पीपरबाह से देस तक, गूंज रहा साहित्य।
कोट बधाई जनम कै, रविशंकर आदित्य।।
सहज सरल निरछल हिदय, जय हो बानी पूत।
देस बिदेस प्रदेस मा, जस खुब मिलै अकूत।।
जब मंचन मा बंटत है, सब्दन केर गड़ास।
खिलखिलात बांटत फिरैं, रबिशंकर जी हास। ।
हंस
पीपरबाह से देस तक, गूंज रहा साहित्य।
कोट बधाई जनम कै, रविशंकर आदित्य।।
सहज सरल निरछल हिदय, जय हो बानी पूत।
देस बिदेस प्रदेस मा, जस खुब मिलै अकूत।।
जब मंचन मा बंटत है, सब्दन केर गड़ास।
खिलखिलात बांटत फिरैं, रबिशंकर जी हास। ।
हंस
कहूं गिर गै चिन्हारी नहात बिरिआ।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
बिसरि गयन अपना वा प्रेम का।
जइसन बिस्वा मित्र - मेनका ।।
हमीं आजव लगी अपना पिरिया।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
पहिले सोची अपना मन मा।
मृग मारय आयन तै बन मा।।
पानी पिअंय गयन तै झिरिआ।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
अपना भयन तै हमसे मोहित।
साक्षी हैं रिषि कण्व पुरोहित।।
जब डारि के जयमाला बन्यन तिरिया।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
सुन के सकुन्तला कै बतिया।
धड़कय लाग दुस्यंत कै छतिया।।
तबै नैनन से ढुरकय लगी गुरिया।
हम आहेंन वहै करी थे किरिआ।।
हेमराज हंस
बन बिरबा का धरम से, पुरखा गे तें जोड़।
ता पखंड के नाव से , हम सब दीन्हयन छोड़। ।
हम सब दीन्हयन छोड़, बरा औ पीपर पूजब।
नास्तिक बन के सिख्यन सरग मा होरा भूजब।।
तड़प रहें हे मनई जीव पसु पंछी किरबा।
चला लउट पुन चली पूजय काही बन बिरबा।।
हेमराज हंस
कुच्छ न पूछा हाल तिवारी।
निगबर लइ डारिन पटबारी।
आपन खसरा बताइन घर मा।
कब्ज़ा कर लइन बीडी शर्मा।।
वासर भइंस लिहिस बइठान
उइ अब मार रहें सिस कारी।
कुच्छ न ---------------------
यम पी मा चला न खटाखट्ट ।
होइगे निगबर सफाचट्ट।।
उनहिन का भा चित्त पट्ट।
इनखर चली न लम्मरदारी।
कुच्छ न ----------------
अइसा बजा जुझारू बाजा।
पुनि के निपट गें दिग्गी राजा।।
बिंध मालबा औ निमाड़ तक
परे उतान हमय दरबारी।
कुच्छ न ----------------
गहकी बागैं बिल्लिआन।
कहाँ ही मुहाब्बत केर दुकान। ।
शटर बंद जनता कइ दीन्हिस
पुन पलुहाई पुन पुचकारी।
कुच्छ न पूछा हाल तिवारी।
हेमराज हंस
अपने रिमही बघेली के अनमोल रतन।
जिनही सुने से मिट जाथी तन मन कै थकन।।
दुनहु जन का बधाई शुभ कामना ही
बिन्ध्य के कंठ हार बंदन औ अभिनंदन।।
जब बानी औ शब्द मिल,. होंय तपिस्या लीन।
तब कवि राम नरेस अस, मनई बनै शालीन।।
शारद के बरदान अस , हैं नरेश श्री मान ।
जिनखे हाथे मा पहुँच, सम्मानित सम्मान।
पयसुन्नी अस सब्द का, जे पूजय दिनरात।
कबिता उनखे निता ही, जीबन कै जरजात।।
गीत ग़ज़ल कै आरती , दोहा कविता छंद।
आंखर आंखर आचमन, अंतस का आनंद।।
शब्द ब्रह्म का रुप है, वर्ण धरै जब भेष।
मइहर मा एक संत हैं, पंडित रामनरेश।।
लगय कटाये घाट अस, सब्दन का लालित्य।
मैहर मा चमकत रहैं, राम नरेश आदित्य।।