता नहीं रहै। ।
तास के खेलइया हारा थें जीता थें
हर चाली माही टम्प का पत्ता नहीं रहै। ।
चेरउरी कइ के आपन सम्मान करामैं
सब कोउ उनखे नाई ललत्ता नहीं रहै। ।
महिपर का स्वाद हंस का भरपूर मिला पै
वा पेंड़ के डेगाल मा छत्ता नहीं रहै।।
हेमराज हंस
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