शुक्रवार, 23 सितंबर 2022

अपना के तेल मा

 अपना के तेल मा खरी अस जनाथी।
या सम्बेदना मसखरी अस जनाथी।।
जे डबल रोटी   का  कलेबा करा थें
उनही अगाकर जरी अस जना थी। ।

टोरिया कहां ही

 

बारजा बचा हय ओरिया कहां ही,
पिल्वादा के दूध कै खोरिया कहां ही।
 
रासन कारड हलाबत तिजिया चली गै,
कोटा बाली चिनी कै बोरिया कहां ही।।
 
नोकरी लगबामै का कहि के लइ गया तै,
वा गरीब कै बड़मंसी टोरिया कहां ही ।
 
आजादी के अस्वमेघ कै भभूत परी ही ,
लिंकन के लोकतंत्र कै अंजोरिया कहां ही।।
 
वा प्रदूसन कै पनही पहिरे मुड़हर तक चलागा,
गांव के अदब कै ओसरिया कहां ही ।
 
घर के सुख संच कै जे जपत रहें माला ,
वा पिता जी कै लाल लाल झोरिया कहां ही।।
हेमराज हंस मैहर

विवेका नंद

 

पूज विवेकानंद मा है भारत का गर्व।
उनखे बसकट मा रमा जुवा दिवस का पर्व।।
रचिन विवेकानंद जी एक नबा इतिहास।
भारत केर महानता का बगरा परकास।।
जुरे शिकागो मा रहें दुनिया के बिद्वान।
एक सुर मा ब्वालैं लगें जय जय हिन्दुस्तान।।
चाह शंकराचार हों चाह विवेका नंद।
भारत के जसगान का रचिन ऋचा औ छंद।।

बड़े अदब से बोलिये,

 नेता   जी  के  नाव  से  उभरै  चित्र  सुभाष।
अब के नेता लगि रहें जइसा नहा मा  फांस।। 

बड़े अदब से बोलिये, उनखर जय जय कार।
गांव- गांव  मा  चल  रही , गुंडन कै सरकार।।

 
चह जेही थुर देंय उइ ,याकी कहैं कुलांच।
नेता जी के नाव से, अयी न कऊनव आंच। ।  

हंस कहै बिद्वान

 चुटकी भर के ज्ञान का झउआ भर परमान।
तउअव अपने आप का हंस कहै बिद्वान।। 

बिटिआ

 बिटिआ बेदन कै  ऋचा साच्छात इस्लोक।
दुइ कुल का पामन करइ अउ साथै मा  कोंख।।

कोउ बीबी से दुःखी है

 कोउ अमीरी से ता कोउ गरीबी से दुखी है।
कोउ दुसमन से ता कोउ करीबी से दुःखी है। ।
काहू   का   सुख   संच   हेरे  नहीं      मिलय  
कोउ मिया से ता कोउ बीबी से दुःखी  है। ।

या कइसा संजोग।

फुन्नी ता चिकनान ही लगा है जर मा रोग।
भारत अउर बसंत का या कइसा संजोग। ।

बाउर पइदा होंय।

उंई चाहाथें देस मा बाउर पइदा होंय। औ उनखे घर मा जनाउर पइदा होंय।। एक बूंद पानी न बरखै खेत मा औ सीधे धान नही चाउर पइदा होंय।।

युग नायक

युग नायक होते नहीं, किसी जाति में कैद। वे बीमार समाज के , हैं शुभ चिंतक बैद। । शासक जब करने लगे शोषण अत्याचार। ईश्वर को लेना पड़ा परशुराम अवतार।।