राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट।।
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मंगलवार, 6 अक्तूबर 2020
शनिवार, 12 सितंबर 2020
भांज नही मिलै
अब एक रुपिया कै भांज नही मिलै।
गिरे के बाद भुंइ मा गाज नही मिलै।।
उंइ अब चुल्लू भर पानी लये ठाढ हें
पै बूड़ै का अटकर अंदाज नही मिलै।।
पुरखा
पुरखा हमरे निता घोंसला बनाऊथे।
रिबाज समाज का हौसला बढ़ाऊथें।।
हम पुरखन के करतब्ब कै बंदना करी थे
ता उंई तर्पन सराध का ढकोसला बताऊथें।।
हिन्दी
बपुरी आज बसिन्दी होइगै।
फाट के चिन्दी चिन्दी होइगै।।
बिना काज कै महतारी अस
भासारानी हिन्दी होइगै।।
रविवार, 6 सितंबर 2020
बुधवार, 19 अगस्त 2020
करोना
नीच चीन के पाप का, देस रहा है भोग।
रजधानी से गाँव तक बगरा छुतिहा रोग।।
कहां बची केसे बची, लुकी कहां ठे ओंट।
पेट धंधा से लगि रहा, हमी करोना छोटे।।
सोमवार, 17 अगस्त 2020
रविवार, 16 अगस्त 2020
भारत रत्न अटल जी
भारत माता के रतन लाड़िल अटल लोलार।
जन जन के हिरदय बसें दीन्हिस देस दुलार।।
अटल बिहारी देस के उज्जर एक चरित्र।
उनखे अस को देस मा भला बताबा मित्र।।
भारत के नेतन निता अटल एक इसकूल।
देस देय श्रद्धांजली सादर आंखर फूल।।
उनही सौ सौ नमन Bagheli kavita hemraj hans
उनही सौ सौ नमन जे कीन्हिन जीबन हूम।
बंदे मातरं बोल के गें फाँसी मा झूम।।
जिनखे माथे पूर भा आजादी का जग्ग।
हम भारत बासी हयन उनखर रिनी कृतग्ग।।
गुंडन का न मारा Bagheli kavita
गुंडन का न मारा काल्ह नेता बन जई।
पाथर जब खिअई ता रेता बन जई।।
कनून बनाई पबित्र सदन मा बइठ के
हमरे संबिधान का बिधि बेत्ता बन जई।।
शनिवार, 15 अगस्त 2020
रविवार, 12 जुलाई 2020
भुतबा नहीं रहै
बेसाही सरकार का रुतबा नही रहै।
जइसा कठपुतरी मा सुतबा नही रहै।।
भले पूजा जिंद बरम बीस ठे खबीस
पै हनुमान चलीसा बांचा त भुतबा नहीं रहै।।
सोमवार, 29 जून 2020
असाढ का एक दिन
घटना 29जून 2020 की है। एक किसान राधेकिसन अपने खेत मे धान की नर्सरी लगा रखा था।
उसके खेत के आस पास तीन और किसानों की धान की नर्सरियां लगी हुई थी। गाँव में प्रायः अन्ना मवेशी घूमते रहते हैं। उस दिन भी मवेशी घूम रहे थे। राधेकिसन पशुओं को खेतों से दूर करने के इरादे से उन्हे भगाने की कोशिश कर रहे थे। तभी एक किसान शराब के नशे मे धुत्त आया और राधेकिसन को गरियाने लगा कि मेरे खेत मे पशु लाकर छोड़ दिया है। इसी को कहते हैं होम देते हाथ जले
शनिवार, 27 जून 2020
शनिवार, 20 जून 2020
रविवार, 24 मई 2020
बिजली का बिल
दइया नाहर बिजली का बिल मोरे बप्पा रे।
जइसा घर मा खुली होय मिल मोरे बप्पा रे।।
नीक रहें उंई गनी गरीबन काही ता झउखिन
ईं निरदइयन का पाथर दिल मोरे बप्पा रे।।
बुधवार, 22 अप्रैल 2020
फलाने कहाथें
फलाने कहाथें कि रबइया ठीक नहीं।
कुरसी का दोख है कि बइठइया ठीक नहीं।।
अमाबस के रात मा उंइ हेरात हें चांदनी
औ ऊपर से कहा थें कि जोंधइया ठीक नहीं।।
रविवार, 5 अप्रैल 2020
हे माधव मधुसूदन मोहन
हे माधव मधुसूदन मोहन नटवर कृष्ण कन्हैया। पुनः अवतरो आर्य अवनि में आकांक्षित भारत मैया।।
कंस पातकी दंश से अपने करता धर्म विध्वंस।
वसुदेव देवकी सी जनता है त्रस्त यहां यदुवंश।।
शिशुपाल स्वर ताल मिला कर पुनः दे रहा गारी।
पुनः काटिये उसकी गर्दन चक्र सुदर्शन धारी।। वंचक विष के वचन बोल कर बजबा रहा बधैया।।
हे माधव मधुसूदन मोहन नटवर कृष्ण कन्हैया।।
जो वलिष्ट औ शिष्ट बनाती निज विशिष्ट पय से।
वो परम पूज्य गौ माता सहमी बूचड़ के भय से।।
भारत माता सी वंदनीय जो गाय रही गोपाल।
उसी देश की माटी में होती है गऊ हलाल।।
रभा रभा कर तुम्हें टेरती वही तुम्हारी गैया।
हे माधव मधुसूदन........... .....................।।
सड़कों मे लुट रही द्रोपदी करे आप से अर्ज।
कटी अनामिका की पट्टी का पुनः उतारो कर्ज।।
दामों मे बिक गया सुदामा बन वैभव का दास। कर्म योग वैराग्य ज्ञान की आके रचाओ रास।।
फिर से प्रीत पुनीत जगा दो गा के ता ता थैया।।
हे माधव मधुसूदन........................ ......।।
रविवार, 29 मार्च 2020
भेद जलाइए
वेदों को जलाने की बात करते हैं श्रीमान।
जिसने आपको पशु से बनाया इंसान।।
यदि जलाने की ही जिद है तो शौक से जलाइए।
और अपने देश का कचरा हटाइए।।
पर वेदों को नहीं बल्कि भेदों को।।
15 और पचासी के।
कावा और काशी के।।
अल्लाह भगवान का।
गीता और कुरान का।।
आरक्षण के भक्षक का।
शेषनाग और तक्षक का।।
ऊंच और नीच के।
मरु और कीच के।।
विषमता और समता का।
नेता और जनता का।।
अपनी पराई का।
ननद भौजाई का।।
कोलार और धनबाद का।
पूंजी मार्क्स वाद का।।
पूरा देश होगा साथ मे।
हाथ लिए हाथ में।।
जलाने के लिए यहा क ई भाव भेद हैं।
सैकड़ों कुरीतियां हैअगणित लवेद हैं।।
विकृतियाँ हटाना इस देश से जरूरी है।
पर वेद बिना भारत की कल्पना अधूरी है।।
वेदों के बिना अपनी सभ्यता का खात्मा है।
वेद अपने भारत के संस्कृति की आत्मा है।।
हेमराज हंस भेड़ा
६/६/१९९७
शनिवार, 28 मार्च 2020
आजादी कै स्वर्ण जयंती
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती दुपहर के अधिआरन मा।।
हमरे देस मा स्वर्ण जयंती सुरसा अस महंगाई कै।
वढना अस जे दल का बदलै वा दल बदलू भाई कै।।
आजादी कै स्वर्ण जयंती ही दिल्ली भोपाल मा।
आजौ हरिआ है गुलाम हेन गांवन के चउपाल मा।।
आजादी कै स्वर्ण जयंती पूंजीवाद कछारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।।
आजादी कै स्वर्ण जयंती ही अलगू के बखरी मा।
सरकारी योजना बधी है जेखे खूंटा सकरी मा।।
चमचागीरी अभिनंदन के गाये ठुमरी ददरी मा।
झूरझार जे खासा गरजै उजर उजर वा बदरी मा।
लमही बाली मउसी रोबै पंच के अत्याचारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।।
स्वर्ण जयंती बापू के भुंइ मा ही नाथूराम कै।
स्वर्ण जयंती जयललिता के साथ साथ सुखराम कै।।
स्वर्ण जयंती बोट के खातिर तुष्टीकरण मुकाम कै।।
स्वर्ण जयंती सिद्धांतन के कुर्सी निता लिलाम कै।।
गांधीवाद समाज वाद लगबाये लबरी नारन मा।
आजादी कै स्वर्ण जयंती टीबी मा अकबारन मा।।
आजादी
होरी फगुआ
कइसन खेलै होरी जनता रोरी हबै न रंग।
पानी तक ता दुरघट होइगा कइसा घोटै भंग।।दांती टहिआ कलह दंभ का हिरना कश्यप राजा।
राजनीत होलिका बजाबै लोकतंत्र का बाजा।।
प्रहलाद प्रेम भाईचारा कै नहिआय कहूं उमंग।
महंगाई बन के आई ही हमरे देस मा हुलकी।
तब कइसन के चढै करहिआ कइसन बाजै ढोलकी।।
भूंखे पेट बजै तब कइसा या खंझनी मृदंग।।
फूहर पातर भासन लागैं होरी केर कबीर।
छूंछ योजना कस पिचकारी आश्वासन का अबीर।।
लकालक्क खादी कुरथा मा भ्रष्टाचारी रंग।
कुरसी बादी राजनीत मिल्लस का चढाबै फांसी।
आपन स्वारथ सांटै खातिर पंद्रा अउर पचासी।।
नरदा अपने आप का मानै गंगा केर तरंग।
कहूं बाढ कहु सूखा है कहु महामारी का ग्रास। कहूं ब्याबस्था जन जीबन का कीन्हिस जिंदा लास ।।
जने जने की आंखी भींजीं दुक्ख सोक के संग।।
कइसन खे लै होरी जनता रोरी हबै न रंग।।
हेमराज हंस
शुक्रवार, 27 मार्च 2020
मैहर 29 मई 1997
मैहर है जहां बिद्या कै देबी बिराजीं मांँ शारद शक्ति भवानी ।
पहिलय पूजा करै नित आल्हा औ देबी के बर से बना बरदानी।।
मैहर है जहां लिलजी के तट मठ माही सिव हे अउघर दानी।
मैहर है जहां संगम है सुर सरगम कै झंकार सुहानी।।
पै 29 मई 97 कां हि पतझर घांई निझर गा तै मइहर।
सरकारी गुंडन के गोली औ डंडन से जलिआ कस बाग उजर गा तै मइहर।।
सारद माई का पावन तीरथ मरघट घांई व जल गा तै मैहर।
सायरन सींटी अन्याय अनीती औ करफू के पांव चहल गा तै मैहर।।
खून कै नद्दी बही हेन दद्दी पै डोला न दिल्ली भोपाल का आसन।
गृह मंत्री जी संतरी तक नहि भेजिन न आये हेन दिग्गी प्रदेश के सासन।।
मैहर है जहां खेली गै ते मजदूर के रक्त से खून कै होरी।
तड़तड़ गोली धसी जहां सीना मा मारिन तै निर्दयी अखोरी। ।
लहास बिछाय दइन सड़कन मा लागै नगर बिना धनधोरी।
ईट औ पाथर तक जहा रोयें ते पै न पसीझे उंइ खूनी अघोरी।।
न्याव के मांगे मा मांग का सेदुर पोछ के होइगा कलंकित मैहर।
श्रमिकन का जहा खून बहा औ घायल रक्त
से रंजित मैहर।।
मानउता किल्लाय उची पै करुना दया से है खंडित मैहर।
आजौ गुलामी औ डायर हें इतिहास के पन्ना मा अंकित मैहर।।
29 मई 97 कहि केत्तव का पालन हार गुजर गा।
केत्तिव राखी भयीं बिन हांथ अनाथ व केत्तेव बचपन कर गा।।
नहाय गा खून से मैहर पै बरखास न भा एक थाने का गुरगा।।
अंगना मा जेखे भयीं है कतल अब छान करी वा सारद दुरगा।।
अहिंसा के नाती हे हिंसक घाती औ उनखर आंखी हिबै बिन पानी।
जइसन आस करै कोउ कोकास से ओइसय होइगै जांच कहानी।।
न्याव के हँस का खाय गें कंस छनाइन बगुला से दूध का पानी।
'हँस' उरेही कसाई के पाप का जब तक हांथ रही मसियानी।।
हेमराज हंस
30,5,1997
चिठ्ठी
आजु दुइ बजे रजधानी से एक ठे चिठ्ठी आई।
वमै लिखा तै मतदाता का मूर्ख दिवस कै बधाई।।
जउन चुनाव जिताया हमही वाखर हयन अभारी।
हमरव भाव बढे हें खासा मंडी कस तरकारी।।
जबसे चुन के भेज्या हमही लगा थी लमहर बोली।
यहै बहाने लोकतन्त्र से हो थी हंसी ठठोली।।
भुखमरी बेकारी टारैं बाली हमसे कर्या न आस।
ईं चुनाव के मधुबन माही आहीं सइला रास।।
टी बी माही देखत्या होइहा उजर भभिस्य के धइना।
हम अंधरन के घर लगबाउब चार चार ठे अइना।।
बड़े भाग से हम बन पायन गद्दी के अधिकारी।
दिन बीतै ऊंटी सिमला मा क्लब मा रात गुजारी।।
संपाती अस सुरिज के रथ कै मन मा ही लउलितिया।
चाहे केत्तव नफरत बाली ठाढ होइ जाय भितिया।।
जइसा सब का जान्या मान्या ओइसय हमीं समोखा।
हमरेन दारी खोल त्या हा सिद्धांतन केर झरोखा।।
हरबिन मिलब आय के तोहसे कइके खाली कोस।
हम छानी हेन माल पुआ तुम रहा ब्रते परदोष।।
एक मतदाता पढ के चिठ्ठी चट्टै लिखिन जबाब।
अपना परंपरा का पाली हम ठगर्रत जाब।।
पै नोन का कान करा थै कंजर येतू लाज ता राखी।
भार उचाई हम कांधा मा अपना सेंतै कांखी ।।
हम मान्यन कोकास की नाई ही अपना कै पांत।
दरसन एकता केर मिला थें धन्न अपना का साथ।।
पै संपाती के लच्छन छ्वाड़ा बन जा गरुड़ जटाऊ।
येत्तेन माही लोकतंत्र कै बदल जइ जलबाऊ।। @ हेमराज हंस भेड़ा
12/3/1997
शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2020
हमरे बघेली का खतरा नहि आय
हमरे बघेली का खतरा नहि आय।
वमै कउनौ मेर का अतरा नहि आय।।
बरेदी के गउंखर से मालिक के बखरी तक
कउनौ बिचइकी का पतरा नहि आय।।
शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2020
शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2020
बुधवार, 5 फ़रवरी 2020
रोटी के निता
आम जनता जूझाथी रोटी के निता।
औ उंई लड़ि रहे हें डबल रोटी के निता।।
दिन मा तीन बेर उंई ओन्हा बदला थें
बपुरी जनता तरसा थी लगोटी के निता।।
शुक्रवार, 31 जनवरी 2020
संदेसा लइ आबा मधु मास।
मधुमास
===========
संदेसा लइ आबा मधु मास।
माघ तिला तिल बढ़ै फागुन
घाम लगै जब कुन कुन।
बहै बयार बसंती गमकत
भमरा गाबै गुनगुन। ।
फुले गेंदा जुही चमेली
राई अउर पलास।
अंगड़ाई लीन्हिस अमराई
नउती कड़बा करहा।
आरव पाइस जब होरी का
बाजै ढोल पहरहा। ।
ओढ़ पियरिया खेतबा लागै
जस कवित्त अनुप्रास।
हमरे गांव मा
****************
जब से चुनाव बिख बोगा भाई हमरे गाँव मा।
तब से आबै रोज दरोगा भाई हमरे गाँव मा।।
लगे पढ़ामै जब से गुंडा क ख ग घ अंगा।
कहिन गुरू जी जान बची ता हमूं नहायन गंगा। ।
द्रोण ढाहन आंसू रो गा भाई हमरे गाँव मा।
लमही बाली मउसी बपुरी न्याव निता फिफिआय।
दांते रोटी काट काट अलगू जुम्मन बिदुराय। ।
ईसुर पंचाइत का सो गा भाई हमरे गाँव मा।
खूब मोटान ही फाइल खाके दीन निराश्रित पेनसन।
चार उपास करे घर माही बुधिआ बइठ ही अनसन। ।
भूंख दाबिस ओखर घोघा भाई हमरे गाँव मा।
जब जब पहुंच्यन रपट लिखामै पहिले पंहुचा फून।
नेता के चमचा के सार का का कइ लेइ कानून। ।
बइठे सोच्यै बपुरा जोगा भाई हमरे गांव मा।
भुइ पूजा कइ कहि गें उइ की हेइन बनी इदारा।
ताके ताके थक गईं आँखी हिरके नहीं दुबारा। ।
पुनि के अइहै बजाबत चोगा भाई हमरे गांव मा
होइगें सत्तर साल हंस का डारत डारत बोट।
तउ लोक है दूबर पातर तंत्र भा खासा मोट। ।
तउ सादर करी तरोगा भाई हमरे गाँव मा। ।
हेमराज हंस भेड़ा
गुरुवार, 23 जनवरी 2020
ओ पापी लुच्चा तै पाक
......................................
ओ पापी लुच्चा तैं पाक तोही नही आबै लाज,
जउन साज साज घुसपइठ तैं करउते हे।
लगथै कि भूलि गये गिनती हिजड़ी सेना केर,
पुनि के तै वाखर जन संख्या गिनबउते हे॥
तोरे इतिहास माही नही कुछु रास भांस ,
हमरे भूंगोल माही पीठ तैं दतउते हे।
अइहे जो तैं कश्मीर सेना डारी सीना चीर,
दुइ दारी त देखि चुके पुनि अजमउते हे॥
ओ पापी लुच्चा तैं पाक तोही नही आबै लाज,
जउन साज साज घुसपइठ तैं करउते हे।
लगथै कि भूलि गये गिनती हिजड़ी सेना केर,
पुनि के तै वाखर जन संख्या गिनबउते हे॥
तोरे इतिहास माही नही कुछु रास भांस ,
हमरे भूंगोल माही पीठ तैं दतउते हे।
अइहे जो तैं कश्मीर सेना डारी सीना चीर,
दुइ दारी त देखि चुके पुनि अजमउते हे॥
भारत के मांटी केर वीरता कै परिपाटी,
बांच ले पुरान चाह नये इतिहास का।
भारत के मांटी माही हें जवान वीर शेर,
हेर हेर बीन ल्याहैं धरती अक्काश का॥
मुंह देखी मेलजोल पीठ पीछ बैर मोल,
तोर दोगली य चाल दुअरा विनाश का।
अरे दीदी जो पिआये दूध करदे एलान जुद्व,
जिंदय मां बनबा ले कब्र अपने लहास का॥
बांच ले पुरान चाह नये इतिहास का।
भारत के मांटी माही हें जवान वीर शेर,
हेर हेर बीन ल्याहैं धरती अक्काश का॥
मुंह देखी मेलजोल पीठ पीछ बैर मोल,
तोर दोगली य चाल दुअरा विनाश का।
अरे दीदी जो पिआये दूध करदे एलान जुद्व,
जिंदय मां बनबा ले कब्र अपने लहास का॥
हिमालय से ज्वालामुखी फूट के निकर परी,
सह पइहे आंच तै न हिन्दुस्तानी वीर के।
वा दारी त दुर्गा रहीं य दारी हें महाकाल,
भुट्टो अस होइ हाल तोरव त अखीर के॥
रे ढीठ नीच मान बात कर न तै उत्पात,
भारतीय भूंगोल मांही सरहद तीर के।
जब तक सुरिज औ चन्दा हें अकास मांही,
धरती मां लहरइ तिरंगा कश्मीर के ॥
सह पइहे आंच तै न हिन्दुस्तानी वीर के।
वा दारी त दुर्गा रहीं य दारी हें महाकाल,
भुट्टो अस होइ हाल तोरव त अखीर के॥
रे ढीठ नीच मान बात कर न तै उत्पात,
भारतीय भूंगोल मांही सरहद तीर के।
जब तक सुरिज औ चन्दा हें अकास मांही,
धरती मां लहरइ तिरंगा कश्मीर के ॥
@हेमराज हंस भेड़ा
9575287490
सुन इस्लामबाद
⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎⸎
अब दिल्ली ललकार उची,सुन रे इस्लामाबाद।
कोलिया के झगड़ा मां आपन,बेंच न डारे बांध॥
कोलिया के झगड़ा मां आपन,बेंच न डारे बांध॥
नीक के आखर आंखर पढ,इतिहास पोथन्ना खोल।
हमहिन आह्यन वहै वंश,जे बदल दइस भूंगोल॥
बंग्लादेश के बदला बाली, पूर न होई साध।
अब दिल्ली...............................................
हम तोही मउसी अस लड़िका,अपने जिव मां चाही।
हमरेन घर मां सेंध मार तैं, करते हये तबाही॥
बे कसूर के हत्या का तै,कहते हये ‘जेहाद'॥
अब दिल्ली.......................................................
हमरे देस मां करै उपद्रव, तोर गुप्तचर खुपिया।
हांथ मिलामैं का रचते हे,तै नाटक बहुरूपिया॥
एक कइ उत्पात कराउते,एक कइ संवाद॥
अब दिल्ली..........................................
हमरे देस कै पोल बतामै,मीरजफर के नाती।
तोरे भिरूहाये मां बनिगें महतारी के घाती॥
महावीर अब्दुल हमीद कै हमी न बिसरै याद।
अब दिल्ली..........................................
खूनी आतंकवादीन का तै अपने घरे लुकाउते।
औ उपर से हमहीं सोला दूनी आठ पढाउते॥
भारत के हर गाँव गली मां उूधम सिंह कै मांद।
अब दिल्ली ललकार उची सुन रे इस्लामा बाद॥
कोलिया के झगड़ा मां अबकी बिक जइ सगला बांध।
................................................................................
मंगलवार, 21 जनवरी 2020
देस गीत
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आबा सब जन करी बंदना या आजाद अकास कै।
करी आरती भारतमाता कै चिंतन इतिहास कै। ।
नमन करी हम बीर शिबा अउ पृथ्बीराज चौहान का।
छत्रसाल के देस भक्ति का अउर अशोक महान का। ।
बंदन हम करि रह्यान आजु संतामन के चिनगारी का।
पै न भूल्या भारत बासिव मीर ज़फ़र गद्दारी का। ।
आबा हम अभिनन्दन गाई देस भक्ति के रंग का।
मेरठ के मङ्गल पांडे का आज़ादी के जंग का। ।
झाँसी के लछमी बाई का औ झलकारी दासी का।
आबा सुमिरी हम बिस्मिल का भगत सिंह के फांसी का। ।
ऊधम सिंह असफाक औ लहड़ी गरफन्दा का चूम गें।
बंदेमातरम गाय -गाय के फांसी माही झूम गें। ।
औ आज़ाद आज़ादी खातिर हबन किहिन तै प्रान का।
धरती काँपी तै प्रयाग कै देखि के वा बलिदान का। ।
आबा हमहूँ देखी केचुर कायर डायर नाग का।
डस लीन्हिस जे अमृतसर के जालियांबाला बाग का। ।
आबा भाई नमन करी हम बाल पाल् औ लाल का।
काट दिहिन जे अंगरेजन के कपट गुलामी जाल का। ।
आबा अच्छत फूल चढ़ाई औ सुधि करी सुभाष कै।
करी आरती भारतमाता कै चिंतन इतिहास कै। ।
आज़ादी के हबन कुण्ड मा हूम करिन जे प्रान का।
बीर पदमधर रणमत सिंह के सुमिरी हम बलिदान का। ।
आबा नमन करी नेहरू का भोगिन तै जे जेल का।
भारत माता गदगद होइगै पाके पूत पटेल का। ।
भारत छोड़ो आन्दोलन कै चारिव कइ अबाज उची।
औ सुराज के सुभ सकार कै डम डम डमरू बाज उची। ।
रोक न पाये अंग्रेजबा जब आज़ादी के आंधी का।
भारत सोने के अच्छर मा नाव लिखे है गाँधी का। ।
सत्य अहिंसा के बल बापू आपन देस सहेज लिहिन।
सन उन्नीस सै सैतालिस मा अंग्रेजबन का भेज दिहिन। ।
पंद्रह अगस्त सन सैतालिस का जन गण मन हरसाय गा।
हंस 'तिरंगा' भारत माता के अँगना फहराय गा। ।
@हेमराज हंस भेड़ा
🙅🙅तै लगते इन्दौर फलनिया 💁💁
हम सामर तैं गोर फलनिया।
बड़ी मयारू मोर फलनिया। ।
जीवन के ताना -बाना कै ।
तैं सूजी हम डोर फलनिया। ।
हम रतिया भादव महिना कै ।
तैं फागुन कै भोर फलनिया। ।
रिम झिम रिम झिम प्रेम के रित मा ।
हम मेघा तैं मोर फलनिया। ।
हम हन बिंध अस उबड़ खाबड़ ।
तैं लगते इन्दौर फलनिया। ।
हिरदय भा कोहबर अस बाती ।
जब हंस से भा गठजोर फलनिया। ।
✅ @हंस भेड़ा मइहर
9575287490
9575287490
रविवार, 12 जनवरी 2020
तुम गरफांसी अस
तुम गरफांसी अस
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हम तोहरे गर का हार बन्यन पै तुम गरफांसी अस।
तुम राहु केतू बन बइठया औ हम पुनमासी अस। ।
आज सकारेन ता स्वाती का किहे रह्या उद्घाटन।
अबै परी हैं फूल की पखुरी औ फीता का काटन। ।
पानी खातिर करै पपीहा जुद्ध पलासी अस ।
लोकतंत्र के बिरबा माही फर ता लाग अकूत।
तुहिन बड्यारा बन के झार्या हमी बताया भूत। ।
लिहा कमीशन हर डेगाल से हमी अट्ठासी अस।
पच्छिमहाई करैं लाग जब पुरबइया का मान।
मंच मा बइठे गांव कै तिजिया देख देख चउआन। ।
सोचय केतू सभ्भ लगा थी देव दासी अस।
जुगन बीति गें देस के खातिर बिन्ध्य का निहुरे निहुरे
जब से ठग के गें अगस्त मुनि अजुअव तक न बहुरे। ।
तुमहूँ लूट ल्या जिव भर पै वा सन्नासी अस।
कह्या नहा तुम दूध से दद्दी भइंस दया बेथन कै।
मूड़े काही तेल नहीं औ मनुष मुगउरय ठनकै। ।
उई बांटत फिरैं पवाई दारी हम बनबासी अस।
कुछ ठेकेदारन का मिलि गा देस भक्ति का ठेका।
कुछ पलुहामै बंस बाद औ गाँधी बाद गा फेंका। ।
आबा भ्यांटकमार करी हंम मगहर बासी अस।
@ हेमराज हंस भेड़ा
बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : दरबारन मा चर्चा है -----------------...
बघेली साहित्य bagheli sahitya हेमराज हंस : दरबारन मा चर्चा है -----------------...: दरबारन मा चर्चा है -------------------------------------- दरबारन मा चरचा ही कम्प्यूटर इंटरनेट के । खरिहानन मा म...
AAPAN BOLI BANI LAGAY MANAS KAI CHAUPAI
AAPAN BOLI BANI LAGAY MANAS KAI CHAUPAI
दरबारन मा चर्चा है
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दरबारन मा चरचा ही कम्प्यूटर इंटरनेट के ।
खरिहानन मा मरै किसनमा फंदा गरे लपेट के। ।
केत्तव निकहा बीज होय पै पनपै नहीं छह्याला मा।
उनही दइ द्या ठयाव सुरिज का दउरैं न सरसेट के। ।
करब टंटपाली अउ टोरइली कब का उइ ता भुलि चुकें
बपुरे ध्रुब प्रहलाद हें दूरी पोथी अउर सलेट के। ।
अइसा घिनही आँधी आई बिथरि गा सब भाई चारा।
पुरखा जेही बड़े जतन से सउपिन रहा सहेज के। ।
मंदिर मसजिद से समाज के मिल्लस कै न आस करा
धरम के ठेकेदारन का ई आही साधन पेट के। ।
प्रेमचंद के होरी का उइ उगरी धरे बताऊथें
द्याखा भइलो ताज महल औ चित्र इंडिया गेट के। ।
@हेमराज हंस भेड़ा
शनिवार, 4 जनवरी 2020
मुक्तक
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पहिले लोकतंत्र का गुंडन से बचाबा।
ओखा माहुर भरे कुण्डन से बचाबा। ।
कुतका औ चुम्मा का खेल जनता देखा थी
देस का पाखंडी पंडन से बचाबा। ।
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आबा गुंडागर्दी का नमूना देखाई थे।
जुजबी नहीं दोऊ जूना देखाई थे। ।
जउन सत्तर साल से उइ देस का लगाईंन ही
वा उनखे बेलहरा का चूना देखाई थे। ।
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समय कै घूमत चकरी देखा।
खूंटा देखा सकरी देखा। ।
आज जो भस्मासुर तुम पलिहा
काल्ह अपना अखरी देखा।
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आज वा कालर नहीं पकड़िस गरिआय के चला गा हमी।
फलाने कहा थें गुंडई मा आ रही कुछ कमी।
जो समाज के सनीचर से अपना का बचय खय.
ता खीसा मा डारे रही गम्मदारी कै शमी। ।
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