गोस्वामीजी ने कभी नर काव्य न किया ग्रर यदि कभी दे पंक्तियाँ लिख दी ते वे केवल मित्रता वश टाडर नामक एक भाग्यशाली व्यक्ति के विषय में लिखों | फिर भी स्पष्ट है कि टोडर भी रामभक्त था ओर उसके विषयक केवल चार देाहों में भी महात्माजी ने दे बार राम नाम लाकर रखही ते दियाः
-चारि गाँव का ठाकुरो , मन का महा महीप।
तुलसा या संसार में , अथये टोडर दीप॥ १॥
तुलसा राम सनेह का , सिर पर भारी भारु।
टोडर कांधा ना दिये , सब कहि रहे उतारु ॥ २॥
तुलसी उर थालढा बिमल , टोडर गुन गन बाग।
ये देउ नेनन सॉचिहों , समुक्ति समुझे अनुराग ॥ ३॥
राम धाम टोडर गये , तुलली भय्रे असोच।
जियबा मीत पुनीत बिनु , यही जानि संकाच ॥ ४॥
गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी १२३
धय टोडर ! तुम्हारे लिए हिन्दी-सूरंय स्वयम् महात्मा तुलसोदासजी ने अपना हृढ़ सिद्धान्त छोड़ नर-काव्य किया || धन्य
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें