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रविवार, 16 अक्तूबर 2022
मालिक नामक हराम।
सजी सनातन नार
आबा हे गनराज।
सिउ जी के परिवार, अस सुखी रहय य देस।।
कबहूँ कुरुआ मा नपयन
महतारी के हाथ कै जइसा परसी थाल।।
शनिवार, 15 अक्तूबर 2022
रीत काल का छंद।
बिन इस्नु बिन पाउडर, फागुन गमकै गंध।
द्यांह धरे बगै जना , रीत काल का छंद।।
अस कागद के फूल मा, महकैं लाग बसंत।
जस पियरी पहिरे छलय , पंचबटी का संत।।
फगुनहटी बइहर चली ,गंध थथ्वालत फूल।
भमरा पुन पुन खुइ करै, तितली पीठे गूल। ।
मन मेहदी अस जब रचा, आँखिन काजर कोर।
सामर सामर हाथ मा, जइसन गदिया गोर। ।
असमव उनखे बाग, मा नहीं कोयलिया कूंक।
मन मसोस रहि जाय औ, उचय हदय मा हूक। ।
सड़क छाप हम आदमी, उइ दरबारी लोग।
हम ता बिदुर के साग अस अपना छप्पन भोग। ।
भेद भाव बाली रही , ज्याखर क्रिया कलाप।
हर चुनाव के बाद वा, बइठे करी बिलाप। ।
नेतन काही फ्री मिलै , ता लागै खूब उराव।
जनता के दारी उन्ही , लागै मिरची घाव। ।
पुरखन के सम्मान का,
जेखे आपन बिछुरिगें, सुधि म भीजै आँख।
उनही है श्रद्धांजली, के दिन पीतर पाख।।
पुरखन के सम्मान का, पितर पाख है सार।
जे हमका जीबन दयिन,उनखे प्रति आभार। ।
जिआ सौ बरिस पार तक,
ताकी हम पंचे करी, अपने आप मा गर्व। ।
हे ! पुरुषोत्तम राम जू ,हती दशानन मार।
ताकी कुछ हलुकाय अब, भू मइया का भार। ।
गाँधी वाद है बिस्व मा एक बिचार अजोर।
जिनखे बल आई हिआ, आजादी कै भोर। ।
जिआ सौ बरिस पार तक, जननायक परधान।
भारत के खातिर हयन, अपना शुभ बरदान। ।
दस दुष्कर्मिन का टिकस
दियना कहिस अगस्त से, दादा राम जोहार।
तुम पी लिहा समुद्र का, हम पी ल्याब अधिआर। ।
दस दुष्कर्मिन का टिकस, हत्तियार का बीस।
लोक तंत्र के सदन के, उचै हिदय मा टीस। ।
केतू घिनही लग रही, राजनीत कै चाल।
टुकुर टुकुर जनता लखै, दइके नाक रुमाल। ।
दहसत माही कलम ही, कागद करै रिपोट।
राजनीत कब तक करी, गुंडन केर सपोट। ।
नेता जी के नाव से , उभरै चित्र सुभाष।
अब के नेता लागि रहें, जइसा नहा मा फास।।
गांव गांव मदिरा बिकै , दबा शहर के पार।
कउने सब्दन मा करी अपना का आभार। ।
सुनिस घोसना कापि गा, थर थर बपुरा पेण्ट।
खीसा का बीमा करी , जेब कतरा एजेण्ट।।
सरबर मा चाकी परै, जब देखा तब जाम।
ओखे बिन सब अरझ गें , बड़े जरुरी काम। ।
भूखों की ए बस्तियाँ , औ फूलों के जश्न।
ओ माली तेरी नियत पर ,क्यों न उठेंगे प्रश्न। ।
अपने छाती हाथ धर , खुदै करा महसूस।
अइसन कउन किसान है, जे नहि दीन्हिस घूस। ।
करोना
मिली करोना कै दबा, बरियत्तन हे राम।
अब ता चीन के पाप का, होई काम तमाम।।
परी करोना रोग कै, दुनिया भर मा हाक।
मुँह मा मुसका बांध के, दुइ गज रखी फराक।।
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बघेली कविता हम सरबरिया बांम्हन आह्यन मिलब सांझ के हउली मां। मरजादा औ धरम क ब्वारब, नदिया नरबा बउली मां॥ होन मेल जोल भाईचारा कै, ...
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जबसे मूड़े मा कउआ बइठ है। असगुन का लये बउआ बइठ है।। पी यम अबास कै किस्त मिली ही वा खीसा मा डारे पउआ बइठ है।। होइगै येतू मंहग ...