जब कबहूं द्याखा थी ता वा आधा द्याखा थी।
राजनीत ता केबल आपन बाधा द्याखा थी।।
कोऊ बइठय सिंघासन के गरू पालकी मा
जनता लहकत लोकतंत्र का कांधा द्याखा थी। ।
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टेक्टर जब से आबा ता बरदा हेराय गा।
गाँव के रीढ़ का गरदा हेराय गा।।
अब चाल चेहरा चरित्र कै चरचा नहीं चलै
घिनहा पानी निकरैं का नरदा हेराय गा। ।
गाँव के रीढ़ का गरदा हेराय गा।।
अब चाल चेहरा चरित्र कै चरचा नहीं चलै
घिनहा पानी निकरैं का नरदा हेराय गा। ।
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