शनिवार, 15 अक्तूबर 2022

रीत काल का छंद।

 बिन इस्नु बिन पाउडर, फागुन गमकै गंध।
द्यांह धरे  बगै  जना ,  रीत  काल  का छंद।

अस कागद के फूल मा, महकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलय , पंचबटी का संत।। 


फगुनहटी बइहर चली ,गंध थथ्वालत फूल।
भमरा पुन पुन खुइ करै, तितली पीठे गूल। । 

मन मेहदी अस जब रचा, आँखिन काजर कोर।
सामर  सामर  हाथ  मा, जइसन  गदिया   गोर। ।    

असमव उनखे बाग, मा नहीं कोयलिया कूंक।
मन मसोस रहि जाय औ, उचय हदय मा हूक। । 


सड़क छाप हम आदमी, उइ दरबारी लोग।
हम ता बिदुर के साग अस अपना छप्पन भोग। ।

 
भेद भाव बाली रही , ज्याखर क्रिया कलाप।
हर चुनाव के बाद वा, बइठे करी बिलाप। ।

 
नेतन काही फ्री मिलै , ता लागै खूब उराव।
जनता के दारी उन्ही , लागै मिरची घाव। । 




पुरखन के सम्मान का,

जेखे आपन बिछुरिगें, सुधि म भीजै आँख।
उनही है श्रद्धांजली, के दिन पीतर पाख।। 


पुरखन के सम्मान का, पितर पाख है सार।
जे हमका जीबन दयिन,उनखे प्रति आभार। ।    

जिआ सौ बरिस पार तक,

 नारी  के सम्मान  का, नवरातर  है  पर्व।
ताकी हम पंचे करी, अपने आप मा गर्व। ।

हे ! पुरुषोत्तम राम जू  ,हती  दशानन  मार।
ताकी कुछ हलुकाय अब, भू मइया का भार। । 

गाँधी वाद है बिस्व मा एक बिचार अजोर।
जिनखे बल आई हिआ, आजादी कै भोर। । 

जिआ सौ बरिस पार तक,
जननायक परधान।
भारत के  खातिर  हयन,  अपना  शुभ  बरदान। । 

दस दुष्कर्मिन का टिकस

 दियना  कहिस  अगस्त  से,  दादा  राम जोहार।
तुम पी लिहा समुद्र का, हम पी ल्याब अधिआर। । 


दस दुष्कर्मिन का टिकस, हत्तियार का बीस।
लोक तंत्र के सदन के, उचै हिदय मा टीस। ।

 
केतू  घिनही  लग  रही,  राजनीत  कै चाल।
टुकुर टुकुर जनता लखै, दइके नाक रुमाल। । 


दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट।
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट। । 

नेता  जी  के  नाव  से , उभरै  चित्र   सुभाष।
अब के नेता लागि रहें, जइसा नहा मा फास।।

 
गांव गांव मदिरा बिकै , दबा शहर के पार।
कउने सब्दन मा करी अपना का आभार। ।

सुनिस घोसना कापि गा, थर थर बपुरा पेण्ट।
खीसा  का  बीमा  करी , जेब  कतरा  एजेण्ट।।  


सरबर मा चाकी परै, जब देखा तब जाम।
ओखे बिन सब अरझ गें , बड़े जरुरी काम। । 

भूखों  की ए  बस्तियाँ  , औ  फूलों के जश्न।
ओ माली तेरी नियत पर ,क्यों न उठेंगे प्रश्न। । 

अपने छाती  हाथ  धर ,  खुदै  करा    महसूस।
अइसन कउन किसान है, जे नहि दीन्हिस घूस। ।

करोना

 मिली  करोना  कै  दबा,  बरियत्तन  हे राम।
अब ता चीन के पाप का, होई काम तमाम।। 


परी  करोना  रोग  कै,  दुनिया  भर  मा हाक।
मुँह मा मुसका बांध के, दुइ गज रखी फराक।।  

सिसकै बपुरा मुल्क।

कासी पुनि के सजी ही,दुइ सौ सालन बाद। 
गुंजै डमरू  शंख  औ,  हर हर  भोले  नाद। । 

भारत माता ही बिकल,सुन के दुःख सन्देश।
सेना पति का खोय के, शोकाकुल है देस।। 


टूटी फूटी सड़क मा, टोल बरिअ र  शुल्क।
जय हो नेता आप कै, सिसकै बपुरा मुल्क। ।

 
अपना कहि के चल दिहन, टी बी मा दुइ टूक।
कोउ  भरा  उराव  मा,  उचै  काहु  के  हूक । ।

 
मॅहगी जबक चीज भै, महग तेल पिटरोल।
तउ रजधानी मउन ही, कढ़ै न एकव बोल। । 

 
जनता काही बजट या, लागा थै या मेर।
जइसा क़्वामर पान मा, ब्याड़ै लउग चरेर। ।  

सम्पाती  के  दंभ कै,  द्याखा   ऊंच   उड़ान।
जो जटायु अस उड़त ता, करत देस गुनगान। ।


गौरव शाली कुर्सियां, बदमिजाज आसीन।
समझ  रहे  वे  स्वयं  की, मेघा  दक्ष प्रवीन। ।        

 

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

नहीं बनाबै बार

 सदा  गरीबों  ने  लड़ा लोक  धर्म  का  युद्ध।
पर कुलीन की कोख से आये सब दिन बुद्ध।। 

 
मॅहगाई मा एक सम ही सब कै सरकार।
कउन गड़ारी  गड़ारै नहीं बनाबै बार। । 

जे आफत मा कइ रहें आपन उल्लू सीध।
उइ दानव से नीक हें हमरे देस के गीध।।  

शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार।
ईश्वर को लेना पड़ा परसुराम अवतार। । 


मिला सदा इस देश को बिप्र का आशीर्वाद।
चाहे परसुराम हों य मंगल अटल अजाद।।  

देख रहा है देस या उनहूँ कै करतूत।
माओ बदिन के निता जे हैं साहुल सूत। । 


बहुत सहि चुका देस या नक्सल अत्याचार।
अब ता ओखे रीढ़ मा हरबी कारी प्रहार। । 


सिंघासन बिदुराथै दइ म्याछन मा ताव।
जनता सिसकै देस मा महगाई के घाव। । 


बहिनी से नरकजी तक जे न करैं लिहाज।
नारी के सम्मान कै ओऊ देंय अबाज। । 

घ्वान्घा मा तइती बधी मुदरी नव ग्रह केर।
बगैं पीर मजार तउ लिहिस सनीचर गेर।। 


बेमतलब के बहस मा दहकैं ठोंकैं ताल।
महगाई मा मीडिआ पूँछै नहीं सबाल। ।  


महगाई जब जब किहिस जनता का हलकान।
हष्ट पुष्ट सरकार तक लइ लीन्हिन बइठान।  । 

दारू  बंद  बिहार  मा, लागू कड़क अदेस।
भर धांधर जो पिअय खय ,आबा मध्यप्रदेश।।
आबा मध्य प्रदेश ,हिया ता खुली ही हउली।   
पानी कै ही त्रास खुली मदिरा कै बउली। ।
पी के चह जेतू मता ,कउनव नहीं कलेस।
कबहूँ पाबन्दी नहीं अपने मध्य प्रदेश। ।

सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

आबा बिकास का गड़बा देखाई थे। BAGHELI KAVITA

आबा  बिकास  का हम  गड़बा  देखाई  थे। 
वमै  डबरा योजना  का  पड़बा   दिखाई थे।। 
 
जउन   किसानन   कै  आमदानी  भै दूगुन 
ओखे  मड़इया  के हम खड़बा  देखाई थे। । 
 
जउन  खाद  बीज  खितिर   गहन   धरा है 
वा किसानिन कै झुमकी औ छड़बा देखाई थे। । 
 
मध्ध्यान  भोजन  का  सेबाद  बड़ा   गुरतुर  है 
अपना  का  इस्कूल  के हम भड़बा  देखाई थे। । 
 
भमरी जब परिगै  ता वा बजगीर साथ भागिगै  
 वा उढ़री  राजनीत का हम मड़बा देखाई  थे।  ।
 
हंस  के   बगिया   मा  लिपटिस  कै  राज   ही 
मुरझान परा आमा का हम कड़बा देखाई थे।  ।   
      @हेमराज हंस भेड़ा

रविवार, 9 अक्तूबर 2022

चाहे करैं जहां मुँह काला। ।

उनहूँ  का  पहिराबा   माला। 
काहे लागिगा जीभ मा ताला। । 
उइ ता  इंद्रा  के बंसज आही 
चाहे  करैं जहां  मुँह  काला। ।
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उइ कइथा फ्वारैं का अमकटना ह्यारा  थें। 
आपन चरित्त चमकामै का घटना ह्यारा थें।। 
टिकस देथें हेर हेर के खुद अपराधिन का 
आपन दाग मूंदय के निता उपटना ह्यारा थें।
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गुंडा का न मारा काल्ह नेता बन जई। 
पाथर जब  खिअइ ता रेता  बन  जई। । 
कानून  बनाई वा सदन मा बइठ के    
हमरे समाज का बिधि बेत्ता बन जई। । 
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अपना का सेतै लगै अब माख

अपना का सेतै लगै अब माख सिरी मान 
,जन गन मन कै केहनी रही कबिता। 
आतातायी बहेलिया के तीर के बिपछ माही ,
पंछिन के आँख केर पानी रही कबिता।।  
लोकतंत्र पिअय लाग अंगरेज घाइ खून
 दीन दुखियन का पीर सानी रही कबिता।  
ठठुरत हरिआ खदान कै मेहरिआ कै 
औ बिना बड़ेरी बाली छान्ही रही कबिता। । 

योजना से हित  ग्राही जोजन खड़ा है दूर 
ब्यबस्था कै कइसा के सराह बनी कबिता। 
जउन भाईन केर हीसा भइबय हड़पि धरे 
जरि रही छाती वखार आह बनी कबिता।। 
डूबि रहे जात बाद बाली जे नहर माही ,
उनही बचामै  का मल्लाह बनी कबिता।  
प्रहलाद प्रेम पथ माही जे लगामै बारी ,
अइसा हिरनकश्यप का बराह बनी कबिता। ।