बारजा बचा है ओरिआ कहाँ ही।
पिल्वांदा के दूध कै खोरिआ कहाँ ही।।
राशन कार्ड हलाबत तिजिया चली गै
कोटा बाली चीनी कै बोरिआ कहाँ ही।।
आजादी के अश्व मेध कै भभूत बची ही
गांधी के लोकतंत्र कै अजोरिआ कहाँ ही।।
वा प्रदूषण कै पनही पहिरे मुड़हर मा चला गा
घर गाँव के अदब कै ओसरिआ कहाँ ही।।
नोकरी लगबामैं का कहि के लइ गया तै
वा गरीब कै बड़मंसी टोरिआ कहाँ ही।।
सार अबाही खूंटा ग्यरमा औ अम्मा का पहिलय सुर
कामधेनु कै पामर वा कलोरिआ कहाँ ही।।
घर के सुख संच कै जे जपत रहें माला
वा पिता जी कै लाल लाल झोरिआ कहाँ ही।।
✍️ हेमराज हंस भेड़ा मैहर
✍️ हेमराज हंस भेड़ा मैहर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें