शुक्रवार, 27 मार्च 2020

चिठ्ठी

आजु दुइ बजे रजधानी से एक ठे चिठ्ठी आई। 
वमै लिखा तै मतदाता का मूर्ख दिवस कै बधाई।। 
जउन  चुनाव जिताया हमही वाखर हयन अभारी। 
हमरव भाव बढे हें खासा मंडी कस तरकारी।। 
जबसे चुन के भेज्या हमही लगा थी लमहर बोली। 
यहै बहाने लोकतन्त्र से हो थी हंसी ठठोली।। 
भुखमरी बेकारी टारैं बाली हमसे कर्या न आस। 
ईं चुनाव के मधुबन माही आहीं सइला रास।। 
टी बी माही देखत्या होइहा उजर भभिस्य के धइना।
हम अंधरन के घर लगबाउब चार चार ठे अइना।। 
बड़े भाग से हम बन पायन गद्दी के अधिकारी। 
दिन बीतै ऊंटी सिमला मा क्लब मा रात गुजारी।। 
संपाती अस सुरिज के रथ कै मन मा ही लउलितिया।
चाहे केत्तव नफरत बाली ठाढ होइ जाय भितिया।। 
जइसा सब का जान्या मान्या ओइसय हमीं समोखा। 
हमरेन दारी खोल त्या हा सिद्धांतन केर झरोखा।। 
हरबिन मिलब आय के तोहसे कइके खाली कोस। 
हम छानी हेन माल पुआ तुम रहा ब्रते परदोष।। 
एक मतदाता पढ के चिठ्ठी चट्टै लिखिन जबाब। 
अपना परंपरा का पाली हम ठगर्रत जाब।। 
पै नोन का कान करा थै कंजर येतू लाज ता राखी। 
भार उचाई हम कांधा मा अपना सेंतै कांखी ।।
हम मान्यन कोकास की नाई ही अपना कै पांत।
दरसन एकता केर मिला थें धन्न अपना का साथ।। 
पै संपाती के लच्छन छ्वाड़ा बन जा गरुड़ जटाऊ। 
येत्तेन माही लोकतंत्र कै बदल जइ जलबाऊ।। @ हेमराज हंस भेड़ा 
12/3/1997

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