रविवार, 29 मार्च 2020

भेद जलाइए

 वेदों को जलाने की बात करते हैं श्रीमान।
 जिसने आपको पशु से बनाया इंसान।।
यदि जलाने की ही जिद है तो शौक से   जलाइए।
 और अपने देश का कचरा हटाइए।।
पर वेदों को नहीं बल्कि भेदों को।।
15 और पचासी के।
कावा और काशी के।।
अल्लाह भगवान का।
गीता और कुरान का।।
आरक्षण के भक्षक का।
शेषनाग और तक्षक का।।
 ऊंच और नीच के। 
मरु और कीच के।। 
विषमता और समता का। 
नेता और जनता का।। 
अपनी पराई का। 
ननद भौजाई का।। 
कोलार और धनबाद का। 
पूंजी मार्क्स वाद का।। 
पूरा देश होगा साथ मे। 
हाथ लिए हाथ में।। 
जलाने के लिए यहा क ई भाव भेद हैं। 
सैकड़ों कुरीतियां हैअगणित लवेद हैं।। 
विकृतियाँ हटाना इस देश से जरूरी है। 
पर वेद बिना भारत की कल्पना अधूरी है।। 
वेदों के बिना अपनी सभ्यता का खात्मा है। 
वेद अपने भारत के संस्कृति की आत्मा है।। 
हेमराज हंस भेड़ा 
६/६/१९९७



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