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गुरुवार, 21 नवंबर 2024

मंगलवार, 19 नवंबर 2024

हमी रूप से का मतलब,

 हमी  रूप  से का  मतलब, हम ता आंखर मा रीझे हन। 
बानी के मंत्र लिखे कागद, हम मस मा खूब पसीझे हन।।
तुम प्रेम पिआसी पिंगला ता , हम उदासीन भरथरी हयन 
तुम्ही  शुभ  होय  तुम्हार  प्रेम, हम ता आंसू मा भींजे हन।। 
हेमराज हंस 

श्री सूर्यमणि शुक्ल

  श्री सूर्यमणि शुक्ल

अपने इस बोली बानी जिसे पहले ,रेवा ,यानी नर्मदा के उद्गम के आस पास विकसित होने के कारण ,रिमही, कहा जाता था और बाद में बघेली कहा गया उस में तमाम कवियों का परिचय और उनकी कविताओ को प्रस्तुत करते मुझे लगभग दो माह होने को है। आज 50 वे कवि और उनकी कविता दे रहा हूं।
तमाम कवियों की कविताओ में आये मुहाबरे ,अलग अलग क्षेत्रो के कहन में आये आंशिक बदलाव आदि का भी मुझे खुद इससे ब्यापक अनुभव हुआ है ।
क्यों कि मैने प्रायः हर कवि की कविता को कई कई बार पढ़ कर खुद टाइप की है। अब मेरा यह स्तम्भ लगभग 5 दिन बाद पूरा हो जाय गा । क्यों कि कविताओ का स्रोत छीजता जा रहा है।
आज मैं जिस जेष्ठ कवि से आप की भेट करा रहा हूं वे श्री सूर्यमणि शुक्ल है। शिक्षक पद से सेवा निबृत्त श्री शुक्ल का जन्म रीवा जिले के नईगढ़ी तहसील के बेलबा गाव में हुआ था।
उनकी दोतीन पुस्तके प्रकाशाधीन है जिनमे एक बघेली काब्य संकलन ,,चाई माई,, भी है। श्री शुक्ल के सवैया छन्द बड़े ही सरस् है। आइये आप को भी उनकी मधुरता का रसास्वादन कराते है।उनके यह छन्द किसान, सरपंच , बिटिया एवम सुंदरता आदि शीर्षक से है।
किसान
राग नही कुछु साग नही,
घिउ दूध नही बस काम के बेला,
साझि सकार न जानि परै,
बस जनि रहे जस जुझ्झ बघेला।।
घाम म चाभ सिझी सगली,
लसियांन हि पूर गुड़े कस भेला।
हाइ किसान नधी पहटी ,
के तरी ढकिले जइसे कातिक ढेला।।
सरपंच
बॉदर हाथ परी तरवारि ,
उतारि के मूड दरे धइ देइही।
जे कल पे दरिया न मिली,
उ फूलउरी मिले उरझेट के खइही।।
घाम म बैठ बगार रहे ,
कुरसी म धसे अउघइनि जइही।
फाइलि के मूडसउरेंन मा,
उलटाइ के सील म औठ लगइही।।
बिटिया
बिटिया त बनी घर के लक्षमी,
परिवार क पाल उ बंस बढ़ाई।
घर कै सगली घोसियारी करी,
भिनसारे से जागी सबै क जगाई।।
अपने जिउ का न मरै कबहू ,
लड़िका मनसेरू क देत खबाई।
जेकरे घर मा बिटिया न रही,
गुड़ पानी दुआरे त केउ न पाई।।
सुंदरता
राहि रहै कउनो निकही ,
बिन रेगी गये नहि सुन्दरि लागे।
रूप कै राशि हवै दुलही,
पति साथ बिना मरजाद के लागे।।
गाँव घरे केर सुख्ख इहै,
महिमान के आये कुढ़ी खुब लागे,
सील सकोच बिना उपकार,
बडो मनई खूब छोटि क लागे।।
पदम् श्री बाबूलाल दाहिया जी की फेसबुक वाल से साभार

बुधवार, 13 नवंबर 2024

कब्ज़ा कीन्हे चीन।।

 बाल दिबस कै हार्दिक सुभकामना 
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हमही ता  अइसा लगै, बाल दिबस का सीन। 
जस  हमरे  कैलाश मा, कब्ज़ा  कीन्हे  चीन।।  
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पन्नी बीनत बीत गै, ज्याखर उमिर किसोर। 
ओखे दुअरै कब अइ बाल दिबस कै भोर।। 
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जे कबहूं  जानिस  नही,  पोथी  अउर   सलेंट। 
बूटन मा पालिस किहिस होटल घसिस पलेट।। 
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जहाँ  ब्यबस्था  खाय गै, पंजीरी  औ खीर। 
गभुआरन के भाग मा बदी कुपोसित पीर।। 
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दरबारी   जेही  कहै, बोटहाई   मा  नात। 
पै कबहूं देखिन नही वाखर दुधिया दांत।। 
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हबै   कुपोसित  देस   मा, जेखर  ल्यादा    घींच। 
ओ! बालदिबस फुरसत मिलै ता उनहूं का सींच।। 
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हेमराज हंस -- भेड़ा मैहर 

काल्ह कउआ बताबत रहा सुआ से।

 काल्ह कउआ बताबत रहा सुआ से।

ओही मोतिआ बिन्द होइगा जग्ग के धुंआ से।।
जयन्त भले बड़े बाप केर बेटबा आय
ओहू कै आँख फुटि गै कुदृष्टि खुआ से।।
उनखे मन मा ही खराबी की तन ख़राब है
खजुरी उच रही ही मखमल के रुआ से ।।
सिंघासन के पेरुआ सब दिन भयभीत रहे हें
कबौं सामना नहीं किहिन खुल के गेरुआ से।।
कहि द्या खबीस से कि वा उछिन्न ना करय
हंस कै रण चण्डी टोर देयी नेरुआ से ।।
हेमराज हंस - भेदा मैहर

अपना चिन्ह प्रतीक।।

 माँ  शारद  से  बिनय  है, हरबी  होई नीक। 
मइहर के साहित्य कै, अपना चिन्ह प्रतीक।।   

रविवार, 10 नवंबर 2024

गदहा परेसान है गइया के प्रतिष्ठा मा।।

पसीना का ठगि  के वा  बइठ हबै  भिट्ठा मा। 
कइउ  ठे लजुरी   खिआनी   है   घिट्टा  मा । । 
सेंतय   का   जरा   बरा   जाथै   कमेसुर वा 
गदहा  परेसान  है  गइया  के  प्रतिष्ठा   मा । । 
हेमराज हंस 

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

बाबू जी।


                   बाबू जी 
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बड़ी मुसीबत झेल के हमही, पालिन पोसिन बाबू जी। 
लदी गरीबी से  गाड़ी  का, बल  भर  ढ़ोसिन  बाबू जी।।

मन तक गहन धरिन बेउहार के हम पंचेन के पढ़ाई मा 
पै न तन मा रही  सिरिहिरी , कबौ ना  घोसिन बाबू जी।।

बब्बा जी  के गुजरे  माही,   भींज  रहीं   दोउ  आँखी
तउ फुआ का धीर बंधाबत अँसुआ पोछिन  बाबू जी।।

बड़की नातिन के काजे मा, ओइन  कन्या दान किहिन 
बिन अम्मा के पीर हिदय मा खूब समोखिन बाबू जी।।

हिबै  बरा अस जिनखर छांही  हर शाखा से निकरी जर 
राम  चरित  मानस  चउपाई, प्रेम से घोखिन  बाबू जी।।

एक  ईमान दार  पिता   कै  संतान   होब   है  हंस  गर्व 
कबाै  न काहू का गर मुधिआइन औ मुसोसिन  बाबू जी।।
हेमराज हंस भेड़ा मैहर -9575287490 

काहू का लिफाफा पियार है।

 काहू का पगड़ी काहू का  साफा पियार है।
काहू  का ता केबल   लिफाफा  पियार  है।।
हमही  आपन  देस  औ  पुरखा पिआर हें   
बिदेसी बिचार का उन्ही पापा पियार है।।
हेमराज हंस भेड़ा  मैहर मप्र 

सोमवार, 4 नवंबर 2024

तुम बत्तीसी काढ़ दिहा औ खीस निपोरे चले गया।

 तुम बत्तीसी  काढ़  दिहा औ खीस निपोरे चले गया। 

गील पिसान हमार देख परथन का बटोरे चले गया।। 


सिसकत राति से पूछि लिहा कस लाग पलेबा खेते मा 

तुम बिदुरात साँझ देखय का बड़े अँजोरे चले गया।। 


 गाय बिआन ता बनी पेंउसरी  पै पेटपोछना  नहीं  रहा 

पूरा दिन महतारी रोयी  तुम बिन मुँह फोरे चले गया।। 


जब से रोमा झारिस नफरत प्रेम का रकबा घटा खूब 

खसरा  माही  दर्ज  खैरिअत  झूंटय  झोरे चले गया।। 


काल्ह  फलनिया  कहत  रही या सरबार मा  गाज गिरै 

कउनव  साध न पूर भयीं , बस गउखर जोरे चले गया।।


चित्रकूट मा दीपदान का खासा जबर  जलसा भा हंस 

पै तोहार नजर  गदहा  हेरैं  ता उनखे  ओरे चले  गया।। 

हेमराज हंस -भेड़ा मइहर