गुरुवार, 28 मई 2015

BAGHELI SAHITYA: दोहा लेखनी जब करने लगी कागद लहू लुहान। ब्रह्म शब्द...

BAGHELI SAHITYA: दोहा लेखनी जब करने लगी कागद लहू लुहान। ब्रह्म शब्द...: दोहा  लेखनी जब करने लगी कागद लहू लुहान।  ब्रह्म शब्द तक रो पड़ा धरा रह गया ज्ञान। ।           हेमराज हंस --9575287490

hemraj hans -जनगण से गुर्राये तो फिर रगड़ो गे नाक। ।

कुण्डलियाँ 

जनता से बड़ कर नही लोकतंत्र में धाक। 
जनगण से गुर्राये तो फिर रगड़ो गे नाक। । 
फिर  रगड़ोगे   नाक   घूमते   रैली  रैली। 
एक  बार  छवि यदि  हो  जाये  मटमैली।।
''हंस'' खेलने लगती है फिर वह गुड़गंता। 
लोकतंत्र  में  सर्वोपरि  होती  है  जनता।।
हेमराज हंस --9575287490   

काहू के है गहगड्डव ता काहू केर बरसी ही।

मुक्तक 

काहू  के है गहगड्डव ता काहू केर  बरसी ही। 
कोउ धांधर खलाये है काहू कै टाठी परसी ही। । 
कक्का हक्का बक्का हें उनखर देख करदसना  
जनता के निता गुंडई औ मंहगाई कै बरछी ही। । 
हेमराज हंस  

BAGHELI SAHITYA: आज अब जनता के मयारू बने बगत्या है

BAGHELI SAHITYA: आज अब जनता के मयारू बने बगत्या है: मुक्तक  देस देखे बइठ है रामलीला चउगान का  ।  अपना के घमण्ड औ सत्ता अभिमान का। ।  आज अब जनता के मयारू बने बगत्या है  २६ रुपिया मा त...

आज अब जनता के मयारू बने बगत्या है

मुक्तक 

देस देखे बइठ है रामलीला चउगान का  । 
अपना के घमण्ड औ सत्ता अभिमान का। । 
आज अब जनता के मयारू बने बगत्या है 
२६ रुपिया मा तउल्या  तै गरीब खानदान का। । 
हेमराज हंस  

मंगलवार, 26 मई 2015

BY HEMRAJ HANS अपना का आँसै नही वा भर मुंह कहै हजूर। ।

दोहा 

बपुरा सुविधा संच का तरसै हिंया मजूर। 
अपना का आँसै नही वा भर मुंह कहै हजूर। । 
हेमराज हंस --9575287490  

उनखे कई 'जयन्त ' औ हमरे कई ''दुष्यंत "। ।

दोहा 

सत्ता अउर साहित्त कै बस येतू बिरदन्त। 
उनखे कई 'जयन्त ' औ हमरे ठई ''दुष्यंत "। । 
हेमराज हंस ---9575287490 

भूखों की ये बस्तियां औ फूलों के जश्न।

दोहा
भूखों की ये बस्तियां औ फूलों के जश्न। 
ओ ! माली तेरी नियति में क्यों न उठेंगे प्रश्न। । 
हेमराज हंस --9575287490 

सोमवार, 25 मई 2015

यहै सब खैरियत ही सरकारी पेज़ मा

मुक्तक

दवाई से ज्यादा है फायदा परहेज मा। 
नौ कै  ही  लकड़ी नब्बे बंधेज मा। । 
वहै उई आंसू का व्यापर करइ बाले हें 
यहै सब खैरियत ही सरकारी पेज़ मा 
हेमराज हंस 9575287490 

hemraj hans by यहाँ पसीना देश को देता पूरी क़िस्त।

दोहा 

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यहाँ पसीना देश को देता पूरी क़िस्त। 
पता करो क्यों आज भी वो है पड़ा सिकिस्त। । 
हेमराज हंस