प्रसिद्ध इतिहासकार विसेंट ए० स्मिथ (Vincent A. Smith) ने अपने सुविख्यात ग्रंथ अकबर महान् (Akbar, The Great Moghul) नामक ग्रंथ में लिखा है' कि तुलसीदास अपने युग में भारतवर्ष के सबसे महान् व्यक्ति थे; अकबर से भी बढ़कर, इस बात में कि करोड़ों नर-नारियों के हृदय मौर मन पर प्राप्त की हुई कवि की विजय, सम्राट की एक या समस्त विजयों की अपेक्षा असंख्यगुनी अधिक चिरस्थायी और महत्त्वपूर्ण थी ।
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१. (अ) आनन्दकानने कश्चित् तुलसी जंगमस्तरः ।
कविता मंजरी यस्य रामभ्रमरभूषिता ॥ -मधुसूदन सरस्वती
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१. डॉ० जार्ज ग्रियर्सन ने लिखा है कि आधुनिक काल में तुलसीदास के समान दूसरा ग्रन्थकार नहीं हुआ है।
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तुलसीदास जी पर लिखे गये हिन्दी ग्रन्थों की भी एक लम्बी सूची है जिनमें से प्रमुख १. रामचन्द्र शुक्ल कृत, तुलसीदास, २. श्यामसुन्दर दास और पीता- म्बर दत्त बड़थ्वाल कृत, गोस्वामी तुलसीदास, ३. बलदेव प्रसाद मिश्र कृत, तुलसी दर्शन, ४. रामनरेश त्रिपाठी कृत, तुलसीदास और उनकी कविता, ५. माताप्रसाद गुप्त कृत, तुलसीदास, ६. चन्द्रबली पांडेय कृत, तुलसीदास, ७. व्यौहार राजेन्द्रसिंह कृत, गोस्वामी तुलसीदास की समन्वय-साधना,
८.रामबहोरी शुक्ल कृत, तुलसीदास १. कामिल बुल्के कृत, रामकथा: उद्भव और विकास, १०. परशुराम चतुर्वेदी कृत मानस की रामकथा तथा ११. राजपति दीक्षित कृत, तुलसीदास और उनका युग हैं। इन समस्त ग्रन्थों की अपनी- अपनी विशेषताएँ हैं। जीवन वृत्त के सम्बन्ध में विशेष सामग्री देने वाली कृति माताप्रसाद गुप्त कृत, तुलसीनास है और इस सम्बन्ध में विशेष दृष्टिकोण प्रदान करने वाले ग्रन्थ रामनरेश त्रिपाठी कृत, तुलसीदास और उनकी कविता तथा चन्द्रबली पांडेय और रामबहोरी शुक्ल के ग्रन्थ हैं। माताप्रसाद गुप्त ने समस्त सामग्री को सामने रख कर कोई निर्णय नहीं दिया, त्रिपाठीजी का आग्रह सोरों में तुलसी की जन्मभूमि के प्रति तथा रामबहोरीजी का राजापुर और चन्द्रबलीजी का अयोध्या के लिए है। बलदेवप्रसाद मिश्र का तुलसीदर्शनगोस्वामीजी के दार्शनिक मत का स्पष्टीकरण करने वाला ग्रन्थ है और समन्वयसाधना में तुलसीदास के समन्वयात्मक दृष्टिकोण को प्रकट किया गया है । कामिल बुल्के के ग्रन्थ में रामकथा के स्वरूप और विस्तार का अध्ययन हुआ है और इस प्रसंग में बलदेवप्रसाद मिश्र की 'मानस में रामकथा' और परशुराम चतुर्वेदी की 'मानस की रामकथा' पुस्तकें उल्लेखनीय हैं। काव्य की दृष्टि से रामचन्द्र शुक्ल की कृति, रामनरेश त्रिपाठी और चन्द्रबली पांडेय के ग्रन्थ अपनी-अपनी विशेषताओं से युक्त हैं, पर शुक्लजी के ग्रन्थ के समान मार्मिकविश्लेषण अभी और अधिक होने की आवश्यकता है। राजपति दीक्षित ने समकालीन परिस्थितियों और धार्मिक भावना का विशेष रूप से अध्ययन किया है। अतः इन ग्रन्थों में अपने-अपने दृष्टिकोण से एक या अनेक पक्षों का उद्घाटन हुआ है ।
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१. सुरतिय नरतिय नागतिय, सब चाहत अस होय । गोद लिये हुलसी फिरैं, तुलसी सो सुत होय
भक्तमाल इनमें नाभादास का भक्तमाल सबसे अधिक प्रामाणिक है। इसमें तुलसीदास जी को भक्तमाल का सुमेरु कहा गया है । परन्तु, इस ग्रन्थ के अन्तर्गत तुलसी के सम्बन्ध में केवल एक छप्पय मिलता है, जो इस प्रकार है:- त्रता काव्य निबन्ध करी सत कोटि रमायन । इक अच्छर उच्चरे ब्रह्म हत्यादि परायन ।। अब भक्तन सुखदेन बहुरि लीला विस्तारी । राम चरन रस मत्त रहत अहनिसि व्रतधारी । ससार अपार के पार को सुगम रीति नौका लयो । कलि कुटिल जीव निस्तार हित बालमीकि तुलसी भयो । इसी प्रकार 'भविष्य पुराण' में भी उल्लेख है। ना दास के छप्पय में गोस्वामीजी के महत्व का वर्णन है। उनकी अटूट राम-भक्ति और बाल्मीकि के अवतार होने का कथन है, पर उनके जीवन-चरित्र के सम्बद्ध में कोई उल्लेख नहीं । प्रियादास के भक्तमाल की टीका सं० १६६६ में लिखी गयी थी। इसमें गोस्वामी जी के अलौकिक कृत्यों का ११ छन्दों में वर्णन है। इसमें तुलसी के द्वारा किये गये चमत्कारों के संकेत हैं, जैसे वाटिका में हनुमर्शन, ब्रह्महत्या- निवारण, दिल्लीपति बादशाह जहाँगीर से संघर्ष आदि । ये तत्कालीन किंव दन्तियों का रूप स्पष्ट करते हैं। यह टीका जनश्रुति का लिखित रूप है, पर यह जनश्रुति बहुत पुरानी होने से तुलसीदास के माहात्म्य को स्पष्ट करती है। एफ एस० ग्राउज़ ने अपने रामचरित मानस के अंग्रजी अनुवाद की भूमिका में इसके तथा वेणीमाधवदास के गोसाई चरित के आधार पर तुलसीदास की जीवनी दी है। अलौकिक कृत्यों का ही विवरण होने से हम इसे ऐतिहासिक महत्त्व नहीं प्रदान कर सकते ।
मृत्यु-तिथि मृत्यु का सं० १६८० तो सभी को मान्य है। परन्तु कुछ लोग, सावन शुक्ला सप्तमी निधन तिथि मानते हैं, जो भ्रमवश दूसरे दोहे के प्रसङ्ग से लगा लिया जाता है। काशी के जमींदार और गोसाई जी के मित्र टोडर के उत्तरा- धिकारी सावन कृष्ण ३ को निधन तिथि मानते हैं और इसी दिन सीधा आदि देते हैं। यही तिथि 'मूल गोसई चरित' के इस दोहे में प्रकट है:- संवत सोलह से असी, असी गंग के तीर । सावन स्यामा तीज सनि, तुलसी तजे शरीर । यह तिथि गणना से भी सही उतरती है । अतः सर्वमान्य है । यह है तुलसी के लौकिक जीवन का विवरण ।
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