गुरुवार, 23 जनवरी 2020

         सुन इस्लामबाद 

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अब दिल्‍ली ललकार उची,सुन रे इस्‍लामाबाद।
कोलिया के झगड़ा मां आपन,बेंच न डारे बांध॥

नीक के आखर आंखर पढ,इतिहास पोथन्‍ना खोल।
हमहिन आह्‌यन वहै वंश,जे बदल दइस भूंगोल॥
बंग्‍लादेश के बदला बाली, पूर न होई साध।
अब दिल्‍ली...............................................

हम तोही मउसी अस लड़िका,अपने जिव मां चाही।
हमरेन घर मां सेंध मार तैं, करते हये तबाही॥
बे कसूर के हत्‍या का तै,कहते हये ‘जेहाद'॥
अब दिल्‍ली.......................................................

हमरे देस मां करै उपद्रव, तोर गुप्‍तचर खुपिया।
हांथ मिलामैं का रचते हे,तै नाटक बहुरूपिया॥
एक कइ उत्‍पात कराउते,एक कइ संवाद॥
अब दिल्‍ली..........................................

हमरे देस कै पोल बतामै,मीरजफर के नाती।
तोरे भिरूहाये मां बनिगें महतारी के घाती॥
महावीर अब्‍दुल हमीद कै हमी न बिसरै याद।
अब दिल्‍ली..........................................

खूनी आतंकवादीन का तै अपने घरे लुकाउते।
औ उपर से हमहीं सोला दूनी आठ पढाउते॥
भारत के हर गाँव गली मां उूधम सिंह कै मांद।

अब दिल्‍ली ललकार उची सुन रे इस्‍लामा बाद॥
कोलिया के झगड़ा मां अबकी बिक जइ सगला बांध।
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