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शनिवार, 8 अक्टूबर 2022
सगली दुनिया हिबै अचंभित
शुक्रवार, 7 अक्टूबर 2022
उनखेे कइ शरद् अस पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
जब से य मन मोहित होइगा
तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै,
चलनी मां औ सूप मां॥
रात रात भर लिहन कराउंटा,
नीद न आई आंॅखिन का।
औ मन बाउर बइकल बागै,
ओ!गोरी तोरे उूब मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,
लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्हन,
हमरे दोनिया दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं,
एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर,
निकराथें नलकूप मां॥
सातक्षात् तुम पे्रम कै मुरत,
होइ के निठमोहिल न बना।
द्याखा केतू करूना होथी,
ईंटा के ‘स्तूप' मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै,
तन औ मन के ओरहन कै,
तब से फलाने महकै ंलागें,
जइसा मंदिर धूप मां॥
शरद कै रात
चितवाथी चरिउ कइ चरकी चमक चंद,
चपल चोचाल अस चोंख चोंख चांॅदनी।
काहू केर जिव करै पपीहा अस पिउ पिउ,
नेह स्वाति बूंद का लगाबै दोख चांॅदनी॥
सुकवा जो अस्त भा ता उआ है अगस्त जी मां,
प्रेम पंथ पानी काही सोख सोख चांॅदनी॥
चकई के ओरहन राहू केर गिरहन,
रहि रहि जाय मन का मसोस चांॅदनी॥
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पोखरी का पानी जब से थिराय दरपन भा,
तब से जोंधइया रूप राग का सराहा थी।
ठुमुक ठुमुक चलै लहर जो रसे रसे,
देख देख के तलइया भाग का सराहा थी॥
चांॅदनी से रीझ रीझ पत्ता पानी मां पसीझ,
पुरइन पावन अनुराग का सराहा थी।
जे निहारै एक टक सांझ से सकार तक,
जोंधइया चकोर के वा त्याग का सराहाथी॥
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झेंगुर कै तान सुन नाचै लाग जुगनूं ता,
अस लाग जना दीप राग तान सेन का।
भितिया मां चढि के शिकार करै घिनघोरी,
जइसन ‘लदेन' कांही मारा थै अमेरका॥
ओस कै बूंद जस गिरत देखाय नही,
सनकी से बात करैं जइसा पे्रमी प्रेमका॥
तन केर मन से जो ताल मेल टूटिगा है,
तब से चरित्र होइगा विश्वामित्र मेनका॥
शरद कै रात
गुरुवार, 6 अक्टूबर 2022
य कइसा छब्बिस जनबरी।
गाँधी जी औ मायावती
बुधवार, 5 अक्टूबर 2022
राबन का फूफा बताउथें
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022
11राम 11 सनातन
दुइ लीखन मा चलि रहा,सत्य सनातन धर्म।।
वसुधैव कुटुम्बं भावना , जिनका पावन लक्ष।।
लछमी जी रिसिआय के, पेल भगीं गुजरात।।
बिजय दसमी कै सादर बधाई।
फेसबुक मा द्याखत रही , निल कण्ठ के चित्र। ।
नील कंठ औ शमी मा ,देखा गा देवत्व।
दसराहा का शुभ हबै ,दरसन करब महत्त्व। ।
बंदेमातरं
जिव से है अधिक पियार बंदेमातरं।
रूपसी के देंह से ही स्वारा आना सुंदर य,
आपन माटी देश कै सिंगार बंदेमातरं॥
बहै नदी कलकल पानी करै छलछल,
टेराथें पहार औ कछार बंदेमातरं।
जहां बीर बलिदानी भारत का बचामै पानी,
सूली माही टगिगे पुकार बंदेमातरं॥
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बघेली दारू बन्द बिहार मा लागू कड़क अदेश। भर धांधर जो पिअय खै आबा मध्य प्रदेश। । आबा मध्य प्रदेश हियां ता खुली ही हउली। पानी कै ही ...
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राम जू कै सजी हिबै राजधानी। मारै हिलोर सरजू का पानी। । छूटि गा इतिहासन का करखा। या सुभ सुदिन का तरसिगें पुरखा। । राम जी के...
