रविवार, 9 अक्तूबर 2022

अपना का सेतै लगै अब माख

अपना का सेतै लगै अब माख सिरी मान 
,जन गन मन कै केहनी रही कबिता। 
आतातायी बहेलिया के तीर के बिपछ माही ,
पंछिन के आँख केर पानी रही कबिता।।  
लोकतंत्र पिअय लाग अंगरेज घाइ खून
 दीन दुखियन का पीर सानी रही कबिता।  
ठठुरत हरिआ खदान कै मेहरिआ कै 
औ बिना बड़ेरी बाली छान्ही रही कबिता। । 

योजना से हित  ग्राही जोजन खड़ा है दूर 
ब्यबस्था कै कइसा के सराह बनी कबिता। 
जउन भाईन केर हीसा भइबय हड़पि धरे 
जरि रही छाती वखार आह बनी कबिता।। 
डूबि रहे जात बाद बाली जे नहर माही ,
उनही बचामै  का मल्लाह बनी कबिता।  
प्रहलाद प्रेम पथ माही जे लगामै बारी ,
अइसा हिरनकश्यप का बराह बनी कबिता। । 

रात रात भर किहन तरोगा

 रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगमानी  मां।
बड़े सकारे  मरे  मिले उंइ  एक  चुल्‍लू  भर पानी मां॥

नंच   नंच  आँखिन  से  झांकै   बड्‌डे   जबर  सपन,
बोली   बड़ी   पिआर   लगाथी   तोतली    बानी मां॥
 
संतन  के  जप  तप कीन्हे  इन्द्रासन हालय लागा थै
‘सरमन' सब दिन मारे गे हें सत्‍ता के मनमानी मां॥

शक  के  नजर  से  देखे  जाथें  जब साधू संन्‍नासी तक,
कइसा हमहीं  रिस न चढी हो  लुच्चन  के मेहमानी मां॥

भला जात मा बंट के कउनव  महाशक्‍ति का देस बनी,
जेखर  जनता  बाम्हन  ठाकुर  दलित  औ  बानी   मां॥
 
कोउ  नही  सुनइया   दादू  चह  जेतू    नरिआत    रहा,
सगला देस सुनिस ‘अन्‍ना' का जब बोलिन रजधानी मां॥

खूब  पैलगी  होथी   जेखर औ   समाज  मां  मान  है हंस
उनही  सांझ  के हम देखे  हन गिरत  भंजत रसदानी मां॥
              * @ हेमराज हंस -9575287490 *

शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

लुच्चा अस लागा थें

 उइ बड़े सभ्भदार हें पै गुच्चा अस लगाथें। 
राम दै ! केमाच  के  गुच्छा  अस लगाथें।। 
तुलसी उखाड़ के जब बेसरम लगाइअन ता 
फलाने कहा थें हमीं लुच्चा अस लागा थें।   


सगली दुनिया हिबै अचंभित

 

सगली दुनिया हिबै अचंभित

सगली दुनिया हिबै अचंभित ,दइके नाक रुमाल। 
सत्य अहिंसा के धरती मा , करुणा होय हलाल। । 

छाती पीट -पीट के रोबै, साबरमती कै धारा। 
अब ता बरुनव के घर माही। धधक रहें अंगारा। । 
कोउ बता द्या राजघाट मा ,गांधी जी से हाल। 

जहाँ कै माटी सत्य अहिंसा केर विश्वविद्यालय। 
वहै धरा मा  बहै खून ,औ मार  काट का परलय। । 
गौतम गाँधी के भुइ माही बसे हमै  चंडाल। 

भारत माता के बिटियन के मरजादा का बीमा। 
अब ता उनखे बेसर्मी कै नहि आय कउनौ सीमा। । 
बड़मन्सी कै बोली ब्वालै बड़ बंचक बचाल। 

काल्ह द्रोण मागिन तै अउठा ,आज लइ लइन जान। 
बिद्या कै पबरित परिपाटी तक होइगै बलिदान। । 
रह्यान कबौ हम बिश्व गुरु पै आज गुरू घंटाल। 

शहरन माही आजादी के होथें मङ्गलचार। 
आजव भारत के गॉवन का दमै पबाई दार। । 
सामंती के दुनाली से कापि रही चउपाल।
 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस पूनू

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्‌यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
 

जब से य मन मोहित होइगा

 

जब से य मन मोहित होइगा,

तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै,
चलनी मां औ सूप मां॥
रात रात भर लिहन कराउंटा,
नीद न आई आंॅखिन का।
औ मन बाउर बइकल बागै,
ओ!गोरी तोरे उूब मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,
लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्‍हन,
हमरे दोनिया दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं,
एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर,
निकराथें नलकूप मां॥
सातक्षात्‌ तुम पे्रम कै मुरत,
होइ के निठमोहिल न बना।
द्‌याखा केतू करूना होथी,
ईंटा के ‘स्‍तूप' मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै,
तन औ मन के ओरहन कै,
तब से फलाने महकै ंलागें,
जइसा मंदिर धूप मां॥

शरद कै रात

चितवाथी चरिउ कइ चरकी चमक चंद,
चपल चोचाल अस चोंख चोंख चांॅदनी।


काहू केर जिव करै पपीहा अस पिउ पिउ,
नेह स्‍वाति बूंद का लगाबै दोख चांॅदनी॥


सुकवा जो अस्‍त भा ता उआ है अगस्‍त जी मां,
प्रेम पंथ पानी काही सोख सोख चांॅदनी॥

चकई  के  ओरहन  राहू  केर  गिरहन,
रहि  रहि जाय  मन का मसोस चांॅदनी॥

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पोखरी का पानी जब से थिराय दरपन भा,
तब से जोंधइया रूप राग का सराहा थी।


ठुमुक  ठुमुक  चलै लहर  जो  रसे रसे,
देख देख के तलइया भाग का सराहा थी॥


चांॅदनी से रीझ रीझ पत्‍ता पानी मां पसीझ,
पुरइन  पावन  अनुराग  का  सराहा थी।


जे निहारै एक टक सांझ से सकार तक,

जोंधइया चकोर के वा त्‍याग का सराहाथी॥

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झेंगुर कै तान सुन नाचै लाग जुगनूं ता,
अस लाग जना दीप राग तान सेन का।


भितिया मां चढि के शिकार करै घिनघोरी,
जइसन ‘लदेन'  कांही मारा थै अमेरका॥


ओस  कै बूंद  जस  गिरत देखाय नही,
सनकी से  बात करैं जइसा पे्रमी प्रेमका॥


तन केर मन से जो ताल मेल टूटिगा है,
तब से चरित्र होइगा विश्‍वामित्र मेनका॥

शरद कै रात 

 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

य कइसा छब्बिस जनबरी।

य कइसा छब्बिस जनबरी। 
मरै पेंटागन गनी गरीब 
जिअय देह नंगी उघरी। । 
 
पंचाइत  से  संसद  तक  डाकू  गुंडन  का  पहरा है।
शासन की हैं हियव की फूटी  अउर प्रशासन बहिरा है। । 
एक न सुनै एक नहीं द्याखै कासे भइलो  बात करी। 
 
उई पीरा का पाठ पढ़ामै जेखे लगी न फांस। 
भूंखा सोबइ घर का मालिक चाकर चाटय चमन प्रास। । 
ई सेबक खा ल्याहै देस का इन खे नहि आय नरी गरी। 
 
ऐसी कै बइहर का जानै कइसा ज्याठ बड्यारा। 
का जानै डनलप कै गद्दी कइसन ह्वा थै द्यारा। । 
महलन माही पले गलइचा जानै कइसा टाट दरी। 
 
छल प्रपंच के पहिया माही लोकतंत्र कै गाड़ी। 
केतू जगै रात भर हरिया खेत खा थी बारी। । 
दरबारन से चउपालन तक चारि रहें सांड वसरा पहरी। 
 
करजा लइके खाय रहेन घी अर्थ ब्यबस्था परी उतान। 
भुखमरी बेकारी बोल रही है जय जबान औ जै किसान। । 
गभुआरन कै भूंख खाय आंगनवाड़ी पगुरात खड़ी। 
 
कउने मुँह से स्वाहर गाई गणतंत्र पर्व के बास्कट के। 
हम  कब तकअभिनन्दन गाई डाकू गुंडा चोरकट के। । 
सत्य अहिंसा अउर त्याग कै हमरे देश मा लहास परी। 
 
चला मिटाई भष्टाचार ता लिख जइ नई इबारत। 
अपने देस के भभिस्य का सउपी  साफ इबारत। । 
गाँधी पटेल के लउलितियन  के संकल्पन का पूर करी। 
 
हेमराज या हमरे देस कै करुना भरी कहानी आय। 
मदारी के रहत बंदरिया का दोख द्याब बेइमानी आय। । 
तबहिन ही छब्बिस जनबरी। य कइसा छब्बिस जनबरी। 
  
 

गाँधी जी औ मायावती

कांसी कै मायावती अपना कै मरी मती गाँधी अस जती काही काहे  गरिआइ थे। 
बापू आय राष्ट बाप बापू आय जातक  जाप गौतम केर मरजादा काहे घरिआई थे। । 
सत्ता के भूंख माही सत का मिटाय रहन जनगणमन मा काहे कलह  बमुरा लगाई थे। 
करी  कुछु नीक  निकाई  बन जाबै लछमी बाई सूर्पणखा अस काहे नाक कटबायीं थे। । 

भारतीय संस्कृति मा नारी है परम पूज्य पढ़ लेइ इतिहास अपना जीजा दुर्गावती कै। 
पन्ना धाय अस तप त्याग अनुराग करी कहानी बन जाब  अपनव रानी रूप मती कै। ।
मेघा औ टेरेसा अस जन कल्याण करी वतरय पुन मान होइ कुमारी माया वती कै। 
कुरसी के तीन पांच मा कुलांच कै न आंच देई भारत माही पूजा हो थी त्याग दया मती कै। । 
 
अपना से करी चेरउरी नफरत कै न बांटी रेउरी सत्ता केर मउरी  या सेरा जई सिताप मा। 
काहे  बिनाश  केर  रास  तुम  रचाय  रह्या  राग  द्वेष  इरखा  भासा  बानी  पाप मा। । 
देस का बिकास होइअनेकता के एकता मासब कै सुख शांती ही मनसा बाचा जाप मा। 
गाँधी आय गीता रामायण गाँधी आय नर मा नारायण पै तुम हेरे मिलिहा न कऊनव किताप मा। । 
 


 


बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

राबन का फूफा बताउथें


 उइ राबन  का आपन फूफा बताउथें। 
चलनी अस चरित्त का सूपा बताउथें।। 
पाखंड  के बेशर्मी कै  उदारता तो देखा  
कुलच्छनी सूर्पनखा का सतरूपा बताउथें। ।