शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

सगली दुनिया हिबै अचंभित

 

सगली दुनिया हिबै अचंभित

सगली दुनिया हिबै अचंभित ,दइके नाक रुमाल। 
सत्य अहिंसा के धरती मा , करुणा होय हलाल। । 

छाती पीट -पीट के रोबै, साबरमती कै धारा। 
अब ता बरुनव के घर माही। धधक रहें अंगारा। । 
कोउ बता द्या राजघाट मा ,गांधी जी से हाल। 

जहाँ कै माटी सत्य अहिंसा केर विश्वविद्यालय। 
वहै धरा मा  बहै खून ,औ मार  काट का परलय। । 
गौतम गाँधी के भुइ माही बसे हमै  चंडाल। 

भारत माता के बिटियन के मरजादा का बीमा। 
अब ता उनखे बेसर्मी कै नहि आय कउनौ सीमा। । 
बड़मन्सी कै बोली ब्वालै बड़ बंचक बचाल। 

काल्ह द्रोण मागिन तै अउठा ,आज लइ लइन जान। 
बिद्या कै पबरित परिपाटी तक होइगै बलिदान। । 
रह्यान कबौ हम बिश्व गुरु पै आज गुरू घंटाल। 

शहरन माही आजादी के होथें मङ्गलचार। 
आजव भारत के गॉवन का दमै पबाई दार। । 
सामंती के दुनाली से कापि रही चउपाल।
 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस पूनू

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्‌यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
 

जब से य मन मोहित होइगा

 

जब से य मन मोहित होइगा,

तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै,
चलनी मां औ सूप मां॥
रात रात भर लिहन कराउंटा,
नीद न आई आंॅखिन का।
औ मन बाउर बइकल बागै,
ओ!गोरी तोरे उूब मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,
लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्‍हन,
हमरे दोनिया दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं,
एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर,
निकराथें नलकूप मां॥
सातक्षात्‌ तुम पे्रम कै मुरत,
होइ के निठमोहिल न बना।
द्‌याखा केतू करूना होथी,
ईंटा के ‘स्‍तूप' मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै,
तन औ मन के ओरहन कै,
तब से फलाने महकै ंलागें,
जइसा मंदिर धूप मां॥

शरद कै रात

चितवाथी चरिउ कइ चरकी चमक चंद,
चपल चोचाल अस चोंख चोंख चांॅदनी।


काहू केर जिव करै पपीहा अस पिउ पिउ,
नेह स्‍वाति बूंद का लगाबै दोख चांॅदनी॥


सुकवा जो अस्‍त भा ता उआ है अगस्‍त जी मां,
प्रेम पंथ पानी काही सोख सोख चांॅदनी॥

चकई  के  ओरहन  राहू  केर  गिरहन,
रहि  रहि जाय  मन का मसोस चांॅदनी॥

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पोखरी का पानी जब से थिराय दरपन भा,
तब से जोंधइया रूप राग का सराहा थी।


ठुमुक  ठुमुक  चलै लहर  जो  रसे रसे,
देख देख के तलइया भाग का सराहा थी॥


चांॅदनी से रीझ रीझ पत्‍ता पानी मां पसीझ,
पुरइन  पावन  अनुराग  का  सराहा थी।


जे निहारै एक टक सांझ से सकार तक,

जोंधइया चकोर के वा त्‍याग का सराहाथी॥

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झेंगुर कै तान सुन नाचै लाग जुगनूं ता,
अस लाग जना दीप राग तान सेन का।


भितिया मां चढि के शिकार करै घिनघोरी,
जइसन ‘लदेन'  कांही मारा थै अमेरका॥


ओस  कै बूंद  जस  गिरत देखाय नही,
सनकी से  बात करैं जइसा पे्रमी प्रेमका॥


तन केर मन से जो ताल मेल टूटिगा है,
तब से चरित्र होइगा विश्‍वामित्र मेनका॥

शरद कै रात 

 

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2022

य कइसा छब्बिस जनबरी।

य कइसा छब्बिस जनबरी। 
मरै पेंटागन गनी गरीब 
जिअय देह नंगी उघरी। । 
 
पंचाइत  से  संसद  तक  डाकू  गुंडन  का  पहरा है।
शासन की हैं हियव की फूटी  अउर प्रशासन बहिरा है। । 
एक न सुनै एक नहीं द्याखै कासे भइलो  बात करी। 
 
उई पीरा का पाठ पढ़ामै जेखे लगी न फांस। 
भूंखा सोबइ घर का मालिक चाकर चाटय चमन प्रास। । 
ई सेबक खा ल्याहै देस का इन खे नहि आय नरी गरी। 
 
ऐसी कै बइहर का जानै कइसा ज्याठ बड्यारा। 
का जानै डनलप कै गद्दी कइसन ह्वा थै द्यारा। । 
महलन माही पले गलइचा जानै कइसा टाट दरी। 
 
छल प्रपंच के पहिया माही लोकतंत्र कै गाड़ी। 
केतू जगै रात भर हरिया खेत खा थी बारी। । 
दरबारन से चउपालन तक चारि रहें सांड वसरा पहरी। 
 
करजा लइके खाय रहेन घी अर्थ ब्यबस्था परी उतान। 
भुखमरी बेकारी बोल रही है जय जबान औ जै किसान। । 
गभुआरन कै भूंख खाय आंगनवाड़ी पगुरात खड़ी। 
 
कउने मुँह से स्वाहर गाई गणतंत्र पर्व के बास्कट के। 
हम  कब तकअभिनन्दन गाई डाकू गुंडा चोरकट के। । 
सत्य अहिंसा अउर त्याग कै हमरे देश मा लहास परी। 
 
चला मिटाई भष्टाचार ता लिख जइ नई इबारत। 
अपने देस के भभिस्य का सउपी  साफ इबारत। । 
गाँधी पटेल के लउलितियन  के संकल्पन का पूर करी। 
 
हेमराज या हमरे देस कै करुना भरी कहानी आय। 
मदारी के रहत बंदरिया का दोख द्याब बेइमानी आय। । 
तबहिन ही छब्बिस जनबरी। य कइसा छब्बिस जनबरी। 
  
 

गाँधी जी औ मायावती

कांसी कै मायावती अपना कै मरी मती गाँधी अस जती काही काहे  गरिआइ थे। 
बापू आय राष्ट बाप बापू आय जातक  जाप गौतम केर मरजादा काहे घरिआई थे। । 
सत्ता के भूंख माही सत का मिटाय रहन जनगणमन मा काहे कलह  बमुरा लगाई थे। 
करी  कुछु नीक  निकाई  बन जाबै लछमी बाई सूर्पणखा अस काहे नाक कटबायीं थे। । 

भारतीय संस्कृति मा नारी है परम पूज्य पढ़ लेइ इतिहास अपना जीजा दुर्गावती कै। 
पन्ना धाय अस तप त्याग अनुराग करी कहानी बन जाब  अपनव रानी रूप मती कै। ।
मेघा औ टेरेसा अस जन कल्याण करी वतरय पुन मान होइ कुमारी माया वती कै। 
कुरसी के तीन पांच मा कुलांच कै न आंच देई भारत माही पूजा हो थी त्याग दया मती कै। । 
 
अपना से करी चेरउरी नफरत कै न बांटी रेउरी सत्ता केर मउरी  या सेरा जई सिताप मा। 
काहे  बिनाश  केर  रास  तुम  रचाय  रह्या  राग  द्वेष  इरखा  भासा  बानी  पाप मा। । 
देस का बिकास होइअनेकता के एकता मासब कै सुख शांती ही मनसा बाचा जाप मा। 
गाँधी आय गीता रामायण गाँधी आय नर मा नारायण पै तुम हेरे मिलिहा न कऊनव किताप मा। । 
 


 


बुधवार, 5 अक्तूबर 2022

राबन का फूफा बताउथें


 उइ राबन  का आपन फूफा बताउथें। 
चलनी अस चरित्त का सूपा बताउथें।। 
पाखंड  के बेशर्मी कै  उदारता तो देखा  
कुलच्छनी सूर्पनखा का सतरूपा बताउथें। । 

मंगलवार, 4 अक्तूबर 2022

11राम 11 सनातन

 जय गनेस सब जन कही जय जय उमा महेश। 
सिउ जी के परिवार,  अस  सुखी  रहय य देस।।
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 राम कबिन के  शब्द हैं ,राम संत का ब्रम्ह। 
हुलकी काही आग हें ,औ प्रहलाद का खंभ। । 
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राम देस के प्रान औ, राम बिश्व के गर्व। 
राम ऋचा ऋगवेद कै राम यजुर्व अथर्व। । 
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राघव मरजादा दिहिन, औ माधव जी कर्म।
दुइ लीखन मा चलि रहा,सत्य सनातन धर्म।।  
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महादेव  हैं बिश्व मा, समता बादी ईश।
चह पूजैं श्री राम जू ,चह पूजै दशशीश। ।  
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 किहिस सनातन सब दिना, जन मंगल का गान।
प्राणी मा सद भावना, बिस्व केर कल्यान।।
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भिन्न भिन्न भाखा हईं ,अलग अलग है भेस।      
एक सनातन मा गुहा , पूरा भारत देस।। 
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देस भक्ति औ धरम कै, मूल भाबना एक। 
उत्तर कै गंगा करै ,दाख्खिन का अभिषेक।   
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तीर्थ हमारे देश में, हैं संस्कृति के अक्ष।
वसुधैव कुटुम्बं भावना , जिनका पावन लक्ष।।
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शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार। 
 ईश्वर को लेना पड़ा परसुराम अवतार। । 
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गाँव गाँव   बोबा   जबा  पंडा  दे  थें  हूम।
लोक धरम कै देस  मा चारिव कइती धूम।। 
 
आठैं अठमाइन चढै खेर खूंट का भोग। 
जलसा का कलसा धरे राम जनम का जोग।। 
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परयाबरनी प्रेम कै देखी भारतीय खोज। 
अमरा के छहियां करी अपना पंचे भोज।। 
 
पीपर  मा  बसदेव  जू  बधी  बरा के सूत। 
तुलसी  जू  कै  आरती  आमा मानैं पूत।। 
 
नीम बिराजैं सीतला औ जल बरुन का बास। 
परयाबरन  मा  पुस्ट  है  भारत का बिस्वास।।
 
हमरे  भारत  का  रहै  चह  कउनौ  तेउहार।
सब दिन हम पूजत रह्यन बिरबा नदी पहार। ।
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युग नायक होते नही किसी जाति में कैद। 
वे बीमार समाज के हैं शुभ चिंतक वैद। ।  
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जिधना से भृगु जी हनिंन , श्री हरि जू का लात।
लछमी जी रिसिआय के, पेल भगीं गुजरात।। 
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भारत कै पहिचान हें ,राम बुद्ध औ कृष्न।
इन माही स्वीकार नहि ,कउनव चेपक प्रश्न।
 
 
 
    
@हेमराज हंस -भेड़ा  
 

बिजय दसमी कै सादर बधाई।

अपना का बिजय दसमी कै सादर बधाई। 
जउन भीतर बइठ है वा राबन का जलाई।। 
नजर रखी पुजारी अस शिकारी अस नहीं 
येतुन मा देस समाज कै होइ जई भलाई। । 
 
जंगल बिरबा कटरिगे ,मिली कहा अब मित्र।
फेसबुक मा द्याखत रही , निल कण्ठ के चित्र। ।
 
नील  कंठ  औ शमी  मा  ,देखा  गा   देवत्व।
दसराहा का शुभ हबै ,दरसन करब  महत्त्व। ।  
                 हेमराज हंस -भेड़ा   
 

बंदेमातरं


सरग से नीक मोरे देस कै य धरती ही,
जिव से है अधिक पियार बंदेमातरं।
रूपसी के देंह से ही स्‍वारा आना सुंदर य,
आपन माटी देश कै सिंगार बंदेमातरं॥
बहै नदी कलकल पानी करै छलछल,
टेराथें पहार औ कछार बंदेमातरं।
जहां बीर बलिदानी भारत का बचामै पानी,
सूली माही टगिगे पुकार बंदेमातरं॥