शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2022

नहीं बनाबै बार

 सदा  गरीबों  ने  लड़ा लोक  धर्म  का  युद्ध।
पर कुलीन की कोख से आये सब दिन बुद्ध।। 

 
मॅहगाई मा एक सम ही सब कै सरकार।
कउन गड़ारी  गड़ारै नहीं बनाबै बार। । 

जे आफत मा कइ रहें आपन उल्लू सीध।
उइ दानव से नीक हें हमरे देस के गीध।।  

शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार।
ईश्वर को लेना पड़ा परसुराम अवतार। । 


मिला सदा इस देश को बिप्र का आशीर्वाद।
चाहे परसुराम हों य मंगल अटल अजाद।।  

देख रहा है देस या उनहूँ कै करतूत।
माओ बदिन के निता जे हैं साहुल सूत। । 


बहुत सहि चुका देस या नक्सल अत्याचार।
अब ता ओखे रीढ़ मा हरबी कारी प्रहार। । 


सिंघासन बिदुराथै दइ म्याछन मा ताव।
जनता सिसकै देस मा महगाई के घाव। । 


बहिनी से नरकजी तक जे न करैं लिहाज।
नारी के सम्मान कै ओऊ देंय अबाज। । 

घ्वान्घा मा तइती बधी मुदरी नव ग्रह केर।
बगैं पीर मजार तउ लिहिस सनीचर गेर।। 


बेमतलब के बहस मा दहकैं ठोंकैं ताल।
महगाई मा मीडिआ पूँछै नहीं सबाल। ।  


महगाई जब जब किहिस जनता का हलकान।
हष्ट पुष्ट सरकार तक लइ लीन्हिन बइठान।  । 

दारू  बंद  बिहार  मा, लागू कड़क अदेस।
भर धांधर जो पिअय खय ,आबा मध्यप्रदेश।।
आबा मध्य प्रदेश ,हिया ता खुली ही हउली।   
पानी कै ही त्रास खुली मदिरा कै बउली। ।
पी के चह जेतू मता ,कउनव नहीं कलेस।
कबहूँ पाबन्दी नहीं अपने मध्य प्रदेश। ।

सोमवार, 10 अक्तूबर 2022

आबा बिकास का गड़बा देखाई थे। BAGHELI KAVITA

आबा  बिकास  का हम  गड़बा  देखाई  थे। 
वमै  डबरा योजना  का  पड़बा   दिखाई थे।। 
 
जउन   किसानन   कै  आमदानी  भै दूगुन 
ओखे  मड़इया  के हम खड़बा  देखाई थे। । 
 
जउन  खाद  बीज  खितिर   गहन   धरा है 
वा किसानिन कै झुमकी औ छड़बा देखाई थे। । 
 
मध्ध्यान  भोजन  का  सेबाद  बड़ा   गुरतुर  है 
अपना  का  इस्कूल  के हम भड़बा  देखाई थे। । 
 
भमरी जब परिगै  ता वा बजगीर साथ भागिगै  
 वा उढ़री  राजनीत का हम मड़बा देखाई  थे।  ।
 
हंस  के   बगिया   मा  लिपटिस  कै  राज   ही 
मुरझान परा आमा का हम कड़बा देखाई थे।  ।   
      @हेमराज हंस भेड़ा

रविवार, 9 अक्तूबर 2022

चाहे करैं जहां मुँह काला। ।

उनहूँ  का  पहिराबा   माला। 
काहे लागिगा जीभ मा ताला। । 
उइ ता  इंद्रा  के बंसज आही 
चाहे  करैं जहां  मुँह  काला। ।
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उइ कइथा फ्वारैं का अमकटना ह्यारा  थें। 
आपन चरित्त चमकामै का घटना ह्यारा थें।। 
टिकस देथें हेर हेर के खुद अपराधिन का 
आपन दाग मूंदय के निता उपटना ह्यारा थें।
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गुंडा का न मारा काल्ह नेता बन जई। 
पाथर जब  खिअइ ता रेता  बन  जई। । 
कानून  बनाई वा सदन मा बइठ के    
हमरे समाज का बिधि बेत्ता बन जई। । 
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अपना का सेतै लगै अब माख

अपना का सेतै लगै अब माख सिरी मान 
,जन गन मन कै केहनी रही कबिता। 
आतातायी बहेलिया के तीर के बिपछ माही ,
पंछिन के आँख केर पानी रही कबिता।।  
लोकतंत्र पिअय लाग अंगरेज घाइ खून
 दीन दुखियन का पीर सानी रही कबिता।  
ठठुरत हरिआ खदान कै मेहरिआ कै 
औ बिना बड़ेरी बाली छान्ही रही कबिता। । 

योजना से हित  ग्राही जोजन खड़ा है दूर 
ब्यबस्था कै कइसा के सराह बनी कबिता। 
जउन भाईन केर हीसा भइबय हड़पि धरे 
जरि रही छाती वखार आह बनी कबिता।। 
डूबि रहे जात बाद बाली जे नहर माही ,
उनही बचामै  का मल्लाह बनी कबिता।  
प्रहलाद प्रेम पथ माही जे लगामै बारी ,
अइसा हिरनकश्यप का बराह बनी कबिता। । 

रात रात भर किहन तरोगा

 रात रात भर किहन तरोगा हम जेखे अगमानी  मां।
बड़े सकारे  मरे  मिले उंइ  एक  चुल्‍लू  भर पानी मां॥

नंच   नंच  आँखिन  से  झांकै   बड्‌डे   जबर  सपन,
बोली   बड़ी   पिआर   लगाथी   तोतली    बानी मां॥
 
संतन  के  जप  तप कीन्हे  इन्द्रासन हालय लागा थै
‘सरमन' सब दिन मारे गे हें सत्‍ता के मनमानी मां॥

शक  के  नजर  से  देखे  जाथें  जब साधू संन्‍नासी तक,
कइसा हमहीं  रिस न चढी हो  लुच्चन  के मेहमानी मां॥

भला जात मा बंट के कउनव  महाशक्‍ति का देस बनी,
जेखर  जनता  बाम्हन  ठाकुर  दलित  औ  बानी   मां॥
 
कोउ  नही  सुनइया   दादू  चह  जेतू    नरिआत    रहा,
सगला देस सुनिस ‘अन्‍ना' का जब बोलिन रजधानी मां॥

खूब  पैलगी  होथी   जेखर औ   समाज  मां  मान  है हंस
उनही  सांझ  के हम देखे  हन गिरत  भंजत रसदानी मां॥
              * @ हेमराज हंस -9575287490 *

शनिवार, 8 अक्तूबर 2022

लुच्चा अस लागा थें

 उइ बड़े सभ्भदार हें पै गुच्चा अस लगाथें। 
राम दै ! केमाच  के  गुच्छा  अस लगाथें।। 
तुलसी उखाड़ के जब बेसरम लगाइअन ता 
फलाने कहा थें हमीं लुच्चा अस लागा थें।   


सगली दुनिया हिबै अचंभित

 

सगली दुनिया हिबै अचंभित

सगली दुनिया हिबै अचंभित ,दइके नाक रुमाल। 
सत्य अहिंसा के धरती मा , करुणा होय हलाल। । 

छाती पीट -पीट के रोबै, साबरमती कै धारा। 
अब ता बरुनव के घर माही। धधक रहें अंगारा। । 
कोउ बता द्या राजघाट मा ,गांधी जी से हाल। 

जहाँ कै माटी सत्य अहिंसा केर विश्वविद्यालय। 
वहै धरा मा  बहै खून ,औ मार  काट का परलय। । 
गौतम गाँधी के भुइ माही बसे हमै  चंडाल। 

भारत माता के बिटियन के मरजादा का बीमा। 
अब ता उनखे बेसर्मी कै नहि आय कउनौ सीमा। । 
बड़मन्सी कै बोली ब्वालै बड़ बंचक बचाल। 

काल्ह द्रोण मागिन तै अउठा ,आज लइ लइन जान। 
बिद्या कै पबरित परिपाटी तक होइगै बलिदान। । 
रह्यान कबौ हम बिश्व गुरु पै आज गुरू घंटाल। 

शहरन माही आजादी के होथें मङ्गलचार। 
आजव भारत के गॉवन का दमै पबाई दार। । 
सामंती के दुनाली से कापि रही चउपाल।
 

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2022

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस पूनू

उनखेे कइ शरद्‌‌ अस   पूनू
हमरे कइ्र्र अमउसा है।
रदगदग द्‌यांह फलाने कै,
हमरे तन मां खउसा है॥
उंइ गमला कै हरिअरी देख,
खेती कै गणित लगउथे,
काकू कहाथे चुप रहु दादू भउसा है॥
 

जब से य मन मोहित होइगा

 

जब से य मन मोहित होइगा,

तोहरे निरछल रूप मां।
एकव अंतर नही जनातै,
चलनी मां औ सूप मां॥
रात रात भर लिहन कराउंटा,
नीद न आई आंॅखिन का।
औ मन बाउर बइकल बागै,
ओ!गोरी तोरे उूब मां॥
सनकिन सनकी बातैं होइ गईं,
लखे न पाइस पलकौ तक।
मन निकार के उंइ धइ दीन्‍हन,
हमरे दोनिया दूब मां॥
ओंठ पिआसे से न कउनौं,
एक आंखर पनघट बोलिस।
पता नही धौं केतू वाठर,
निकराथें नलकूप मां॥
सातक्षात्‌ तुम पे्रम कै मुरत,
होइ के निठमोहिल न बना।
द्‌याखा केतू करूना होथी,
ईंटा के ‘स्‍तूप' मां॥
जब से फुरा जमोखी होइगै,
तन औ मन के ओरहन कै,
तब से फलाने महकै ंलागें,
जइसा मंदिर धूप मां॥

शरद कै रात

चितवाथी चरिउ कइ चरकी चमक चंद,
चपल चोचाल अस चोंख चोंख चांॅदनी।


काहू केर जिव करै पपीहा अस पिउ पिउ,
नेह स्‍वाति बूंद का लगाबै दोख चांॅदनी॥


सुकवा जो अस्‍त भा ता उआ है अगस्‍त जी मां,
प्रेम पंथ पानी काही सोख सोख चांॅदनी॥

चकई  के  ओरहन  राहू  केर  गिरहन,
रहि  रहि जाय  मन का मसोस चांॅदनी॥

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पोखरी का पानी जब से थिराय दरपन भा,
तब से जोंधइया रूप राग का सराहा थी।


ठुमुक  ठुमुक  चलै लहर  जो  रसे रसे,
देख देख के तलइया भाग का सराहा थी॥


चांॅदनी से रीझ रीझ पत्‍ता पानी मां पसीझ,
पुरइन  पावन  अनुराग  का  सराहा थी।


जे निहारै एक टक सांझ से सकार तक,

जोंधइया चकोर के वा त्‍याग का सराहाथी॥

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झेंगुर कै तान सुन नाचै लाग जुगनूं ता,
अस लाग जना दीप राग तान सेन का।


भितिया मां चढि के शिकार करै घिनघोरी,
जइसन ‘लदेन'  कांही मारा थै अमेरका॥


ओस  कै बूंद  जस  गिरत देखाय नही,
सनकी से  बात करैं जइसा पे्रमी प्रेमका॥


तन केर मन से जो ताल मेल टूटिगा है,
तब से चरित्र होइगा विश्‍वामित्र मेनका॥

शरद कै रात