'नल तरंग 'बजाउथें बजबइया झांझ के।
देस भक्ति चढ़ा थी फलाने का साँझ के। ।
उनही ईमानदार कै उपाधि दीन गै
जे आँधर बरदा बेंच दइन काजर आंज के। ।
पूंछी अपना बपुरी से कि कइसा जी रही
जेही कोऊ गारी दइस होय बाँझ के। ।
अइसा ही अउलाद की कहतै नहीं बनै
महतारी बाप घर मा लुकें मारे लाज के।।
हंस य कवित्त भर से काम न चली
चरित्त का चमकाबा पहिले माँज माँज के। ।
हेमराज हंस ---
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