उनमें एच ० ए्च० विव्सन, गासों द तासी, एफ० एस» ग्राउस, शिवसिंह सेगर, ग्रिवर्सन, २० ग्रीब्स, इणिश्टयन प्रेससे प्रकाशित मानस की भूमिका दे लेखकगण, लाला सीताराम, इन्द्रदेबनारायण, शिवनन्दन सहाय, तुल्सीग्रग्थावली' तृतीय भागके सम्पादकगण, रामकिशोर झुकछ, रामदास गाट, इ्वाम सुन्दर दास और
पीताम्बरदत्त बड़ध्वाल, सोरों जिला एटाके गोविन्दबब्लम भद् शास्त्री, गारीशंकर द्विवेदी, रामनरेंश निषानी, रामदत्त भारद्वाज, भद्रदत्त द्ा्मा, दीनदयाल भुन तथा माताप्रसाद गुप्त प्रभति सज्जनो के नाम झग्लेसयनीय
विब्सनने अपने 'एस्क्रेच आब् दी रेलिजस सेक्ट्सू आब हिल्दृूज' नाभक निबन्धम हुरूसीका जीवन-चरित दिया है। गारसों द तासीने सन् १८३६ ई० में प्रथम बार प्रकाशित अपने महत्वप्ृर्ण इतिहास “इस्त्वार दल लितरे तोर इन्दुईं ए इन्दुस्तानी में भोस्वामीजीकी जीवनी-विषयक कुछ बात लिखी है ओर ग्राउस साहवने इस विषयमे जो संकेत किया ६ वह उनके रामावणके अंग्रेजी अनुबाद गमाबन | तुलसीदास नामक अन्यकी ममिकामें है। इन तीनोंके दारा गोस्वाभीजीका जो जीवन-बृत्त अंकित किया गया है उसमें परस्पर कोई अन्दर नहीं दिखाई पड़ता । कोरी जनश्रुतिके आधारपर विव्सनग याबाजीकी जाति, जन्मभूमि, काशीमे कार्य-क्षेत्र, गुरु-परग्परा, देहाबलान आदिका जो कुछ उल्टेख किया था उसीयों तासी और ग्राउसने किश्वित् फेर-फारके साथ अहण किया है। हाँ, झाउसनें 'भक्तमाल के प्रसिद्ध छप्पय 'कलिकुटिल जीव निस्तार हित' * 'तुल्सी भयी । को विशेष महत्व दिया है |
ग्रियर्सन साइबने जी कुछ लिखा है वह सन् १८८६ ३० में प्रकाशित उनके “मार्ड्न वार्नाक्युलर लिशआपर आव हिन्दस्तान में है | इसके अनन्तर उन्होंने सन् १८९३ इ० की “इण्डियन ऐण्टीक्वेरी'में अपने नोंग्स आन तुल्मीदास'के तीसरे खण्डमें जीवन-इत्तसे सम्बद्ध कथानकों ओर जनशभ्रुतियोंका संग्रह उपस्थित किया | सन् १८६८ ईं० में डेट आवब कम्पोजीशन आव ठुलसीदासस् कवित्त रामायन के दसरे नोटमें तुल्सीकी मृत्यु प्लेगसे हुई, यह निर्णय किया | ग्रियर्सनने जो विचार किया है वह अवश्य ही बहुत-कुछ युक्त एवं गम्भीर है। इन्होंने जन-श्रुतियों को छान-बीनकर ग्रहण किया है । इसका परिणाम बह हुआ कि इनके परवर्ती आलोचकॉमेंसे अधिकांशने इन्हींकी खोजोंसे छाम उठाया है |
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सम् १८९९ इईं० की “नागरी प्रचारिणी पत्रिका मे प्रकाशित श्रीब्जका एक छोथ लेख '“गुसाई तुलसीदासका जीवन चरित' यद्यपि जीवनीविधयक कोई नवीन बात नहीं वताता, पर अपनी सुन्दर शेलीके कारण मोहक है | ग्रीव्जने अंग्रेजीमें हिन्दी-साहित्यका जो इतिहास लिखा है उसमें भी अत्यन्त संक्षेप, किन्तु बढ़े ही आकर्षक ढंगसे तुल्सीके जीवन-बृत्तकी चर्चा की है
ग्रीव्जके पश्चात् सन् १९०२ ई० में “इण्डियन प्रेस से प्रकाशित मानस'की भूमिकामें वर्णित जीवनचित विशेषतः ग्रियर्सनके अनुसन्धानोंपर अवलरूम्बित है ।
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कारपेण्टर साहबने गोस्वामीजीके धारमिक मत दी भियोल्जी आवब तुलसीदास मे विचार किया है। इस ग्रन्थका प्रकाशन सन् १९१८ ६० में हुआ | इसमें छेखकने मानस के आध्यात्मिक स्थर्तन को छोॉटकर कवि सिद्धांतांका निप्कर्प निकालना चाहा है। प्रस्तकर्म सबसे अधिक खट्कनेवाली बात यह हे कि लेखकके दृष्टिकोणपर ईसाई “'मिशनरी'का चश्मा चढ़ा है । दसरे यदि तुल्सीदासकी 'थिवोलॉजी' लिखर्नी थी तो उनके सभी ग्न्थोंका आधार लेना चाहिये था, न कि केबछ 'मानस' के कुछ स्थलोंका । आलोचकर्त तट्स्थ इष्टिकोणका अमाब भी खटकता है। फिर भी एक विदेशीका प्रयास होनेक्े नाते गनन््ध स्तुत्य ही है
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