जहां बिराजीं सारदा धन्न मइहर कै भूम। भक्तन का तांता लगा नाचत गाबत झूम।।
जहाँ बिराजीं शारदा धन्न मइहर का भाग।
बंदूखै तक बन गईं नल तरङ्ग का राग।।
माता जू किरपा किहिन बइठीं आके कंठ। तब कविता गामैं लगा हेमराज अस लंठ।।
जहां बिराजीं सारदा धन्न मइहर कै भूम। भक्तन का तांता लगा नाचत गाबत झूम।।
जहाँ बिराजीं शारदा धन्न मइहर का भाग।
बंदूखै तक बन गईं नल तरङ्ग का राग।।
माता जू किरपा किहिन बइठीं आके कंठ। तब कविता गामैं लगा हेमराज अस लंठ।।
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