शनिवार, 28 मार्च 2020

होरी फगुआ

कइसन खेलै होरी जनता रोरी हबै न रंग। 
पानी तक ता दुरघट होइगा कइसा घोटै भंग।।दांती टहिआ कलह दंभ का हिरना कश्यप राजा। 
राजनीत होलिका बजाबै लोकतंत्र का बाजा।। 
प्रहलाद प्रेम भाईचारा कै नहिआय कहूं उमंग। 
महंगाई बन के आई ही हमरे देस मा हुलकी। 
तब कइसन के चढै करहिआ कइसन बाजै ढोलकी।। 
भूंखे पेट बजै तब कइसा या खंझनी मृदंग।। 

फूहर पातर भासन लागैं होरी केर कबीर। 
छूंछ योजना कस पिचकारी आश्वासन का अबीर।। 
लकालक्क खादी कुरथा मा भ्रष्टाचारी रंग। 

कुरसी बादी राजनीत मिल्लस का चढाबै फांसी। 
आपन स्वारथ सांटै खातिर पंद्रा अउर पचासी।। 
नरदा अपने आप का मानै गंगा केर तरंग।

कहूं बाढ कहु सूखा है कहु महामारी का ग्रास। कहूं ब्याबस्था जन जीबन  का कीन्हिस जिंदा लास ।।
जने जने की आंखी  भींजीं दुक्ख सोक के संग।। 
कइसन खे लै  होरी जनता रोरी हबै न रंग।। 
हेमराज हंस 

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