अपना जेही छू देयी वा सोन बन जाथै ।
खारा पानी जम के नोन बन जाथै ।।
सौ सौ प्रनाम अपना के पयसुन्नी का
असीसे से जेखे कोण सटकोण बन जाथै।
अपना जेही छू देयी वा सोन बन जाथै ।
खारा पानी जम के नोन बन जाथै ।।
सौ सौ प्रनाम अपना के पयसुन्नी का
असीसे से जेखे कोण सटकोण बन जाथै।
रात सजी जग मग जागत है।
देस स्वस्तिक अस लागत है।।
दिया लेस के कहय अमाबस
हे ! रघुनंदन जू का स्वागत है। ।
हेमराज हंस भेड़ा
नल कुबेर के हिदय मा, काहे उचय न टीस।
वा एक तो बड़मंसी लिहिस, औ मागै बकसीस।।
भला बताई आप से, कउन ही आपन सउंज।
अपना बोतल का पियी, हम पी पानी अउंज।।
लाट बनमै का रहा खाम्हा बना दइस ।
छाया कम रही ता लम्मा बना दइस।।
देस के करतूती बइठ हें हाथ सकेले
सेंत का अनाज निकम्मा बना दइस।।
का खुरपी गहन कीन्हे का मुक्तये हँसिया के
वा कबरा काही रंग के तम्मा बना दइस।।
अठमाइनव चढ़ाये मा देवी रिसान ही
पाँव छुए काम सब अम्मा बना दइस।।
घिनहा आतंक बगरा हबै कालयबन का
कइसा दुस्ट दादू का रम्भा बना दइस।।
वा बोली के बखरी मा है बहुरी बरात अस
कइसा अडारन हंस का ब्रह्मा बना दइस।।
हेमराज हंस भेड़ा मइहर मप्र
का बताई की कहां कहां पिरात है।
बैचैन हबै जिउ मन बूढ़त उतरात है।।
उनखर फरक रही ही सकारे से बायीं आँख
पलकैं लगउतीं लूसी ता काजर सुगात है।।
वाठर बनाउत तक ता उनसे नहीं बनै
लबरी बता रहे हें अमल्लक जनात है ।।
उनखे चिकोटी चींथे कै चिन्हारी बनी ही
अंतस मा उनखे प्रेम का जल प्रप्रात है।।
पाबन पुनीत प्रीत कै पूजा यतर ही हंस
तुलसी के चउरा का दिआ जस टिमटिमात है।।
हेमराज हंस
छोहगइली लये चांदनी, जागी सगली रात।
नदी तीर गोठत रहा, चन्दा रोहणी साथ । ।
प्रेम भरी पोखरी रही, कोउ दिहिस घघोय।
जस बिजली के तार का, जम्फर टूटा होय।।
हेमराज हंस
श्री मैथिली शरण शुक्ल 'मैथिल'