जबसे तोहका दिख्यन फलनिया भाजी खोटत खेत मा। तब से धकपक करय करेजबा औ मन नहि आय चेत मा।।
महकैं लाग मेड़ पगडंडी गुलमेंहदी औ रेउजा।
चंचल मन का धौं काहे य हिदय लेय उपरउझा।।
रामौ सत्त कही हम तोहसे खोट न कउनौ नेत मा।
पहिल दउगरा के भुंइ घांई गमकै उनखर देह।
उपरंगी उंई पीसैं दांत पै भितर गुल्ल है नेह।।
मारे लाज के लाल गाल जस पहिलय चुम्मा लेत मा।
वा गसान कै मेड़ फलनिया लागै बड़ी उरायल।
बइर खात मा जहा गिरी तै छमछम बाजत पायल।।
सामर मुंहिआ अइसा लागै जइसा धान गलेथ मा।
बोली लगय तोहार फलनिया लोकगीत अस मीठ।
सहजभोर छोहगर य रूप मा लग न जाय कहुं डींठ।।
बड़ी पिआर लगा तू हमका हमरै ओरहन देत मा।
जब से तोहका दिख्यन फलनिया भाजी खोटत खेत मा।।
अबहूं नही व बिसरै घटबा दउरी धोमन चाउर।।
अउ मूडे़ का जूड़ा लागै जइसा खेत मा छाहुर।।।
घटै बढ़ै धड़कन का रकबा तापमान जस रेत मा।
जब से तोहका दिख्यन फलनिया भाजी खोटत खेत मा।।
लगै गाल का तिला फलनिया जइसा होय डिठउरा।
पै चम्पा के फूल के नियरे हिरकै कबौं न भउरा।।
काहू के नैनन का दोहपन लग न जाय कहुं सेंत मा।
जब से तोहका दिख्यन फलनिया भाजी खोटत खेत मा।।
🌻🌻🌻🌻@हेमराज हंस भेड़ा मैहर