कुण्डलियाँ
जनता से बड़ कर नही लोकतंत्र में धाक।
जनगण से गुर्राये तो फिर रगड़ो गे नाक। ।
फिर रगड़ोगे नाक घूमते रैली रैली।
एक बार छवि यदि हो जाये मटमैली।।
''हंस'' खेलने लगती है फिर वह गुड़गंता।
लोकतंत्र में सर्वोपरि होती है जनता।।
हेमराज हंस --9575287490
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