रविवार, 19 मई 2024

अहिबाती का बिधबा पेंसन,

 अपरोजिक  के  भरे पेट, औ  उनहिन  निता  सुपास   हबै।  
औ  जेही   अगरासन  निकरै,  वा  निरजला  उपास   हबै।। 
अहिबाती   का  बिधबा पेंसन,   बाँटय कै योजना  अइ अबै  
काजर आंज के कहिस फलनिया देस का बड़ा बिकास हबै।। 
हेमराज हंस

बाप के फोटो मा थूँकी।

 हमरेन पुरखन का गरिआई, अउर  भरी हमिन हूंकी। 

हम नहि येतू प्रगतिशील , कि बाप के फोटो मा थूँकी।। 


नित परभाती  औ  सँझबाती, करत  देस  का  पूजीथे

द्रश्टिदोख  मा उदवबत्ती  अपना  का  लागय  लूकी।।


हम गंगा कबेरी के पुजइया, रोज नहात मा सुमिरी थे 

हमीं बिदेसी कहिके अपना, नाहक मा  जबान  चूकी ।।


जे हमरे इष्ट तिथ तेउहारन मा घिनहे राखय  भाव सदा 

हम ओहू  का आदर देई थे, की चली अपना शंख फूंकी।।


जेखर  उजरइती एकअंगी, कल्थी कल्थी लागथी हंस 

उइ भंडारा का जानैं  जे पाइन बिचार कउरी टूकी।।

हेमराज हंस   

शुक्रवार, 17 मई 2024

वहै है शक के घेरे मा

वहै है शक  के  घेरे  मा, जे  नेम   प्रेम   का  आदी   है। 
जे  घर  फूंक  तमासा देखय, वा  कबीर  का गादी   है।। 
 
उनही फिकर ही युबा बर्ग कै, एहिन से सब सुबिधा ही  
कोउ अमलासन रहय  न पाबै  नशा से गाड़ी  लादी है।।  

निकरी  भूंख जब अलगा  मारे उड़ी उड़न्की खोरन मा
कोउ  उसाँसी  नहीं  देबइया  अपजस केर मुनादी  है।। 
 
अनचिन्हार  तक से जे राखय  बड़ा अपनपौ अंतस से   
कहिस  अमाबस  चंदा  काही  बहुतै  जाती  बादी है।।   

चाहे कहय  अनूतर  कोऊ  चाह कुलांच अगाध  कहै 
हंस  देस के संबिधान मा बोलय केर  आजादी   है। ।
हेमराज हंस  

अपना का आशीष

 जेखे  मूड़े मा रहय,  अपना का आशीष 

वा बन जाय कनेर से , गमकत सुमन शिरीष।  । 

गुरुवार, 16 मई 2024

लगथै उनखर उतरिगा जादू।

 लगथै  उनखर उतरिगा  जादू।
हेरा  आन  गुनिया  अब   दादू।।

कब तक सूख   पेड़ का द्याहा  
पुन  पुन पानी  पुन  पुन खादू।।

बजरंगी का  कब तक छलिहै
कालनेम   बनि   ज्ञानी  साधू ।।

एक न मानिस हिरना कश्यप
खुब  समझा के हार कयाधू।।

हेन  जन  जन के  कंठहार हें 
ओछी  जात  के आल्हा  धांधू।। 
✍️हेमराज हंस ✍️

KAVI SAMMELAN REWA




सिरि शम्भू काकू के पुन्न दिबस मा, हमहूं पहुंच गयन  रीमा। 
जिउ भर कबिता  सुन्यन सुनायन बड़ संतोष मिला जी मा। ।

श्री निष्ठुर जी ,कक्का जी , औ  सरस, भ्रमर, जी शांति दूत।
श्री शिवानंद,  श्री सूर्यमणी , शिवपाल, कमल जी  बानी पूत। ।

कैलाश  तिवारी ,औ  धीरेन्द्र  ,सीमा रानी,   क्रांति बइया । 
अबध बिहारी, राजकरण , अउ राम सुशील ,मणी भइया।। 

अरुणा पाठक ,स्नेहा जी, आरती जी  ,  हसमत रीबानी।
हेमराज   भेंड़ा   बाले,   यश   पी   तीवारी    कै    बानी। ।
 
अध्यक्ष प्रभाकर चौबे जी ,श्री परिहार बिशिष्ट अतिथी । 
जे भूले बिसरें छमा करैं ,  संपन्न  काकू  कै  पुन्न  तिथी।। 

काकू जी का सुमिरन कइ के, हम  पंचे सब धन्न भयन। 
कवि सम्मेलन  संपन्न हंस  ,सब  अपने अपने घरे गयन। 
हेमराज हंस----15/05/2024

 

मंगलवार, 14 मई 2024

पहिले जिव भर खा समोसा।

 पहिले जिव भर खा समोसा। 
फेर  काहु  का  गर  मसोसा।। 

चाहव  का होइ  जई  जुगाड़ 
चार  थे लुच्चा  पाला पोसा।। 

आज  यहै  हे  काल्ह  वहै  हे 
ई दलाल का कउन भरोसा। ।
 
खुल जइहै सब बंद केमरिया 
खूब  जोर  से  मारा  ढोसा। । 

 पंगत  नहीं  बफर आय या 
खुदै  खा  औ  खुदै परोसा। । 

SHAMBHU KAKU

 डॉ शांतिदूत जी की वाल से साभार 

बघेली बोली के शलाका परुष,,काकू,का पूरा नाम शम्भूप्रसाद द्विवेदी था जिन्हें विंध्य ले लोग प्रायः ,,काकू,के नाम से जानते थे,काकू का जन्म 10 नवम्बर 1938 में रीवा में खैरी नामक गाँव मे एक कृषक परिवार में हुआ था,इनके पिता का नाम पंडित रामप्रताप द्विवेदी एवं माता का नाम श्रीमती गुजरतिया देवी था,जो देवगांव के जमीदार शिवनारायण की पुत्री थी,इनके पिता शिवभक्त एवं संस्कृति के विद्वान तथा कवि थे,इनकी माता जी भी धर्मनिष्ठ एवं शिवभक्त थी ,इसीलिए इन्हें बचपन मे शम्भू कहकर बुलाते थे जो बाद में शम्भूप्रसाद के नाम से प्रसिद्ध हुए,माता पिता की शिवभक्ति एवधर्माचरणं का अमिट प्रभाव बालक शम्भू पर पड़ा जो अनवरत जारी रहा। शम्भू प्रसाद तीन भाई तथा दो बहन थे शम्भू भाइयों में सबसे छोटे थे,भाइयों में रामसजीवन द्विवेदी,सियावर शरण द्विवेदी,तथा बहनों में शिववती एवं देववती थीं,शम्भू प्रसाद की गृहस्थी सुचारू रूप से चल रही थी परन्तु कुछ समय बाद कठिनाइयों का सामना करना पड़ा ,इन्ही परेशानियों के चलते पिता राम प्रताप अपना मानसिक संतुलन खो बैठे सन 1961 में विक्षिप्त होकर रीवा की सड़कों पर घूम घूम कर श्लोक,कविताएं तथा कहानियां सुनाया करते थे,और इसी पागलपन की स्थिति में शेषमणि शर्मा,,मणिरायपुरी,,की भांति 1971 में मृत्यु हो गयी तथा 1972 में माता गुजरतिया जी का भी देहांत हो गया,
शम्भू प्रसाद बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे तथा छुट पुट कविताएं लिखा करते जिसकी त्रुटियों को पिता जी सुधार दिया करते थे,इनकी प्रारम्भिक शिक्षा प्राथमिक पाठशाला सिकरम खाना रीवा में पूर्ण हुई बाद में मार्तंड हाई स्कूल से सन 1952 में हिंदी मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण किये 1953 में आपने अंग्रेजी मिडिल परीक्षा भी उत्तीर्ण हुए,आपके ऊपर शेषमणि शर्मा ,,मणि रायपुरी,,जी का अमिट प्रभाव पड़ा,सन 1954 में काकू जी शिक्षक पड़ की नॉकरी प्रारम्भ किये इंटर परीक्षा स्वाध्यायी रूप से पूर्ण करने के बाद 1963 में सागर विश्वविद्यालय से स्नातकोंत्तर उत्तीर्ण करके प्रयाग विश्वविद्यालय से साहित्यरत्न की उपाधि प्राप्त किये,
काकू जी का विवाह सन 1950 में ग्राम पपोढ तहसील व्यवहारी जिला शहडोल के मंगल प्रसाद पयासी की पुत्री फूल कुमारी से जो धर्मप्रिय,सुलक्षीणी सामान्य शिक्षा प्राप्त अत्यंत मृदुभाषी
थी, जिनका असामयिक निधन पुत्र के जन्म के समय सन 1962 में होगया,भाई परिवार के दवाव में कवि को दूसरा विवाह फूल कुमारी की छोटी बहन के साथ 1964 मे करना पड़ा जिसकी पुत्री सुमन की मृत्यु के बाद कारुणिक कवि हृदय विलाप में आलाप करते हुए बोल पड़ा,
,,बेटी सुमन हाय तुम बिन,यह घर है मेरा सूना,
तुम बिन कैसे प्राण रखूं मैं,
यह दुख है मुझको दूना,
काकू की कविताएं अंतर्द्वंद,सामाजिक वदरूपता,ढोग,शोषितो के साथ अन्याय,तथा अनेक विसंगतियों का स्पष्ट दस्तावेज है,यह कहना समीचीन होगा कि वे विंध्य के कवीर थे,हास्य का पुट लिए उनकी रचनाए वाचकषैली का अनूठा उदाहरण है,उनके हरवर्ग के साथ सीधा सम्बन्ध स्थापित करती है,यह जनकवि निर्द्वन्द फक्कड़ बिना लाग लपेट के अपनी रचनायात्रा का मार्ग स्वयं चुनता था,बिना भय प्रीति के लिखने बाला यह विंध्य का लाडला आशुकवि सर्वग्राह्य एव सम्माननीय था,
एक बार कटनी में कविसम्मेलन हुआ,अवसर था कमला जॉन के महापौर बनने का,प्रभारी मंत्री हजारीलाल रघुवंशी,मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह,तथा बिधानसभा अध्यक्ष श्रीयुत श्रीनिवास तिवारी जी मंचासीन थे,कमलाजान ने कहा काकू जी मैं भी कविता सुनाऊँगी ,हमे कुछ लिखकर देदीजिये,बस क्या था काकू की कलम चली और कुछ देर बाद कमला जान की कविता प्रारम्भ हुई,
,,मैं हूँ कटनी का महापौर,,,
बहुत दिनों की रही तमन्ना,
मेरे सिर पर बंधा मौर,
मैं ढोल बजाता गली गली,
मैं शोर मचाते डोर डोर,,,,
मैं पंजा नही हूँ, छक्का हूँ
दिग्गी राजा का कक्का हूँ।
मैं कमल नही हूँ कमला हूँ,
मुख्यमंत्री प्रदेश का अगला हूँ।
रघुवंशी का ननदोई हूँ।
मैं दादा का बहनोई हूँ,,,
आदि,,,आदि,,
अब आप सोच सकते है कि वहां की स्थिति रही होगी,मैं उस कश्मकश का गवाह हूँ,
हाजिर जबाब काकू की स्मृतियों को कितना भी कम कहूँ तो बहुत ही होगा,
काकू की पहली पत्नी की मृत्यु के बाद उनकी शादी ग्राम तिवनी में लगी बात चल ही रही थी कि स्कूल के बच्चो ने बताया कि पंडित जी उआ विटीबा बहिरि है फिर क्या था काकू ने एक पत्र उस लड़की के घर लड़को के हाँथ भेज दिया।
,,सोने के नइयां है रूप सुहावन,
रूप बखानत जीभि थकइ ना।
मुहु लागै जोन्हईयां के नैया भला,
बिदुराइ के बोलति है जब बैना।
आंखी बड़ी बड़ी ओखी अहै,
बड़ी चोखी है,कहै लोग सुनैना।
शम्भू बिआह करै कस ओसे,
नाम सुनैना पै कान सुनै ना।
काकू जी भोपाल,जबलपुर,टीकमगढ़,कटनी,ग्वालियर,मिर्जापुर एव अन्य क्षेत्रों में घूमते तथा काव्यपाठ करते रहे परन्तु बघेली की सीमा उत्तर में चाक सोहागी डभौरा,पूर्व में देवसर,दक्षिण में लखोरा अमरकंटक और पश्चिम में मैहर सतना कोठी मुख्यतः रहा जहां वे घूमते रहे,
शम्भू काकू की गिनती,कवि जगनिक,रामसुंदर शुक्ल,मुन्नीलाल प्यारे,बैजनाथ बैजू,पण्डित हरिदास,सैफुद्दीन सिद्दीकी,,सैफू,,रामदास पयासी, कृष्ण नारायण सिंह,देव सेवकराम,डॉ भगवती प्रसाद शुक्ल,प्रोफेसर आदित्य प्रताप सिंह,कालिका प्रसाद त्रिपाठी,विजय सिंह,गोमती प्रसाद विकल,बाबूलाल दाहिया,सुदामा प्रसाद मिश्र,डॉ श्रीनिवास शुक्ल,डॉ शिवसंकर ,,सरस्,,आदि के साथ सम्मान पूर्वक लिया जाता है,आपकी मृत्यु 15 मई 2008 में हुई,
काकू जी का जीवन ब्रित्तान्त बहुत है जिसे पूर्ण रूप से कह पाना कठिन है जितना भी कहेंगे कुछ छूट ही जाएगा तथापि जो बन पड़ा उतना ही पर्याप्त है,
काकू जी को शत शत नमन
डॉ शांतिदूत,

सोमवार, 13 मई 2024

खतरे मा है।

काहू का गोत्र काहू   का  बान  खतरे मा है। 

ता काहू का भभिस्स बर्तमान  खतरे मा है।। 


उनखर  धइना  देखि   के  फलाने कहा थें

लागा थै  मोहब्बत कै दुकान  खतरे  मा  है।।


कुण्डली    मा   राहु   लगी  है  साढ़े  साती 

पुरोहित  कहा  थें  जजमान  खतरे मा है। 


सोसल   मीडिया   मा  उड़  रहीं   हबूहय 

सूरज  है बंदी रात के  बिहान  खतरे  मा है।


 मुसबा औ जूजू साथै सोफा मा बइठे देखिस 

ता निउ कहय  लगी कि  मकान  खतरे  मा  है।।


डी जे बजैं  लगे  औ डिस्को  चलय  लगा ता 

हंस  कहि  रहे  हैं की  कान  खतरे  मा  है।।

  

कबिबर रामाधार जी, भें अनंत मा लीन !

 कबिबर  रामाधार  जी, भें  अनंत  मा लीन !
मैहर सृजन समाज भा , मुड़धरिया से हीन !!
मइया सारद रो परीं , सुन के दुःख संदेस!
तन से बिछुरें उइ भले, रही कीरती शेष।! 
१३/०५/२०२४ 
कविवर  आचार्य रामाधार शर्मा अनंत जी मैहर  को विनम्र श्रद्धांजलि! शत शत नमन !